भगवान समस्याएँ क्यों देते हैं ? – पूज्य बापू जी

भगवान समस्याएँ क्यों देते हैं ? – पूज्य बापू जी


बच्चा जो अपने लिये चाहे वही माँ-बाप करते जायें तो बच्चे का कभी विकास नहीं हो सकता । लेकिन माता-पिता जानते हैं कि बच्चे को किस वक्त क्या चीज देने से उसका कल्याण होगा । ऐसे ही हमारे माता-पिता के भी मात-पिता परमात्मा हैं, वे सब जानते हैं कि आपको किस समय सुख की जरूरत है, किस समय दुःख की जरूरत है, किस समय अपमान की जरूरत है, किस समय बीमारी की जरूरत है, किस समय तन्दुरुस्ती की जरूरत है, वे सब जानते हैं इसलिए सुव्यवस्थित ढंग से देते रहते हैं । अगर वे नहीं जानते होते तो तुम जो चाहते वह होता रहता और तुम जो चाहते हो वह होता रहता न, तो अभी तुम यहाँ (ब्रह्मज्ञान के सत्संग) में नहीं होते । तुम जो चाहते वह होने लगता तो तुम अभी ब्रह्मविद्या सुन के अपनी 21 पीढ़ियों का उद्धार करने का पुण्य कमाने इस जगह पर पहुँच नहीं पाते ।

एक महात्मा थे । वे ईश्वर से कुछ नहीं माँगते थे तो उनकी वाणी में बड़ा प्रभाव था । उनका दर्शन करके लोग आनंदित हो जाते थे, चित्त प्रसन्न हो जाता था । लोग बढ़ने लग गये । महात्मा तो दयालु होते ही हैं, प्राणिमात्र के परम सुहृद होते हैं तो लोग आ के  अपना दुखड़ा रोये, कोई कुछ दुखड़ा रोये ।

महात्मा एक दिन समाधि में बैठे और भगवान को कहाः “देखो, मैंने आज तक तुम्हारे से कुछ नहीं माँगा और अपने लिए माँगूगा नहीं । मेरे पास जो भी व्यक्ति आते हैं उनकी जो समस्याएँ हैं, उन्हें हल कर दे बस ! इतना कर दे ।”

भगवान ने कहाः “महाराज ! छोड़ो इस बात को । मैं जो करता हूँ, ठीक है ।”

लेकिन महाराज भी ब्रह्मवेत्ता थे, उन्होंने कहाः “तुम जो करते हो वह ठीक है तो भी मैं जो कहता हूँ वह भी ठीक है, हस्ताक्षर कर दो ।”

“अब मैंने तो वचन दिया है कि ज्ञानियों से मैं परे नहीं हूँ । आप अगर आग्रह करते हो तो मैं हस्ताक्षर कर देता हूँ किंतु महाराज जी ! इसमें मजा नहीं है ।”

“ठीक है, देख लेंगे पर एक बार मेरे पास जो भी आते हैं उनकी सब समस्याएँ हल कर दो । करो हस्ताक्षर ।”

भगवान का हाथ पकड़ के उस बात पर हस्ताक्षर करा दिया । लोगों की तो रातों-रात समस्याएँ हल हो गयीं ।

शनीचर की  रात थी, समस्याएँ हल हो गयीं, रविवार को देखा तो कोई व्यक्ति ही नहीं कथा में ।

महाराज ! बाबा जी ने धीरज बाँधा, ‘चलो, लोगों ने समझा होगा की बाप जी गये हैं बाहर, चलो ।’

सोमवार को देखा, कोई व्यक्ति नहीं, मंगल को देखा, कोई व्यक्ति नहीं । बुधवार को भी देखा कि कोई व्यक्ति नहीं आया तो बाबा जी ने ध्यान किया और भगवान से पूछा ।

भगवान बोलेः “महाराज ! आप बोलते थे कि ‘उनकी समस्याएँ हल कर दो, उनकी सब इच्छाएँ पूरी कर दो ।’ अब उनको इच्छित पदार्थ मिल गये तो उन्हीं में फँस गये । कुछ थोड़ी बहुत गड़बड़ करके भी मैं इधर लाता था ताकि वे सत्य को पा लें । आपने मेरे से हस्ताक्षर करा दिया इसलिए वे तो अपने मौज-मजा (विषय-भोगों) में मरने को जा रहे हैं, नरक की तरफ जा रहे हैं ।”

बाबा ने कहाः “भगवान ! तुम्हारी बात ठीक थी ।”

कुछ अटक-सटक न होती तो हमारे जीवन का विकास नहीं होता । इसका मतलब यह नहीं कि हम चाहेंगे कि आपको समस्याएँ मिलें, हम यह नहीं चाहते । लेकिन परमात्मा जो करता है वह ठीक करता है । कभी कोई समस्या हल हुई…. कभी कोई आयी…. ऐसा करते-करते सब समस्याओं का जो मूल कारण है जन्म-मृत्यु, वह जन्म-मृत्यु की समस्या हल हो जाय न, तो बाकी समस्याओं का महत्त्व नहीं रहेगा । बार-बार जन्म लेना, फिर मरना… यह बड़े-में-बड़ी समस्या है । इस बड़ी समस्या को दूर करने के लिए भगवान छोटी समस्याएँ देते हैं ताकि वहाँ जाओ जहाँ इनकी पहुँच नहीं है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2020, पृष्ठ संख्या 6,7 अंक 332

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