महामारी ने इतने नहीं मारे तो किसने मारे ? – पूज्य बापू जी

महामारी ने इतने नहीं मारे तो किसने मारे ? – पूज्य बापू जी


आप अपने अंतःकरण में द्वेषरहित, अपराधरहित, विकाररहित अवस्था में विश्राम करो फिर जो होगा देखा जायेगा । मैं कई बार कह चुका हूँ, आप अंदर में पक्का संकल्प करो । कोई भी विचित्र परिस्थिति आ जाय, कोई भी कठिन परिस्थिति आ जाय, कोई भी मुसीबत आ जाय – तैयार रहो भीतर से । मुसीबत की ऐसी-तैसी हो जायेगी । जब आप भयभीत होते हैं तो जरा सी मुसीबत भी आप पर हावी हो जाती है । मैंने सत्संग में दृष्टांतो के द्वारा कई बार बताया है ।

एक कोई छाया जा रही थी । सिद्धपुरुष ने देख लिया । मन-ही-मन उससे पूछाः ‘कौन हो, कहाँ जा रही हो ?’

बोलीः “मौत हूँ मौत ! इस इलाके में बहुत पाप हुए हैं, जिन्होंने वे पाप किये हैं उन लोगों की जान लेने जा रही हूँ । हैजा फैलाऊँगी ।”

“कितने लोगों की जान लोगी ?”

बोलीः “तीन-चार सौ लोगों की ।”

बाबा जरा शांत हुए, इतने में तो वह चली गयी ।

खबर आयी कि गाँव में लोग मर रहे हैं । सैंकड़ों मर गये । 600 मर गये…. 1000 मर गये… 2000 मर गये…. 3000 मर गये…. 4000 से भी ज्यादा मर गये । बाबा ने देखा कि ‘उसको झूठ बोलने की जरूरत नहीं थी, निगुरी मेरे से क्यों झूठ बोली ?’

अब बाबा ध्यान तो क्या करें, आँख खोलकर अपनी सूक्ष्मतम वृत्ति से निहारने लगे तो वह छाया जाते हुए दिखी । पूछा कि “रुक, तने झूठ क्यों बोला ? तू तो बोली थी कि तीन-चार सौ मरेंगे और 4000 से भी ज्यादा लोग मर गये ।”

बोलीः “मैंने तो तीन-चार सौ को ही मारा । बाकी भयावह चिंतन से ही मारे गये बेवकूफ लोग !”

मुसीबत में इतनी ताकत नहीं होती जितना मुसीबत के भय से भयभीत होकर व्यक्ति स्वयं ही कल्पना कर-करके मुसीबत का बल बढ़ा हुआ महूसस करता है । भोग में इतना सुख नहीं होता जितना भोगी को शुरु में दिखता है । बाद में देखो तो क्षीण हो जाता है ।

तो आप जगत के स्वभाव को ठीक से जानोगे तो उसके चंगुल से छूट जाओगे और भगवान के स्वभाव को जानोगे तो उसके नित्य प्रेमरस में एकाकार हो जाओगे ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल-मई 2020, पृष्ठ संख्या 31 अंक 328-329

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