गुरु व माता-पिता की आज्ञा का महत्व – डॉ. प्रेमजी

गुरु व माता-पिता की आज्ञा का महत्व – डॉ. प्रेमजी


अब छोरी कहती है, “हमारे परिवार में अलग अलग स्वभाव, रूचि व मत के व्यक्ति हों फिर भी घर के बड़े व्यक्ति को सभी से तालमेल बिठाकर सबको साथ लेकर चलना चाहिए। इसी में परिवार का कल्याण निहित है।”

जिस छोरी को उसकी WEBSITE में अपना जीवन चरित्र छपाते समय घर के बड़े व्यक्ति का नाम पिता के रूप में बताना आवश्यक नहीं लगा उस छोरी को अब घर के बड़े व्यक्ति की याद आ गयी यह आश्चर्यकारक है। चमचे और चम्चियों ने छोरी का अहंकार इतना बढ़ा दिया है कि वह अब जिनका उपदेश सुनकर उसको पालन करना चाहिए ऐसे ब्रह्मज्ञानी पिता को ही उपदेश देने लगी है कि उनको कैसे चलना चाहिए। हर परिवार में अलग अलग स्वभाव, रूचि व मत के व्यक्ति होते है और उनके कल्याण के लिए बड़े व्यक्ति का आदेश छोटे व्यक्तियों को मानना चाहिए यह शास्त्र का आदेश है। भगवान् श्री राम उनके भ्राता लक्ष्मण जी को कहते है:

मातु पिता गुरु स्वामी सिख सर धरी करहीं सुभायँ ।

लहेऊ लाभ तिनु जनम कर नतरु जनम जग जायँ ।।

 (श्री राम चरित मानस, अयोध्या काण्ड, ७०)

“जो लोग माता पिता गुरु और स्वामी की शिक्षा को स्वाभाविक ही सर चढ़ाकर उसका पालन करते है, उन्होंने ही जन्म लेने का लाभ पाया है; नहीं तो जगत में जन्म व्यर्थ है।”

राज्याभिषेक के बदले १४ साल वनवास की आज्ञा जब पिता दशरथ ने रामजी को दी तब भी वे उस आज्ञा के पालन का कितना महत्त्व समझते है यह उन्होंने भ्राता भारत को बताया है।

मोर तुम्हार परम पुरुषारथ स्वारथ सुजस धरम परमारथ ।

पितु-आयसु पालिय दुहूँ भाई लोक बेद भल भूप भलाई ।।

“मेरा और आपका अत्युत्तम पुरुषार्थ, स्वार्थ, सुयश, धर्म और परमार्थ यही है कि दोनों भाई पिता की आज्ञा का पालन करें, यह लोक तथा वेद-मत से उत्तम है, और राजा की प्रतिष्ठा है अर्थात परलोक में उनकी आत्मा प्रसन्न होगी।” 

महाभारत राज्धार्मानुशासन पर्व के १०८ वे अध्याय में भीष्म पितामह राजा युधिष्ठिर को माता पिता और गुरु जनों की आज्ञा का महत्त्व बताते हुए कहते है:

 “तात युधिष्ठिर, भली भाँती पूजित हुए वे मातापिता और गुरु जन जिस काम के लिए आज्ञा दें, वह धर्म अनुकूल हों या विरुद्ध, उसका पालन करना ही चाहिए । जो उनकी आज्ञा के पालन में संलग्न है, उसके लिए दुसरे किसी धर्म के आचरण की आवश्यकता नहीं है। जिस कार्य के लिए वे आज्ञा दें वही धर्म है । जिसने इन तीनों का आदर कर लिया उसके द्वारा सम्पूर्ण लोकों का आदर हो गया और जिसने इन का अनादर कर दिया उसके सम्पूर्ण शुभ कर्म निष्फल हो जाते है ।

जिसने इन तीनों का सदा अपमान ही किया है उसके लिए न तो यह लोक सुखद है और न परलोक

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