आखिर कबीरजी ने उस सुअर को अपने द्वार पर क्यूँ बंधवाया अद्भुत प्रसंग

आखिर कबीरजी ने उस सुअर को अपने द्वार पर क्यूँ बंधवाया अद्भुत प्रसंग


संत कबीर जी सद्गुरु तो थे ही परंतु एक सच्चे सत्शिष्य भी थे। पंचगंगा घाट पर सभी संत आध्यात्मिक चर्चा कर रहे थे और अंदर गुफा में बैठके उनके गुरुदेव स्वामी रामानंद जी मानसिक पूजन कर रहे थे। वे पूजा की सभी सामग्री एकत्र कर नैवैद्य आदिक सब चढ़ा चुके थे। चंदन मस्तक पर लगाकर मुकुट भी पहना चुके थे परंतु माला पहनाना रह गया था। मुकुट के कारण माला गले में जा नहीं रही थी । स्वामी जी कुछ सोच रहे थे। इतने में रामानंद जी के शिष्य कबीर जी को गुरुदेव की हृदय की बात मालूम पड़ गई और वे बोल उठे “गुरुदेव माला की गांठ को खोलकर फिर उसे गले में बांध दिया जाए।” कबीर जी युक्ति भरी बात सुनकर रामानंद जी चौंके कि अरे मेरे हृदय की बात कौन जान गया। स्वामी जी ने वैसे ही किया परंतु जो संत बाहर कबीर जी केपास बैठे हुए थे उन्होंने कहा “कबीर जी बिना प्रसंग के आप क्या बोल रहे हैं!?” कबीर जी ने कहा ऐसे ही एक प्रसंग आ गया था बाद मे आप लोगों को ज्ञात हो जाएगा।पूजा पूरी करने के बाद रामानंद जी गुफा से बाहर आए बोले “किसने माला की गांठ खोलकर पहनाने के लिए कहा था । सभी संतों ने कहा “कबीर जी ने अकस्मात हम लोगों के सामने उक्त बातें कही थी। रामानंद जी का हृदय पुलकित हो गया और अपने प्यारे शिष्य कबीर जी को छाती से लगाते हुए बोले “वत्स, तुमने मेरे हृदय की बात जान ली । मैं तुम्हारी गुरु भक्ति से संतुष्ट हूं तुम मेरे सत् शिष्य हो।”गुरू देव का आशीर्वाद व आलिंगन पाकर कबीर जी भाव विभोर हो गए, और गुरुदेव के श्रीचरणों में साष्टांग प्रणाम करके बोले, “प्रभु यह सब आपकी महती अनुकंपा का ही फल है। मैं तो आपका सेवक मात्र हूं ।”इस प्रकार कबीर जी पर गुरु रामानंद जी की कृपा बरसी और वे ब्रह्मज्ञानी महापुरुष हो गए।कबीरजी ब्रह्मज्ञान का अमृत लूटाने हेतु देशाटन करते थे।एक बार कबीर जी अरब देश पहुंचे वहा इस्लाम धर्म के एक प्रसिद्ध सूफी संत जहाँनिगस्त रहते थे। कबीर जी ने उनका बड़ा नाम सुना तो उनसे मिलने पहुंचे परंतु फकीर ने अपनी महानता के अहंकार के वशीभूत होकर कबीर जी से मुलाकात नहीं की। उन फकीर ने सिद्धियां तो प्राप्त कर ली थी। परंतु आत्मज्ञान न होने से अहंकार दूर नहीं हुआ था। एक दिन फकीर को रात्रि में स्वप्न आया कि किन्हीं हयात महापुरुष के दर्शन सत्संग के बिना तुम्हारा अज्ञान दूर नहीं होगा। अतः भारत में जाओ और संत कबीर जी के दर्शन करो। जहांनिगस्त फकीर ने पुछा”कौन कबीर?” “भारत के कबीर जिन्होने सिकंदर लोदी को पराजित किया और जो तुमसे मिलने आए थे। परंतु तुमने अहंकार वश उनसे मुलाकात नहीं की।”सुबह उठते ही स्वप्न की बात पर चिंतन करने लगे कि मै कबीर जी को पहचान न सका, ऐसे महापुरुष मेरे द्वार पर आए और मैंने उनका अपमान कर दिया इसलिए अल्लाह की ओर से मुझे यह आदेश हुआ है। अब मै कबीर जी के दर्शन अवश्य करूंगा। ऐसा निश्चय करके जहाँनिगस्त अरब से चल पड़े।इधर कबीर जी पहले ही जान गए जहाँनिगस्त आ रहे हैं । तो उनके बैठने के लिए आसन की व्यवस्था करा दी। साथ ही उन्होंने आश्रम के सामने एक सुवर बंधवा दिया।जब वे कबीर जी के आश्रम के निकट पहुंचे दूर से ही सुवर देखकर उनके मन में घृणा हुई। कि कबीर जी सुवर को क्यों बांधे हुए है? वे तो संत हैं उनको इससे दूर रहना चाहिए।इस प्रकार तर्क वितर्क कर लौटने का विचार करने लगे। संत कबीर जी उनके मनोभाव को जान गए। बोले “संत जी आइए क्यों इतने दूर से आकर वहां रुक गए हो?।”वे कबीर जी के पास आए थोड़ा विश्राम व भोजन के बाद कबीर जी के साथ सत्संग की चर्चा होने लगी। जहाँनिगस्त ने कबीर जी से पुछा “कि आप बहुत बड़े संत महापुरुष हैं परंतु आपने इस अग्र्याह को क्यों ग्रहण किया है?’ कबीर जी बोले “जहाँनिगस्त जी मैने अपने अ़ग्र्याह को भीतर से बाहर कर दिया है। परंतु आप अभी उसको भीतर ही रखे हुए।”‘मैं कुछ समझा नहीं।””मैंने भेदबुद्धि रुपी सुवर को भीतर से निकाल कर बाहर बांध दिया है। परंतु आप उसे अपने अंदर रखें हुए है और इस पर भी आप पवित्र बनते हैं। इस सुवर को आप अपने अंदर छिपाकर रखे हुए हैं।”यह सुनते ही उन फकीर का सारा भ्रम दूर हो गया। कबीर जी के सत्संग से उनकी अविद्या अर्थात जगत को सत्य मानना और अद्वैत परमात्मा को न जानना.. अस्मिता अर्थात देह को मै मानना..राग ,द्वेष, और अभिनिवेश अर्थात मृत्यु का भय अलविदा हो गए। *जिधर देखता हूं खुदा ही खुदा है, खुदा से नही कोई चीज जुदा है।* *जब अव्वल और आखिर खुदा ही खुदा है, तो अब भी वही है कौन इसके सिवा है।* *जिसे तुम समझते हो दुनिया हे गाफिल, यह कुलहक ही हक न जुदा न मिला है ।* इसलिए स्वामी शीवानंदजी कहते है कि, “ससांर सागर से उस पार जाने के लिए सचमुच सद्गुरु ही एकमात्र आधार है। “सत्य के कटंकमय मार्ग में आपको गुरु के सिवा और कोई उचित मार्गदर्शन नहीं दे सकता।गुरु कृपा के परिणाम अद्भुत होते हैं ।आपके दैनिक जीवन के संग्राम में सद्गुरु आपको मार्गदर्शन देंगे आपका रक्षन करेंगे गुरू ही ज्ञान के पथ प्रदर्शक हैं।

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