तुमको वह खजाना कब चाहिए ? – पूज्य बापू जी

तुमको वह खजाना कब चाहिए ? – पूज्य बापू जी


कितनी भी सिद्धियाँ हासिल कर लो, इन्द्रपद पा लो लेकिन यदि संयम जीवन में नहीं है तो कोई लाभ नहीं, आत्मसाक्षात्कार नहीं होगा । संयम जीवन में बहुत आवश्यक है ।

ईश्वर के सिवाय कहीं भी मन लगाया तो अंत में रोना ही पड़ेगा और 84 लाख योनियों में करोड़ों वर्ष भटकना पड़ता है । थोड़ी-सी असावधानी और करोड़ों वर्ष का गर्भवास का दंड….! और गर्भ मिले हर समय यह जरूरी नहीं । तुमको तो गर्भ मिला लेकिन तुम्हारे कई भाई बहन नाली में बह गये – इस बात को समझने में देर नहीं लगेगी । ऐसे यह तो मनुष्य योनि है, बिल्ला, कुत्ता, गधा, घोड़ा आदि और भी 84 लाख योनियों में कई बार गर्भ नहीं मिला तो छटपटा के जमीन पर तड़प कर मर गये, इस प्रकृति के चक्र में चले । थोड़ी सी असावधानी से कितनी तबाही है !

मुफ्त में ब्रह्मज्ञानी गुरु का सान्निध्य मिला है न, तो मूर्ख लोग यह लाभ नहीं उठा सकते जो गुरु देना चाहते हैं ।

अब मनुष्य जन्म पाकर भी अगर मन के गुलाम बने रहे तो 84 का चक्कर चालू…. इसलिए भगवान वसिष्ठजी कहते हैं श्री रामजी को कि “बलपूर्वक वासना को मिटाना चाहिए, मन की चंचलता को मिटाना चाहिए और चित्त के अज्ञान को मिटाना चाहिए ।”

चित्त का अज्ञान मिटने से वासनाक्षय और मनोनाश स्वाभाविक हो जाता है । ये तीनों चीजें बहुत ऊँची हैं । योगवासिष्ठ में हैं ये वासनाक्षय, मनोनाश और तत्त्वज्ञान । तत्त्वज्ञान चित्त में आया तो वासनाक्षय और मनोनाश हो जायेगा । और तत्त्वज्ञान आयेगा गुरु की कृपा से ।

वासनाक्षय, मनोनाश और ‘दुःख-पीड़ा शरीर में है, हम तक नहीं हैं’ – ऐसा ज्ञान… किसी को भगवान श्रीकृष्ण जी का, श्रीरामजी का, देव का दर्शन हो जाय फिर भी ये तीन चीजें नहीं हैं तो वह निर्दुःख नहीं हो सकता और ये तीन चीजें हैं तो कितना कुप्रचार, कितनी कुसुविधा, शरीर में कितनी गड़बड़ है फिर भी…. ‘हम हैं अपने-आप, हर परिस्थिति के बाप !’

ईश्वर तो मिल जाता है लेकिन ईश्वर जिनको दुर्लभ नहीं दिखता ऐसे ब्रह्मज्ञानी गुरु की छत्रछाया मिलना बड़ा कठिन है, दुर्लभ है । ईश्वर तो पूरे अयोध्यावालों को मिले थे, पूरे द्वारकावालों के बीच में थे, अर्जुन के साथ थे फिर भी ये तीन चीजें अर्जुन के पास नहीं थीं तो वे भयभीत हो गये, किंकर्तव्यविमूढ़ (कर्तव्य का निर्णय करने में असमर्थ) हो गये । दुःख से नहीं छूटे । जब श्रीकृष्ण ने कृपा करके ब्रह्मज्ञानी गुरु का पद सँभाला और अर्जुन को ब्रह्मज्ञान दिया तो अर्जुन बोलते हैं- ‘नष्टो मोहः स्मृतिलब्धा…. शरीर मैं हूँ और संसार सच्चा है – यह नासमझी है, मोह है और वह नष्ट हो गया तुम्हारी कृपा से ।’

ऐसे ही लीलाशाह प्रभु की कृपा से हमको वह खजाना मिल गया । अब तुमको वह खजाना कब चाहिए ? कब पचाओगे, पता नहीं ! बहुत ऊँची बात है… चाहिए ? इसका विचार करना सभी, औरों को भी समझाओ ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2020, पृष्ठ संख्या 2 अंक 331

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