सेवा-अमृत

सेवा-अमृत


(पूज्य बाप जी के सत्संग से संकलित)

भलाई करके ईश्वर को अर्पण करोगे तो ईश्वरप्रीति मिलेगी, ईश्वरप्रीति मिलेगी तो बुद्धि ईश्वर-विषयिणी हो जायेगी ।

जितना हो सके भलाई करो, किसी भी प्रकार से बुराई न करो तो ईश्वर को प्रकट होना ही है ।

जो जबरन परोपकार करता है उसके हृदय में ज्ञान प्रकट नहीं होता, जो समझकर परोपकार करता है उसके हृदय में ज्ञान प्रकट होता है ।

तटस्थ विचारों के अभाव के कारण व्यक्ति कर्मों के जाल में बँधता है ।

गुरुसेवा सब तपों का तप है, सब जपों का जप है, सब ज्ञानों का ज्ञान है ।

ईमानादारी से जो गुरुसेवा करते हैं उनमें गुरुतत्त्व का बल, बुद्धि, प्रसन्नता आ जाते हैं ।

गुरुसेवा से दुर्मति दूर होती है ।

देश के लिए,  विश्व के लिए मानव-जाति के लिए वे लोग बहुत बड़ा काम करते हैं, बहुत उत्तम काम करते हैं जो संत और समाज के बीच मे सेतु बनने की कोशिस करते हैं और वे लोग बड़ा खतरा पैदा कर रहे हैं जो संतों और समाज के बीच में अश्रद्धा की खाई खोद रहे हैं ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2021, पृष्ठ संख्या 17 अंक 341

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