मनुष्य जीवन किसलिए ? – पूज्य बापू जी

मनुष्य जीवन किसलिए ? – पूज्य बापू जी


ईश्वरप्राप्ति में बहुत मजा है, यह बहुत सुगम है। संसार-सागर तरना गाय के खुर को लाँघने के समान सुगम है – यह बाद में पता चला, पहले मैंने भी बहुत पापड़ बेले थे। लेकिन मेरे गुरुदेव को जो मेहनत करनी पड़ी थी, उसका सौवाँ हिस्सा भी मुझे नहीं करनी पड़ी। अनजाने में मुझे जितनी मेहनत करनी पड़ी, उसका हजारवाँ हिस्सा भी तुमको नहीं करनी है।
माँ को कितनी मेहनत करनी पड़ती है – गेहूँ लाओ, सब्जी लाओ, रोटी बनाओ पर बेटे को तो बस चबाना है। गाय को मेहनत करनी होती है – चारा खाना, चबाना लेकिन बछड़े को तो बस ‘सकुर-सकुर’ दूध पीना है। उसको तो मुँह हिलाना पड़ता है, तुमको तो मुँह भी नहीं हिलाना केवल कानों के द्वारा सुनना है, तैयार माल पड़ा है।
दुनियादारी की सारी विद्याएँ सीख लो, सबकी बातें मान लो पर दुःखों का अंत नहीं होगा और परमानंद नहीं मिलेगा।
जीवन केवल दुःख मिटाने और बाहरी सुख पाने के लिए नहीं है। नौकरी करते हैं तो सुखी होने के लिए, फर्नीचर खरीदते हैं तो सुखी होने के लिए, शादी करते हैं तो सुखी होने के लिए, तलाक देते हैं तो सुखी होने के लिए, झुकते हैं तो सुखी होने के लिए, रोब मारते हैं तो सुखी होने के लिए, रोते हो तो सुख के लिए। दुःख मिटाना और सुख को थामना यही तो दो काम करते हो जीवनभर ! तीसरा क्या करते हो ?
सुबह से शाम तक और जन्म से मौत तक सभी लोग यही कर रहे हैं। आश्चर्य तो यही है कि दुःख को भगाते-भगाते और सुख को थामते-थामते जिंदगी पूरी हो जाती लेकिन अंत में दुःख ही रह जाता है। लोग मरते समय दुःखी हो के, चिंता ले के मरते हैं क्योंकि मूल में ही गलती आ गयी। मुझमें भी थी, मैं भी तुम्हारी पंक्ति में ही था। हम भी दुःख भगाने और सुख को पाने में लगे थे। जब गुरु के द्वार गये तो उन परम दयालु सदगुरु दाता ने घर में घर दिखा दिया…. दिल में ही दिलबर का दीदार कर दिया।
तो जीवन दुःख मिटाने और परम सुख पाने के लिए है, ज्ञानदाता सदगुरु का आश्रय लेकर जीवनदाता का साक्षात्कार करने के लिए है।
दुःखों-परेशानियों से डरने का कारणः अज्ञान
एक विद्यालय के बंद होने से उस विद्यालय का मास्टर सर्कस में नौकरी करने चला गया। सर्कसवालों ने कहाः “ठीक है, हम तुमको शेर की खाल पहना देंगे और तार पर चलना सिखा देंगे।” सारी व्यवस्था हो गयी, करतब सिखा दिया गया।
पहले दिन मास्टर साहब को को शेर का जामा पहनाकर तार पर चलने के लिए सर्कस में लाया गया। मास्टर साहब ने नीचे देखा तो शेर गुर्रा रहे हैं। अब इनका गुर्राना और चलना तो सही था लेकिन नीचे गुर्राते हुए शेरों को देखकर मास्टर डर गये कि ‘कहीं मैं नीचे गिर गया तो ये मुझे फाड़कर खा लेंगे !’ डर के मारे बेचारा घबराकर नीचे गिर गया, बोलाः “हे भगवान ! बचाओ।”
गुर्राने वाले शेरों ने धीरे से कहाः “पागल ! हम भी उसी विद्यालय के हैं। हमने भी तुम्हारे जैसी खाल पहनी है। डर मत, नहीं तो हृदयाघात हो जायेगा। हम भी दिखावटी शेर हैं।”
हम सभी ऐसे ही दिखावटी शेर हैं। ‘यह कर लूँगा, यह कर लूँगा…’ लेकिन अंदर से धक-धक चलती है। जरा सी प्रतिकूलता आती है तो डर जाते हैं। सुखद स्थिति आ जाये चाहे दुःखद स्थिति आ जाय, दोनों में विचलित न हों। दुःख पैरों तले कुचलने की चीज है और सुख बाँटने की चीज है। आप तो अपने परम ज्ञान में रहिये, परम पुरुष गुरु के तत्त्व में रहिये।
समझदार लोग परिस्थितियों से घबराते नहीं अपितु संतों से, सत्संग से सीख लेते हैं और सुख-दुःख का सदुपयोग करके बहुतों के लिए सुख, ज्ञान-प्रसाद व प्रकाश फैलाने में लगकर धनभागी होते हैं।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2015, पृष्ठ संख्या 21, अंक 266
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