एक जिज्ञासु महात्मा के पास गया
और कहने लगा कि गुरु जी मैं कभी कभी निराश होता हूं, कभी कभी मुझे सामने वाले पर बहुत क्रोध आता है, कभी कभी मुझे लगता है कि मैं पैदा ही क्यों हुआ? मन शुब्ध हो जाता है, ऐसे समय पर मैं क्या करूं?
गुरु जी कोई उपाय बताइए।
महात्मा ने कहा कि- उस वक़्त तुम अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को देखो, जिज्ञासु ने सोचा कि मेरी निराशा, क्रोध से बचने और घड़ी देखने का क्या संबंध है? उसे कुछ समझ में नही आया। वह वहां से चले गया, फिर कुछ दिनों के बाद फिर से आकर कहने लगा, गुरुजी मैं बहुत परेशान हूं, कृपया करके मुझे बताइए, मै इसे छुटकारा कैसे प्राप्त करूं?
महात्मा ने कहा परेशानी के वक़्त अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को देखो, जिज्ञासु ने सोचा कि पहले ही मैं बहुत परेशान हूं और महात्मा जी वही जवाब देकर मेरी परेशानी को और बढ़ा रहे है, कुछ दिनों के बाद फिर से तनाव से ग्रस्त जिज्ञासु वापस आकर महात्मा से पूछता है कि नकारात्मक विचारों के कारण मैं बहुत तनाव मे हूं गुरुजी! कृपया करके आप मुझे इस तनाव से मुक्ति का कोई उपाय बताए। महात्मा ने फिर से वही जवाब दिया कि कलाई पर बंधी घड़ी को देखो, अब जिज्ञासु सोचने लगा की गुरूजी जो बता रहे हैं उसमे जरूर कोई संदेश छिपा है, मुझे इस जवाब पर जरूर मनन करना चाहिए।
समझदार शिष्य गुरु की अतार्किक आज्ञा पर जल्दी अनुमान नही लगाता, बल्कि मनन करता है। तत्पश्चात भी उसे समझ ना आए तो वह गुरु जी से मिलकर कपट मुक्त हो उनसे निवेदन करता है। उस शिष्य ने भी यही किया मनन के बावजूद भी जब उसे कुछ समझ
मे नही आया तो उसने महात्मा से कपट मुक्त होकर पूछा कि- मेरे हर सवाल पर आप घड़ी घड़ी कहते है कि घड़ी देखो मगर घड़ी देखने से क्या होगा? कृपया इसका खुलासा करे।
तब महात्मा ने घड़ी देखने का भेद खोलते हुए कहा कि- जब भी निराशा, क्रोध, तनाव, परेशानी या उलझन का विचार आए तब घड़ी में समय देखो कि यह विचार कितनी देर तक रहता है फिर उस समय को नोट करो कि जैसे ७:१० मिनट पर उलझन का विचार आया और ७:२० मिनट पर वह विचार खत्म हो गया कि इसका अर्थ है कि उलझन का विचार समाप्त होकर विवेक का विचार, समझ का विचार आने में १० मिनट लगेगा, फिर अगली बार जब भी परेशानी के विचार आए तो घड़ी को इस लक्ष्य से देखो कि अब की बार नकारात्मक विचारो से में ९:०० मिनट मे मुक्ति कैसे प्राप्त कर लू? और इसमें सहायक होगा गुरु का संग ,गुरु का सत्संग और गुरु के स्वरूप का चिंतन इन विचारो को प्रगाढ़ करते जाओ जब तुम्हे पता है कि इतने मिनट तक ये नकारात्मक विचार, ये घृणित विचार मेरे मन मे रहेंगे तो उतने मिनट तक खूब तत्परता से गुरु द्वारा प्रदान किए हुए नाम का जाप करो। उसका उच्चारण करो अथवा तो सेवा मे लगो इस तरह के अभ्यास से एक समय ऐसा आएगा कि निराशा, क्रोध, परेशानी या तनाव का विचार आते ही केवल घड़ी देखकर वह टूट ही जाएगा।
स्वामी शिवानंद कहते है कि- मानसिक शांति और आनंद गुरु को किए हुए आत्मसमर्पण का फल है कि गुरु के प्रति सच्चे भक्ति भाव कि कसौटी, आंतरिक शांति और उनके आदेशों का पालन करने कि तत्परता मे निहित है, गुरु सेवा के ज्ञान मे वृद्धि करो और मुक्ति पाओ। गुरु कृपा से जिनको विवेक और वैराग्य प्राप्त हुआ है उनको धन्यवाद है वे सर्वोत्तम शांति और सनातन सुख का भोग करे। गुरुभक्ति योग मन का संयम और गुरु की सेवा द्वारा उसमे होने वाला परिवर्तन है।