जख्मी न हुआ था दिल ऐसा सीने में खटकन दिन रात न थी पहले भी लगे थे सदमे बहुत रोया था मगर यह बात न थी मोहब्बत के रास्ते पर छुरिया तो चलती ही रही है दिल को जख्म मिलते रहे हैं सीने में कितनी ही मर्तबा धड़कनों की रफ़्तार महसूस की है आंखो ने जज़्बातों के सावन बरसाए है वाह रेे मेरे हबीब तेरे बेइंतहा इश्क़ के सदके तेरे इलाही हुस्न के सदके, तेरे खट्टे, मीठे नाज़ नखरों के सदके तेरे हज़ारों रुखो और बेरुखी के सदके खुदा की कसम तेरी इन रूहानी अदाओं ने आज तक मुझको बहुत सताया है बेहद सितम ढाया है मगर आज जैसा सदमा और ज़ख्म तो तेरे किसी वार से नहीं मिला सच में यह वार तो कातिलाना हैइस कदर की मेरी रूह तक को सीने का तीखा दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा और वो फड़फड़ाकर उड़ जाने को है बुल्लेशाह वहीं आश्रम के बाहर बैठा रूह की इस फड़फड़ाहट को झेल रहा था आज उसे याद आ रहे थे मोहब्बत के वो सभी खुश्क मौसम जिन जिन में इनायत ने उसे तड़पाया था उनकी रुखाई या खफ़गी की पतझड़ उनकी जुदाई की सर्द हवाएं जिनमें वह ठिठुरा था मगर जो भी हो इन मौसमों के खुश्की में भी कहीं न कही बाहर का एहसास जिंदा रहता था आज जैसा कहर किसी मौसम में न था ऐसे में बुल्लेशाह के दिल से एक कराह सरसरा कर छूट पड़ी।इतने गहरे और बारीक शब्द है कि सिर्फ सतशिष्य ही इसे समझ सकते है इनमें बुल्लेशाह अर्ज कर रहे है कि गुरुदेव मैं तो कबका आपके इश्क़ में मर गया था लेकिन आप तो मरे हुए को मारने से बाज़ नहीं आए घड़ी घड़ी आपने मुझे भैंसो वाली बेत से मारा, गेंद की तरह खुटी से खुटा।मुझे ज्यादा किसी से गुफ्तगू नहीं करने दी जब देखो गला घोंटते रहे मेरा और इस मर्तबा तो ऐसा कसके तीर चलाया की मेरी जान पर बन आई, सतगुरु और ऐसी बेरहम मारपीट ये कैसी अजीबोगरीब बाते है बुल्लेशाह की। क्या सच में गुरु इस दर्जे के तानाशाह होते हैं जी हां यकीनन गुरु तानाशाह होते हैं लेकिन मन के तानाशाह इलाही दुनिया का यह सुल्तान साधक के मन पर तानाशाही करते हैं उसके दिलों जिगर पर अपनी हुक़ूमत निभाते हैं अपने कानून की बेटी से उसके मन को पीटते हैं मुरीदी के कायदों के दायरे में उसे बांधते है मगर सतगुरु की यह अंदरूनी मार ही तो उनकी फिक्र और परवाह का सबूत है गुरु का बंधन ही तो खुदा तक की सीढ़ी है उसकी बेरुखी बेशक कड़वी है मगर यह दवाई है बड़े मर्जो का इलाज़।ईमान वाला सत्शिष्य ही यह जानता है मगर जब इन सबको सहन करने की बारी आती है तो अच्छे से अच्छा तथाकथित साधक भी तिलमिला उठते हैं ठीक जैसी आज बुल्लेशाह पर गुज़र रही है वह रो रो कर इनायत में उल्फत में गिले शिकवे कर रहा है।परंतु उसके अंदाज़ की शौखी तो देखिए तुसी छुपते हो ऐसा पकड़े हो असा नाल जुल्फदे जकड़े हो तुसी अस्सी छुपन नो तकदे हो हुड़ जाण न मिलदा नस खरजी। कितनी ही दफा तुम मुझसे छिपते छिपाते रहे हो और मैं पगला तुम्हे ढूंढ़ता रहा हूं। ढूंढ़ ढूंढ़ कर तुम्हें अपनी इश्क़ की जुल्फों में जकड़ता रहा हूं मगर वाह रे मेरे ओलिया मेरे सदगुरु बहुत खूब।तुम तो छुपने में खूब तगड़े निकले मैंने तुम्हे सुराख जितना भी रास्ता भी नहीं दिया फिर भी आज मेरी जिंदगी से निकलने की तैयारी कररहे हो तुझे अल्लाह का वास्ता कसम है खुदाई की। तू इतना बेदर्द बेरी न बन मेरे साईं मेरे सदगुरु बस इस दफा अपना नूरानी मुखड़ा देखने की इजाज़त दे दे।मुझे यूं न तरसा न रुला बाहर आकर देख तो ज़रा मेरी क्या हालत कर दी है तूने में यहां आधी रात को तेरे नाम की नमाज़ पढ़ रहा हूं नहीं जा सकता मैं और कहीं नहीं छोड़ सकती तुझको मेरे इनायत तेरी दूरी मेरे वली सही नहीं जाती, मेरी नम निगाहों ने आवाज़ दी है तुम्हे दिल की आहों ने आवाज़ दी है खड़ा हूं तेरी राह में तेरे इंतजार में। तुम्हे इन राहों ने आवाज़ दी है हवा थम गई है वक़्त ठहर गया है इन रुकी हुई सांसों ने हे सतगुरु तुम्हे आवाज़ दी है मैं रो रहा हूं ऐसे की अश्क बहते जाते तुम्हे दिल की ख़ामोश सदाओ मे है।मेरे दाता आवाज़ दी है सोचता हूं कि न आए तुम्हारा क्या हाल होगा बेचैन इन ख्यालों ने आज तुम्हे आवाज़ दी है बुल्लेशाह की अंदरूनी दुनिया में गम की ऐसी रात समाई थी कि उसे बाहर सुबह के उजाले का एहसास ही नहीं हुआ परन्तु तभी आश्रम के अंदर से उसे भैंसो के रंभाने की आवाज़ अाई जंजीरे खुटियों से टकरा रही थी बुल्लेशाह कहरा उठा यकीनन अब इनायत शाह चरगाह जाने के लिए बाहर आएंगे वह सांसे थाम कर फाटक की महिन झिलियो से अंदर झांकने की कोशिश करने लगा मगर सब फ़िज़ूल कुछ नज़र नहीं आया बुल्लेशाह झल्लाकर फाटक का ही कोसने लगा मेरे सब्रो इंतजार का इम्तहान यू न ले तेरे दर पर इंतजार मे मर जाऊंगा रोते रोते तभी फाटक से सटी दीवार मे नाली से झमाझम पानी बह निकला इस पानी मे चारे भूसे और गोबर की किच भी घुली थी बुल्लेशाह को समझते देर न लगी कि अंदर भैंसो को नहलाया धुलाया जा रहा है जो हमेशा चार्गाह से लौटने पर ही किया जाता था साथ ही की आस्ताने के आश्रम के कोठर से ही चारा और भूसा डालकर भैंसो को परोस दिया गया है मतलब की आज इनायत शाह बाहर नहीं आएंगे यह समस्त ही बुल्लेशाह के अरमानों के सारे महल ढह गए।वह घुटनों के बल जमीन पर गिर गया अब बुल्लेशाह मे जिद सिर चढ़कर बोल रही थी वो आहों की भाषा में अपनी बुलंद फरियादे उठाए जा रहा था हो मेरी आह में ऐसा असर कि वो आने को मजबुर हो जाएं हो मेरी इश्क़ मे वो तड़प। की तड़प में और असर उधर हो जाए। कहते है मुरिदो की राह पर आह की बोली सबसे असरदार होती हैं जो काम बुलंद से बुलंद चीख नहीं कर सकती वह एक साधक की बे आवाज़ आह कर जाती हैं इश्क़ की तड़प मे वो कशिश हुआ करती है जिससे सतगुरु अंसुनकर ही नहीं सकते बुल्लेशाह मुरिदी के इस राज से बखूबी वाकिफ था तभी अभी तक आंहो की महिन डोरी से सदगुरु को अपनी ओर खींचने की कोशिश में लगा था मगर आज इनायत की बेरुखी ने इस कानून की भी कद्र नहीं की शायद वे कोई इससे भी बड़ा कानून बुल्लेशाह की जिंदगी में उतारना चाहते थे वैसे भी सतगुरु के करम को कायदों या अक्ल की जिरह से कहां समझा जा सकता है।उनकी सुल्तानी अदाएं बेचारी गरीब समझ को कितनी समझ आ सकती हैं वे क्या और क्यों कर रहे है वह तो वहीं जान सकता है या फिर वह शक्स जाने जिसे वह खुद जने है क्यों सता रहा है तू क्यों रुला रहा है क्या ये चीख चीत्कार सब बेकार जा रहा है क्या सुन नहीं रहा, मेरी आहों आवाज़ को तो और सुन रहा है तो क्यों इतना सता रहा है आवाज़ का निकलना गले से अब मुश्किल ही लगता है सुन सके तो सुन ले धड़कने की अब तो ये दिल भी कराहता है परन्तु आज इन सवालों का कोई जवाब बुल्लेशाह के पास लौटकर नहीं आ रहा था।एक वक़्त था जब जमाने ने बुल्लेशाह को रुलाया था उस पर तानो, उलाहनो की गाज़ गिराई थी, उसके खिलाफ जिहाद की आंधी उठाई थी मगर वह इन खिलाफी सितमों से जूझ गया था सब कुछ आसानी से झेल गया था क्यों? क्यों कि उसके सिर पर सदगुरु का इलाही साया था सारे मर्जो का इलाज़ उनके पाक कदम थे आंसुओ से गीली करने के लिए सदगुरु की गोद थी सारे शिकवे शिकायते उड़ेलने के लिए उनका दिलासा भरा प्यार या मगर आज वह इनायत की शिकायत किसे करे?गुजरते वक़्त के साथ बुल्लेशाह टूटता गया उसकी सारी उम्मीदें गुमराह हो चली आश्रम के अंदर जाने का रास्ता भी बंद था बुल्लेशाह की काफियो और इतिहास से यह प्रमाण मिलता है कि इस दौर में उसके मन में दो रास्तों ने दस्तक दी पतले रास्ते ने कहा कि बुल्लेशाह यहां तो रोना धोना और इनायत की दम घोटू हुक़ूमत यू ही चलती रहेगी तेरे लिए आंखे बिछाए बैठी है दौलत शोहरत मिल्कियत अपने पन की हमदर्दी सुभान अल्लाह क्या नहीं है वहां एक कदम बढ़ा और बना ले अपनी किस्मत।कहते है मन द्वारा इस रास्ते की बांग पर बुल्लेशाह कांप उठा फौरन उस पर थूक डाला इस सोच को सिरे से नकार कर दिया रूहे इशरत मुझे फरेब न दे नेखो बद की तमीज है मुझको जो किया है अदा मोहब्बत ने गम वो भी बेहद अजीज है मुझको ये सर अब कट सकता है मेरे जिस्म की बूटी बूटी हलाल हो सकती है मगर में अपनी रगो में बेवफाई का खून लेकर घर वापस नहीं जा सकता अपनी सांसे किसी और के लिए मैली नहीं कर सकता रूह पर कूर्फ का कलंक लेकर नहीं जा सकता बुल्लेशाह रेत मे मुट्ठियां मार मार कर पहले रास्ते को फटकार ही रहा था तभी मन द्वारा दूसरे रास्ते ने दस्तक दी नहीं जा सकती तो तुझे अब जीने का कोई हक भी कहा है बुल्लेशाह अब किसके आसरे जिएगा?किस मकसद के लिए जिएगा अगर तू नहीं है मेरी जिंदगी में नहीं जिंदगी से है कोई वास्ता, सच कहता हूं तू ना मिला अगर उस जिंदगी का मौत ही है रास्ता कैसे कहूं? खुद से कितना लड़ा हक़ीक़त मगर ये वही पर खड़ा हूं अब थक चुका हूं बहुत रों चुका हूं हुआ खत्म जीवन से जो भी है सिला अगर तू नहीं है मेरी जिंदगी में नहीं जिंदगी से कोई वास्ता यकीनन अब तुझे मर ही जाना चाहिए बुल्लेशाह इनायत के बगैर न कोई तबस्सुम है न कोई नज़ारा है जिसे देख देख तू ज़िन्दगी जिये अगर आंख और कान बंद करके तो जी भी लिया तो सीने के इस तीखे आजाब को कैसे झेलेगा? तेरे गले में जज़्बातों के ऐसे ऐसे फंदे पड़े है वो वैसे ही तेरा दम घोट लेंगे इसलिए खैरियत इसी में है कि बुल्लेशाह तू खुद खुशी कर ले मगर वो कहते है ना कि मुंह फेरकर जिंदगी से मौत के आगोश में समा जाएंगे मुंह पर अगर यह दामन भी रास नहीं आया तब हम कहां जाएंगे? यही सवाल बुल्लेशाह की मुरीदी ने उठाया बुल्लेशाह यह मौत का रास्ता तो बड़ा आसान है चुनने को तो तू इसे चुन सकता है मगर क्या इस पर बढ़ने पर तेरी बेजिसम रुह को करार मिल जाएगा अगर जन्नत भी मिली तो क्या वो सदगुरु के बिना दोहजक से कम ना होगी अरे तेरा मुकाम मौत नहीं तेरा मुकाम तो सतगुरु के चरण है इनायत शाह है तेरे जलते सीने का करार उनकी मीठी मुस्कान है तेरी फड़फड़ाती रुह को चैनो अमन कब्र में दफन होने से नहीं गुरु के पाक कदमों में समा जाने पर ही मिलेगा अरे बुजदिल हिम्मत है तो इस जुदाई की आग को झेलकर दिखा आग में खुद को सेंक सेंककर ऐसी इबादत कर की जिंदगी नहीं तो कम से कम मौत को उनके कदमों का एहसान मिल जाए मरने के लिए ए दिल कुछ और ताबीर कर ले मरने के लिए ए दिल कुछ और तदबीर कर ले उनके कदमों में मरे अभी काबिल नहीं है तू बुल्लेशाह तुझे खुद खुशी नहीं शहीदी मनानी है।अपने रूठे यार को मनाना है उसे अपना बनाना है जिस्म से आखरी मांस निकलने से पहले उन्हें बाहे फैलाने को मजबुर करना है बुल्लेशाह इन्हीं ख्यालों में खोया रहा और वहां से अपना मुर्दे जैसा शरीर उठाकर चल पड़ा परन्तु कहां जा रहा है यह स्वयं बुल्लेशाह को भी नहीं पता।