महाभारत के अंतर्गत हरिवंश पुराण में एक कथा आती हैः बाणासुर के साथ युद्ध के समय त्रिशिरा नामक ज्वर न बलराम जी पर आक्रमण किया और उनके ऊपर भस्म फेंका, जिससे उनके शरीर में जलन होने लगी । उसे भगवान श्री कृष्ण ने शांत किया । फिर त्रिशिरा ज्वर के साथ भगवान का भीषण युद्ध हुआ और वह उनके शरीर में घुस गया । तदनंतर भगवान ने वैष्णव ज्वर को प्रकट कर उसके द्वारा त्रिशिरा ज्वर को अपने शरीर से निकलवा दिया और उसके सौ टुकड़े कर देने को उद्यत हुए । तब त्रिशिरा ज्वर ने अपनी रक्षा हेतु भगवान से प्रार्थना की और उसी समय आकाशवाणी ने भी उसका वध करने के लिए मना किया तो भगवान ने उसे छोड़ दिया ।
त्रिशिरा ने जब भगवान की शरण ग्रहण की तो भगवान ने उसे वरदान दिया तथा कहाः “ज्वर ! जो मुझे प्रणाम करके एकचित्त होकर हम दोनों के इस पराक्रम का पाठ करे, वह मनुष्य अवश्य ज्वररहित हो जाय । (ज्वररहित होने के लिए निम्नलिखित स्तुति करें । उपरोक्त पराक्रम के विस्तृत पाठ हेतु देखें हरिवंश पुराण, विष्णु पर्व, अध्याय 122-123)
ज्वरनाशक स्तुति
त्रिपाद् भस्मप्रहरणस्त्रिशिरा नवलोचनः ।
स मे प्रीतः सुखं दद्यात् सर्वामयपतिर्ज्वरः ।।
आद्यन्तवन्तः कवयः पुराणाः
सूक्ष्मा बृहन्तोऽप्यनुशासितारः ।
सर्वाञ्ज्वरान् घ्नन्तु ममानिरूद्ध-
प्रद्युम्नसंकर्षणवासुदेवाः ।।
‘जिसके तीन पैर हैं, भस्म ही आयुध है, तीन सिर हैं और नौ नेत्र हैं, वह समस्त रोगों का अधिपति ज्वर प्रसन्न होकर मुझे सुख प्रदान करे । जगत के आदि और अंत जिनके हाथों में हैं, जो ज्ञानी, पुराणपुरुष, सूक्ष्मस्वरूप, परम महान और सबके अनुशासक हैं, वे अनिरूद्ध, प्रद्युम्न, संकर्षण और भगवान वासुदेव सम्पूर्ण ज्वरों का नाश करें (इस प्रकार प्रार्थना करने वालों का ज्वर दूर हो जाय)।”
स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2019, पृष्ठ संख्या 24 अंक 323
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