सावली गाँव (जि. वडोदरा, गुजरात) के एक गरीब घर का बालक था चूनीलाल । उसके घर एक गाय थी । चूनीलाल की माँ घर का सब काम करती, फिर दूसरों के घरों में भी काम करने रोज जाती । इससे गाय की देखभाल के लिए समय नहीं मिलता था ।
एक दिन माँ ने घर में कहाः “अपना गुजारा मुश्किल से होता है तो फिर गाय को कहाँ से खिलायें ? गाय माता भूखी रहेगी तो हमें ही पाप लगेगा । मुझे यह बात हृदय में खटकती है । इससे तो अच्छा हम इसे किसी सेवाभावी व्यक्ति को बेच देते हैं ।”
यह सुन चूनीलाल ने कहाः “माँ ! यह गाय तुम्हारा बालक होती तो ?”
माँ- “अरे चूनिया ! हमारे पास गाय को बाँधने के लिए अलग जगह नहीं है । उसके लिए खरीदकर घास भी नहीं ला सकते हैं । गोबर मूत्र से रास्ता बिगाड़ता है । इसी कारण रोज गाँववालों की खरी-खोटी बातें सुननी पड़ती हैं । बिना विचारे बात मत किया करो ।”
चूनीलाल ने विनम्र भाव से कहाः “माँ ! गाय की देखरेख मैं करूँगा, उसके लिए घास भी ले आऊँगा । फिर अपनी पढ़ाई भी ठीक से करूँगा । उसमें जरा भी कमी नहीं आने दूँगा । बोल माँ ! अब तो गाय को नहीं बेचोगी न ? गाय तो हमारी माता कहलाती है । उसकी तो पूजा करनी चाहिए ।”
“बोलना आसान है किंतु पालन करना कठिन ! देखती हूँ तू गाय की कैसे देखभाल करता है । तू बोला हुआ करके बता तो सही ।”
दूसरे दिन चूनीलाल ने गोबर मूत्र से खराब हुआ रास्ता साफ करके वहाँ सूखी मिट्टी डाल दी निकट के कालोल गाँव में सब्जी आदि लेकर आस-पास के गाँवों से बैलगाड़ियाँ आती थीं । उनके बैलों के खाने से बची हुई अच्छी-अच्छी घास इकट्ठी करके चूनीलाल गाय के लिए रोज ले जाता । कभी दोस्तों से अनुमति लेकर उनके खेत के किनारे उगी घास काट के गाय को ताजी, हरी घास से प्रेम से खिलाता । वह पढ़ाई में भी आगे रहता था ।
यह सब देख माँ मन-ही-मन बहुत प्रसन्न होती, सोचतीः “आखिर चूनिया ने वचन का पालन कर ही लिया ।”
जीवों के प्रति दयाभाव, वचन पालन में दृढ़ता, पुरुषार्थ, विनम्रता, ईश्वरभक्ति आदि सदगुणों ने बालक चूनीलाल को सदगुरु के पास पहुँचा दिया और सदगुरु-निर्दिष्ट मार्ग पर चल के उन्होंने महानता की ऊँचाइयों को पाया तथा ‘पूज्य मोटा’ के नाम से विख्यात हुए, जिनके नड़ियाद और सूरत में मौन-मंदिर, आश्रम चल रहे हैं ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2019, पृष्ठ संख्या 25 अंक 315
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