गुरुगीता-पाठ और त्रिकाल संध्या-नियमों का प्रभाव

गुरुगीता-पाठ और त्रिकाल संध्या-नियमों का प्रभाव


★ मैं आज से दो-ढाई वर्ष पूर्व संत श्री आसाराम जी बापू (Pujya Asaram Bapu Ji) के श्रीचरणों में आया तब से मुझे अनेक अनुभव हुये । मैंने अच्छा-खासा जीवन-परिवर्तन महसूस किया ।

गुरुगीता-पाठ और त्रिकाल संध्या-नियमों का प्रभाव ।

★ मैं आज से दो-ढाई वर्ष पूर्व संत श्री आसाराम जी बापू (Pujya Asaram Bapu Ji) के श्रीचरणों में आया तब से मुझे अनेक अनुभव हुये । मैंने अच्छा-खासा जीवन-परिवर्तन महसूस किया ।

★ मैंने अखण्डानंद आयुर्वेदिक कॉलेज में पाँच साल अभ्यास किया । परीक्षा-काल में अन्य छात्रों की भाँति मैं भी नकल करते हुये परीक्षाएँ उतीर्ण करता रहा परंतु जब से मैं पूज्य बापू के श्रीचरणों में आया तब से बिना किसी नकल के परीक्षाएँ उत्तीर्ण करता रहा और अंतिम वर्ष में तो प्रथम श्रेणी से सफलता हासिल की ।

★ जनवरी ‘९१ के उत्तरायण ध्यान-योग शिविर में पूज्य बापू से मंत्र-दीक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिला । अंतिम दो महीनों में मैंने दो विलक्षण अनुभव किये ।

★ पूज्य बापू प्रत्येक साधक को त्रिकाल स्नध्या और गुरु गीता का पाठ करते रहने का विशेष आग्रह रखते हैं । यह नियम अखण्ड रीति से पालन करने वाले को आजीविका की चिंता नहीं रहती । मैं बापू के इन वचनों को आदरपूर्वक ग्रहण करके चलता रहा ।

★ दो महीने पहले सरकारी वैद्यों की रिक्त जगहें पूर्ति करने के लिए अहमदाबाद में ‘इंन्टरव्यू‘ के लिए बुलाया गया । अब तक इस पद के लिए पच्चीस तीस हजार रिश्वत देना आवश्यक माना जाता था । इस बार यह राशि बढकर पचास से सत्तर हजार तक पहुँच चुकी थी ।

★ मैं नित्यप्रति पूज्य बापू (Pujya Asaram Bapu Ji)के आदेशानुसार गुरुमंत्र और श्रीगुरुगीता(Shri Guru Gita) का पाठ तथा त्रिकाल-स्नध्या नियमित रूप से करता रहा, ‘इन्टरव्यू के दिन भी इस नियम का चुस्ती से पालन किया ।

★ ‘इन्टरव्यू के समय भी मन में गुरुमंत्र का जाप चलता रहा । ‘इंटरव्यू लेनेवाले अधिकारी पर मेरे इस गुरुमंत्र का ऐसा भी प्रभाव पडा कि एक भी दमडी दिये बिना एवम् किसी भी प्रकार की सिफारिश किये कराये बिना मुझे नौकरी प्राप्त हो गयी ।

★ मेरिट-सूची में मुझे दूसरा स्थान प्राप्त हुआ ।

आयुर्वेद में एम.डी. होने के लिए प्रवेश-परीक्षा का आयोजन हुआ करता है । इस परीक्षा में भी श्रीगुरुगीता (Shri Guru Gita)के पाठ तथा १०८ श्री आसारामायण-पाठ(Shri Asharamayan Path) तथा गुरुमंत्र-जाप की सहायता से मैं सफल हुआ ।

★ निश्चित ही, सच्चे सद्गुरु से सद्शिक्षा एवं मंत्रदीक्षा प्राप्त कर लेने के पश्चात् गुरु-आज्ञानुसार प्रचलित सत्पात्र साधक को नौकरी-धंधे की चिंता नहीं रहती ।

सचमुच गुरु है दीनदयाल,

सहज ही कर देते हैं निहाल ।

तथा एक सौ आठ जो पाठ करेंगे,

उनके सारे काज सरेंगे ।

श्री आसारामायण की इन पंक्तियों को मैंने अपने जीवन में घटते हुये देखा और अनुभव किया ।

-वैद्य विरल वी. शाह

३३, ज्ञानदा सोसायटी, जीवराज पार्क, अहमदाबाद-५१

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