जिस विद्या से तुम्हारे चित्त में विश्रांति नहीं, जिस विद्या से तुम्हें भीतर का रस नहीं आ रहा है वह विद्या नहीं है, वह बुद्धि नहीं है, वे सूचनाएँ हैं । बुद्धि तो वह है जिससे तुम्हारा हृदय इतना सुंदर-सुकोमल हो जाय कि दूसरों के सुख में तुम्हें सुख महसूस होने लगे, दूसरों के सुख में तुम्हें सुख महसूस होने लगे, दूसरों के दुःख को देखकर तुम्हारे चित्त में संवेदना होने लगे । शरीर के लाभ में तुम्हारे चित्त में समता बनी रहे, शरीर की हानि में भी तुम्हारे चित्त में समता बनी रहे, यह बुद्धिमानी है । छोटी-मोटी चीजों में तुम उलझ न जाओ, छोटे मोटे दुःख में तुम घबरा न जाओ, छोटे-मोटे सुख में तुम फँस न जाओ यह बुद्धिमत्ता है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2020, पृष्ठ संख्या 19 अंक 335
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