शास्त्रानुकूल आचरण का फल क्या ? – पूज्य बापू जी

शास्त्रानुकूल आचरण का फल क्या ? – पूज्य बापू जी


शास्त्रानुकूल आचरण, धर्म-अनुष्ठान का फल यह है कि ससांर से उबान आ जाय, वैराग्य आ जाय । अगर वैराग्य नहीं आता तो जीवन में धर्म नहीं किया तुमने, शास्त्रों का पूरा अर्थ नहीं समझा । सत्संग का, शास्त्र अध्ययन का, धर्म का फल यही हैः

धर्म तें बिरति जोग तें ग्याना । ग्यान मोच्छप्रद बेद बखाना ।। (श्रीरामचरित. अर. कां. 15.1)

धर्म का अनुष्ठान (धर्म का आचरण) करने से विरक्ति और योग का अनुष्ठान करने से ज्ञान होता है । ज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है, निर्वाण हो जाता है । जैसे दीया निर्वाण हो जाता है, बुझ जाता है ऐसे ही ज्ञान से जन्म-मरण की परम्परा टूट जाती है, खत्म हो जाती है, तभी तो उसने मनुष्य जन्म का फल पाया, नहीं तो मजूरी कीः ‘हईशो-हईशो-हईशो….।’ खिला-पिला के शरीर बनाया, उसको भी जला दिया । क्या किया ?

मृत्यु आकर अपने को संसार से ले जाय उसके पहले अपने ढंग से ही भगवान की तरफ चल लेना ठीक है । मौत आकर घसीट के मकान से बाहर निकाल दे उसके पहले मकान की ममता छोड़ दी जाय । शरीर मुर्दा बन जाय और कुटुम्बी या साधक लोग चीजें दूसरों का बाँटें उसके पहले अपने हाथ से क्यों न बाँट देना ? ईश्वर के सिवाय किसी भी वस्तु, व्यक्ति, अवस्था में मन लगाना यह अपने से धोखा करना है । धर्म तें बिरति….

कितने धार्मिक हैं हम ?

हमारे हृदय में धर्म हुआ है कि नहीं ? धर्म होगा तो वैराग्य भड़केगा । जितना धर्म का रंग गाढ़ा होगा, उतनी वैराग्य की खुमारी अधिक रहेगी और जितना पापाचरण होगा उतनी विषय भोगने में रुचि रहेगी । फिर देखेगा नहीं कि मैं कौन-सी चीज का उपभोग कर रहा हूँ, क्या कर रहा हूँ । वासना व्यक्ति को अंधा कर देती है । वासना अंधा करे उसके पहले ज्ञान की आँख खुल जाय । मौत मार दे उसके पहले अमरता का रस आ जाय । कुटुम्बी घर से बाहर निकालें अर्थी पर, उसके पहले ही हम अपने मन को ही कुटुम्ब स बाहर निकाल के परमात्मा में लगा दें । ॐॐॐ…

वे लोग स्वयं से ही धोखा करते हैं

ईश्वर के रास्ते चलने वालों को जो भोगों में गिराते हैं, संसार में आकर्षित करते हैं वे लोग बहुत पाप कमाते हैं । जो लोग भोग-वासना के संकल्प करते हैं, भोग की तृप्ति चाहते हैं, ईश्वर के मार्ग पर जाने वाले व्यक्तियों से संसार का उल्लू सीधा कराना चाहते हैं, वे लोग अपने-आपसे धोखा करते हैं । किसी का वस्त्र या धन छीन लेना इतना पाप नहीं है, किसी की दुकान या मकान छीन लेना इतना पाप नहीं है जितना पाप भगवान का रास्ता छीन लेने से होता है । किसी साधक का या किसी संत का समय छीन लेने से बहुत पाप  होता है । संत तो क्षमाशील होते हैं, वे तो कुछ नहीं करेंगे लेकिन संत का समय लेने वाले लोग अगर ईश्वर के रास्ते नहीं चले तो उन्हें बहुत बदला चुकाना पड़ेगा । ईश्वर के रास्ते चलने के नाते अगर संत का समय लिया तो ठीक है किंतु यदि नहीं चले और संत का समय व्यर्थ में नष्ट किया तो उसका बदला चुकाना पड़ता है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2021, पृष्ठ संख्या 4 अंक 341

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