सच्चा सौन्दर्य क्या ?

सच्चा सौन्दर्य क्या ?


भारत की जो माताएँ-बहनें पाश्चात्य रंग-रोगन व फैशन-प्रधान जीवनशैली का अनुसरण करने में गौरव मानती हैं उन्हें अब इस भुलावे से बाहर आ जाना चाहिए । फैशनेबल वस्त्र पहनने से वास्तविक सुख-सौन्दर्य का कोई सम्बंध नहीं है, सच्ची सुन्दरता तो व्यक्ति का उज्जवल चरित्र है । ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु का आदर, इन्द्रियों का संयम, मधुर भाषण, ब्रह्मचर्य, उच्च विचार, सदाचार, प्रभुप्रीति जैसे सदगुणों से सुशोभित व्यक्ति ही सच्चा सौंदर्यवान है ।

श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी कहते हैं- “जिस सुन्दरता के साथ हमारे चरित्र की पवित्रता, भावों की विशुद्धि और आचरण की शुचिता है वह सुंदरता वास्तविक है । शेष समस्त सौंदर्य यथार्थतः वैसा ही है जैसा जहर से भरा चमकता हुआ स्वर्ण कलश । इस भयानक सुन्दरता से अपने को बचाओ और इसीलिए बाहरी रूप-रंग, वेशभूषा, साज-श्रृंगार के चक्कर में न पड़कर विचारों, भावों ओर गुणों को सुंदर बनाओ तथा उन्हीं के अनुसार अपनी क्रिया को सुन्दर बनाओ । इससे शरीर, मन व बुद्धि स्वस्थ होंगे । इसी से अपने में ही स्थित आत्मा के शुभ दर्शन होंगे (अनुभव होगा) ।”

पूज्य बापू जी के सत्संग में आता हैः “जिससे हाड़-मांस का शरीर सुंदर दिखता है, ऐसे परम सुंदर परमात्मा को छोड़कर जो शरीर की सुंदरता के पीछे लगा है उस जैसा अभागा और कौन हो सकता है ? नश्वर चीजें प्यारी और आकर्षक लगती हैं, उनको सुंदरता देने वाला व चैतन्य आत्मा है । उसके सौंदर्य छोड़कर जो चीजों के सौंदर्य में लगता है वह अभागा है ।

सुनहु उमा ते लोग अभागी ।

हरि तजि होहिं विषय अनुरागी ।।” (श्रीरामचरित. अरं. कां. 32.2)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2021, पृष्ठ संख्या 29 अंक 340

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