भगवन्नाम – जो गुरुमंत्र मिला है उसको जितना दृढ़ता से जपता है उतना ही उस मंत्र की अंतःकरण में छाया बनती है, अंतःकरण में आकृति बनती है, अपने चित्त के आगे आकृति बनती है । कभी-कभी भ्रूमध्य में (दोनों भौहों के बीच) मंत्र जपते-जपते ध्यान करना चाहिए । मानो ‘राम’ मंत्र है तो ‘श्रीराम’ शब्द, ‘हरिॐ’ मंत्र है तो ‘हरिॐ’ शब्द भ्रूमध्य में दिखता जाय अथवा और कोई मंत्र है तो उसके अक्षरों को देखते-देखते भ्रूमध्य में जप करें तो तीसरा नेत्र खोलने में बड़ी मदद मिलती है । उसको बोलते हैं ज्ञान-नेत्र, शिवनेत्र । उससे व्यक्ति त्रिलोचन बन जाता है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2020, पृष्ठ संख्या 19 अंक 332
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ