ध्यान को शौक की सब्जी मत बनाओ

ध्यान को शौक की सब्जी मत बनाओ


असल में संसारी लोग न तो शुद्ध ध्यान चाहते हैं और न शुद्ध ज्ञान चाहते है । उनकी स्थिति तो कुछ इस प्रकार की होती हैः

एक महिला बहुत मोटी थी । वज़न करने का उपाय पूछने के लिए वह गयी डॉक्टर के पास । तो डॉक्टर ने बताया कि तुम हरी-हरी सब्जी व सेब, सन्तरा आदि फल खाओ । तुम्हारा वज़न घट जायेगा ।”

अब घर आयी तो नौकर को सब लिखकर दिया कि हमको यह-यह चाहिए । नौकर ले आया । खा लिया । फिर उसके बाद रोज खाने वाली थाली मँगायी और वह भी खाया । महीने भर बाद जब डॉक्टर के पास गयी तो वज़न तो बढ़ा हुआ मिला । पाँच पाउंड (2.26 कि.ग्रा.) वज़न और बढ़ गया था ।

बोलीः “अरे डॉक्टर ! तुमने जैसा बताया वैसा मैंने किया । वज़न क्यों बढ़ गया ?” डॉक्टर सोच में पड़ गया कि ‘बात क्या है ?’

डॉक्टर न  पूछाः “तुमने सब्जी खायी ?”

“खूब खायी ।”

“सेब, संतरा खाया ?”

“खाया ।”

“पत्ते भी जब तुमने चबाये तो वज़न क्यों बढ़ा ? रोज जो भोजन खाती थीं उसको भी खा लिया ?”

“हाँ ।”

डॉक्टर बोलाः “तुमने पुराना पेटूपन का शौक नहीं छोड़ा और इलाज को भी शौकपूर्ति के उद्देश्य में जोड़ दिया तो वज़न बढ़ गया । आया आपके ध्यान में ?”

तो ये संसारी लोग जो हैं वे जब महात्माओं के पास जाते हैं और महात्मा लोग बताते हैं कि थोड़ा भजन करो, थोड़ा ध्यान करो, थोड़ा जप करो ।’ तो होता क्या है कि पैसा तो हमारे पास ज्यों का त्यों बना रहे । हमारा भोग ज्यों का त्यों बना रहे । कुर्सी ज्यों की त्यों बनी रहे । रोज का जो भोजन है वह ज्यों का त्यों बना रहे और यह जो ध्यान है, भजन है यह इनके लिए शौकिया सब्जी है, वह भी खा ली । माला फेरते हैं सब्जी खाने की तरह, ध्यान करते हैं फल खाने की तरह, भजन करते हैं सलाद खाने की तरह और रोज का वासनारूपी भोजन तो ज्यों का त्यों ! उसमें तो कोई अंतर नहीं । अरे भाई ! रोज के भोजन में थोड़ा फर्क करो । उसको थोड़ा कम करो और फिर सब्जी खाओ, तुम्हारा वज़न घटता है कि नहीं ।

तो ये जो संसारी लोग हैं वे अपनी वासना को घटायेंगे नहीं, भोग को घटायेंगे नहीं । ‘ब्लैक मार्केट’ रोज़ बढ़ता जायेगा । चिंता रोज़ बढ़ती जायेगी । बोले, ‘हमने इतना भजन किया, हमको तो कोई फायदा नहीं हुआ । हमारा मन नहीं टिका ।’

तो ध्यान को शौक की सब्जी मत बनाओ ।  अपने कर्म में, अपने भोग में, अपने संग्रह में, अपने वचन में थोड़ा-थोड़ा अंतर डालते जाओ । फिर देखो भजन का प्रभाव ! भजन माने है मन का निर्माण ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2021, पृष्ठ संख्या 7 अंक 338

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