हम चाहते है कि बापूजी की अनुपस्थिति मे मैया जी,, दीदी जी का आश्रम
में सत्संग चले, इस बात की मांग हम उठाये थे, लेकिन हमें बहुत बड़ा
खामियाजा भुगतना पड़ा ।।
गुरुदेव की अनुपस्थिति में आश्रम में किसका सत्संग चलाना चाहिए इसका निर्णय गुरुदेव करते है. दुसरे किसीको यह अधिकार नहीं है कि वो अपनी चाह के अनुसार किसको आश्रम में सत्संग करने के लिए बिठा दे. गुरुदेव ने कभी भारती दीदी को आश्रम में सत्संग करने की अनुमति नहीं दी. ६ साल पहले अमेरिका से एक साधक आये थे उन्होंने गुरुदेव से आश्रम में दीदी का सत्संग कराने की आज्ञा मांगी तब गुरुदेवने उस साधक को थप्पड़ मारकर अमेरिका भगा दिया था. जब गुरुदेव नहीं चाहते हो कि दीदी आश्रम में सत्संग करें तो भी जो गुरुदेव की आज्ञा के विपरीत अपनी मनमानी से दीदी के सत्संग की इच्छा रखते है वे गुरु के शिष्य ही नहीं है. उनको गुरु के आश्रम में रहने का अधिकार नहीं है. उनको दीदी के आश्रम में चले जाना चाहिए. जो शिष्य गुरु के आश्रम में अपनी मनमानी करना चाहते है वे गुरुमुख नहीं है, मनमुख है. दीदी को जब गुरुदेव ने अपनी संस्था से अलग कर दी हो तब उनका उस संस्था से कोई सम्बन्ध नहीं रहता. फिर भी वे अपना अधिकार जमाने के लिए आश्रम के संचालकों के विरुद्ध बाहर के साधकों को भिडाने की कोशिश करने लगे तब मुझे उनकी पोल खोलनी पड़ी. मेरे पत्रों के द्वारा साधकों को सावधान किया. उस पत्र में तो उनकी द्वेषपूर्ण वाणी के १२ मिनट के प्रवचन में वे कितने झूठ बोलते है यह बताया गया है. अगर उनके जीवन के झूठ कपट पर मैं लिखूं तो एक पुस्तक बन सकती है जिसका नाम प्रभुजी की पोलखोल रख सकते है पर मैं किसीकी दुकानदारी बंद करना नहीं चाहता. उस पत्र के बाद उन्होंने स्वयं तो मेरे गुरदेव के साधकों में फूट डालने का काम याने आश्रम के साधको और बाहर के साधकों में फूट डालने का काम बंद कर दिया पर उनके भक्तों के द्वारा यह काम अभी भी चल रहा है यह इस तथाकथित समर्पित साधक के पत्र से स्पष्ट होता है. अगर यह बंद नहीं होगा तो मुझे उस पुस्तक को अंग्रेजी, हिंदी आदि भाषाओं में विश्वभर में प्रकाशित करना पड़ेगा. और उस पर एक डाक्यूमेंट्री विडियो भी बनानी पड़ेगी जिसका नाम होगा “भूत भारती भंडाफोड़.” उसका भी विश्वभर में प्रचार होगा फिर दीदी की दुकानदारी बंद हो जायेगी. दीदी अगर अपनी दुकानदारी चालु रखना चाहती है तो अपने भक्तों को आश्रम की निंदा करने से रोकें.