साधकों की जिज्ञासा, पूज्य बापू जी का समाधान

साधकों की जिज्ञासा, पूज्य बापू जी का समाधान


साधकः शास्त्रों में, सत्संग में आता है कि ‘जगत है ही नहीं’ पर जगत तो प्रत्यक्ष दिखता है, यह कैसे ?

पूज्य बापू जीः श्रीराम जी के गुरुदेव महर्षि वसिष्ठजी कहते हैं- “जगत है ही नहीं ।” जैसे जिस समय सपना दिख रहा है उस समय ‘यह सपना है, यह दिख रहा जगत वास्तव में नहीं है’ – ऐसा नहीं लगता । जब सपने से उठते हैं तब लगता है कि ‘सपने का जगत नहीं है’ । ऐसे ही अपने आत्मदेव में ठीक से जगते हैं तो फिर जगत की सत्यता नहीं दिखती ।

बोले, जगत नहीं है… तो ‘जगत नहीं है’ ऐसे बोलने से कोई गर्म चिमटा शरीर से लगाते हैं तो उस समय तो दुःख होगा !’ लेकिन उसमें यह समझना जरूरी है कि जिसको दुःख होता है वह भी वास्तव में नहीं है, सदा नहीं है । तो जो सदा है उसमें स्थिति करके समझाने के लिए बोला जाता है, ‘जगत नहीं है ।’

एक होती है  व्यावहारिक सत्ता, दूसरी होती है प्रातिभासिक सत्ता और तीसरी होती है वास्तविक सत्ता ।

व्यावहारिक सत्ता – जैसे आप-हम अभी बैठे हैं, यह व्यावहारिक सत्ता है । कोई बोले कि ‘जगत नहीं है तो बापू जी ! आप क्यों बोलते हो ? सत्संग में क्यों आ रहे हैं ? जगत ‘नहीं’ कैसे है ?….’ तो यह व्यावहारिक सत्ता में जगत है ।

दूसरी है प्रातिभासिक सत्ता – जैसे सपने में जगत दिखा तो उस समय तो सच्चा लगा लेकिन आँख खुली तो कुछ नहीं है  और तीसरी है वास्तविक सत्ता – इस समय भी सपने में भी वास्तविक सत्ता चैतन्य आत्मा की है । और ये जाग्रत जगत व स्वप्न जगत – दोनों नहीं होने पर भी जो वास्तविक सत्ता विद्यमान रहती है, उसमें टिक के बोलो तो जगत है नहीं । न स्वप्न है, न जाग्रत है, न गहरी नींद है – तीनों आ-आ के चले जाते हैं फिर भी जो रहता है वह सच्चिदानंद है । तो अपने-अपने दृष्टिकोण से जगत नहीं है और अपने-अपने दृष्टिकोण से जगत है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2020, पृष्ठ संख्या 34 अंक 326

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *