विचारशील पुरुष को चाहिए कि जिस दिन श्राद्ध करना हो उससे एक दिन पूर्व ही संयमी, श्रेष्ठ ब्राह्मणों को निमंत्रण दे दे | परंतु श्राद्ध के दिन कोई अनिमंत्रित तपस्वी ब्राह्मण घर पर पधारे तो उन्हें भी भोजन करना चाहिए | श्राद्धकर्ता पुरुष को घर आये हुए ब्राह्मणों के चरण धोने चाहिए | फिर अपने हाथ धोकर उन्हें आचमन कराना चाहिए | तत्पश्चात उन्हें आसन पर बिठाकर भोजन कराना चाहिए | पितरों के निमित्त अयुग्म अर्थात एक, तीन, पाँच, सात इत्यादि की संख्या में तथा देवताओ के निमित्त युग्म अर्थात दो, चार, छ : आठ आदि की संख्या में ब्राह्मणों को भोजन कराने की व्यवस्था करनी चाहिए | देवताओं एवं पितरों, दोनों के निमित्त एक-एक ब्राह्मण को भोजन कराने का भी विधान है |