एकांत में जप करना सरल है, उपवास करना सरल है, तप करना सरल है पर हर घड़ी प्रभु की सेवा में तत्पर रहना बहुत बड़ी बात है । राम जी का मंदिर हो तो उसमें हनुमान जी चाहिए, चाहिए, चाहिए पर हनुमान जी का मंदिर हो तो अकेले चलें । हनुमान जी की दुगनी पूजा हो गयी, कारण कि रामचन्द्र जी का ज्ञान हनुमान जी का ज्ञान हो गया और इसके उपरांत सेवा हो गयी । सब तें सेवक धरमु कठोरा । सेवा-धर्म निभाना, सेवा का कर्तव्यपालन करना दूसरे सभी धर्मों से कठिन है । इसलिए इस धर्म को तत्परता से निभाने वाले उतने ही मजबूत, समतावान, उदार, सुखी, शांत और प्रसन्न स्वभाव के धनी हो जाते हैं ।
सेवा सचीअ मां जिन लधो, लधो लाल अणमुलो
ते स्वामी सचीअ सिक सां, सदा सेवा कन
सच्ची सेवा से जिन्होंने आत्मशांति, आत्मानंद रूपी अनमोल हीरा पाया है, वे सदा सच्ची प्रीति से सेवा करते हैं और सेवा करते समय अपमान, निंदा, बदनामी भी सहेंगे फिर भी सेवा से पीछे नहीं हटेंगे । ऐसे जो लोग होते हैं उनकी गाथा तो अमर हो जाती है । सेवा लेने में उतना सुख नहीं मिलता जितना सेवा करने में मिलता है । भोजन करने में उतना मज़ा नहीं आता जितना भोजन कराने में आता है । सेवा करते-करते सेवक इतना बलवान हो जाता है कि सेवा का बदला वह कुछ नहीं चाहता है फिर भी उसे मिले बिना नहीं रहता है – चित्त की शांति, आनंद, विवेक ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2019, पृष्ठ संख्या 17 अंक 316
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ