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षड्यंत्र का पर्दाफ़ाश लिखनेवाले गद्दारों का पर्दाफाश-1


 षड्यंत्र का पर्दाफाश करते हुए एक आश्रमवासी साधक का आम साधकों के नाम संदेश

षड्यंत्र का पर्दाफ़ाश करनेवाले गद्दारों का पर्दाफ़ाश करने के लिए उनके द्वारा लिखी गई असत्य बातों को प्रकट करना आवश्यक है. सबसे पहला झूठ तो यहीं पर है कि इस लेखक को आश्रमवासी बताया गया है जिसने निचे ही लिखा है कि वह कुछ दिन पहले आश्रम छोड़कर आ गया है. जो आश्रम छोड़कर भाग गया हो उसको आश्रमवासी कहना झूठ है. वह तो एक पलायनवादी गद्दार है जिसने अपने गुरुके आश्रम को छोड़ दिया और बाहर के साधकों को गुरु आश्रम के विरुद्ध बहकाने का पाप कर रहा है. उसके वचनों पर विश्वास करना भी एक गद्दार को सहयोग करने के समान है.  

➡ हमारे देश -विदेश के सभी साधक भाईयों को प्रणाम

जिसने गुरु के आश्रम का त्याग कर दिया वह गुरुसे वफादार नहीं रहा. ऐसे गद्दार को साधक नहीं कह सकते. साधक भाइयों को वह प्रणाम कर रहा है यह एक धोखा है. 

मैं एक समर्पित आश्रमवासी साधक हूं ।।

कुछ दिन पहले मैं आश्रम छोड़ कर आ गया हूं ।।

समर्पित आश्रमवासी साधक अगर आश्रम को छोड़ देता है तो इस से यह सिद्ध होता है कि वह गुरुको समर्पित साधक नहीं था वह मनमुख है. वह अगर समर्पित साधक होता तो गुरु के आश्रम को छोड़ नहीं सकता. जिसने अपना तन, मन, धन, को सम्पूर्ण रूप से स्वेच्छापूर्वक, सदा के लिए बिना किसी शर्त के अपने गुरु को समर्पित कर दिया हो उसके लिए यह संभव ही नहीं है कि वह गुरु की आज्ञा के बिना आश्रम को छोड़कर जा सके. और अगर वह बाहर जाकर गुरु के आश्रम के विरुद्ध साधकों को भड़काने का पाप करता है तो वह गुरुद्रोही है, ऐसे गुरुद्रोही को समर्पित साधक मानना अपराध है.  

आश्रम का वातावरण बाहर से तो बिल्कुल पहले जैसा है परंतु अंदर का

वातावरण पूरी तरह से तामसिक बन गया है ।।

आश्रम का वातावरण आज भी बाहर के संतों को भी सात्त्विक प्रतीत होता है. बाहर से आनेवाले निगुरे को भी वहां दिव्यता का अनुभव होता है. अगर किसीको यह तामसिक लगता है तो वह उसकी दृष्टि का दोष है. जो तामसिक होता है उसको सब तामसिक लगते है. उसको अपनी दृष्टि का इलाज करना चाहिए.

शास्त्रों में वर्णित स्त्री धर्म


 स्त्रियों के लिए तो किसी न किसी के नियंत्रण में रहने का आदेश शास्त्रों ने दिया है। छोटे व्यक्ति गुरु के शिष्यों के करोड़ों रुपये लूटकर उन का शोषण करते हो, उनकी श्रद्धा हिलाकर अपने शिष्य बनाते हो ऐसे छोटे व्यक्तियों को साथ लेकर चलने का अर्थ यह तो नहीं होता कि उनको ऐसे दुष्कर्म करने देना चाहिए। अगर बड़े व्यक्ति उनके परिवार के छोटे व्यक्ति को ऐसे दुष्कर्म त्याग ने की सिख देते हो तो उनका पालन छोटे व्यक्ति को अवश्य करना चाहिए। उसके बदले अगर छोटे व्यक्ति बड़े को ही उपदेश देने लगे तो उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी है यही सिद्ध होता है। किसी भी ब्रह्मज्ञानी महापुरुष को क्या करना चाहिए ऐसा उपदेश किसी शास्त्र ने नहीं दिया, और यह दो पैसे की छोरी अपने ब्रह्मज्ञानी पिता को उपदेश देने लगी है।

आजकल धर्म का उपदेश देनेवाले किसको क्या करना चाहिए यह तो सिखाते है लेकिन खुद को क्या करना चाहिए यह उनके परम हितैषी गुरु और पिता के द्वारा बताये जानेपर भी उनकी अवहेलना करके उनको उपदेश देने लगते है। धर्म का उपदेश देनेवाली छोरी को अपने जीवन में धर्म का कितना पालन किया यह भी देखना चाहिए। पुत्रिधर्म उन्होंने कितना निभाया उसपर थोड़ा विचार करे तो मालूम पडेगा कि उनके जीवन में धर्म के स्थान पर अधर्म का आचरण है, पितृभक्ति के स्थान पर पित्रुद्रोह है और इमानदारी के स्थान पर चोरी और बेईमानी है। स्त्रियों को हमेशा किसी न किसी के नियंत्रण में ही रहना चाहिए ऐसा शास्त्रों का आदेश है। धर्म का उपदेश देनेवाले के जीवन में तो शास्त्रोक्त धर्म का आचरण होना ही चाहिए । अगर धर्मोपदेशक के जीवन में धर्माचरण नहीं है तो कहना पड़ेगा “दिया तले अँधेरा” शास्त्र कहता है:

पिता रक्षति कौमारे, भर्ता रक्षति यौवने ।,

रक्षन्ति स्थाविरे पुत्रा, न स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हती ।।  (मनु स्मृति ९.३)

“स्त्री की कुमारावस्था में पिता रक्षा करता है, युवावस्था में पति रक्षा करता है, और वृद्धावास्था में पुत्र रक्षा करते है; उसे कभी स्वाधीन नहीं रहना चाहिए।“ 

स्त्रियों के स्वतंत्र और अरक्षित रहने पर नाना प्रकार के दोष उत्पन्न हो जाते है, और उनकी रक्षा करने से अपनी और धर्म की रक्षा होती है, इसलिए शास्त्रों में स्त्रियों के लिए स्वतंत्रता का विरोध किया गया है। शास्त्रकार ऋषि, महर्षि, त्रिकालदर्शी, स्वार्थ त्यागी, समदर्शी, अनुभवी, पूर्वापर को गहराई से सोचनेवाले, और संसार के परम हितैषी थे, अतः उनकी बातों पर विशेष ध्यान देकर स्त्रियों की सब प्रकार से रक्षा करनी चाहिए।

छोरी इस समय एक त्यक्ता महिला है इसलिए उसको पिता के आदेश में चलना चाहिए पर वह स्वच्छंद होकर पिता के सिद्धांत के विरुद्ध आचरण करती है और अपने को श्री जी या प्रभुजी कहलाती है और पूजवाती है जो धर्म के सिद्धांत से विपरीत आचरण है इसलिए उसको श्री जी या प्रभुजी कहना ठीक नहीं है। उसको छोरी कहना ठीक लगता है। छोरी दूसरों को धर्म का उपदेश देने के बदले अपने जीवन में धर्म का पालन करेगी तो उसका कल्याण होगा अन्यथा उसका भयंकर पतन होगा और ऐसी छोरी के अनुयायिओं को भी भयानक नारकीय यातनाएं भोगनी पड़ेगी।

भगवान् श्री कृष्ण गीता के १६ वें अध्याय के अंतिम दो श्लोकों में कहते है

यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः I

न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परा गतिं। II २३ II

तस्मात् शास्त्रं प्रमाणं कार्याकार्यो व्यवस्थितौ I

ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि II २४ II

“जो पुरुष शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धिको प्राप्त होता है, और न परम गति को और न सुख को ही।

इस से तेरे लिए इस कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण है, ऐसा जानकार तू शास्त्रविधि से नियत कर्म ही करने योग्य है।”

अपना पतन नहीं चाहते तो छोरी का साथ छोड़ दो – डॉ. प्रेमजी


राहुल दोषी, मिहिर खर, भ्रम भ्रम ठाकुर, विद्वेष पटेल, और दुसरे जो भी मेरे गुरुदेव से दीक्षा लिए हुए है और जो बाहर या आश्रम में रहकर भी आश्रम के विरुद्ध प्रवृत्ति करनेवाली छोरी का सहयोग करते है वे अब भी चाहे तो उपरोक्त दुर्गति से अपनी रक्षा कर सकते है । अगर कुछ धन के लोभ से वे कृतघ्नता का पाप करते रहेंगे तो उनकी रक्षा कोई नहीं कर सकेगा । अगर वे भारती का घोर पतन नहीं चाहते हो, उसको तनावमुक्त रोगमुक्त देखना चाहते हो, अगर आप आनेवाले भयंकर विपत्ति काल में अपनी रक्षा चाहते हो, अपना किया हुआ गुरुसेवा, साधन भजन, सत्कर्म आदि नाली में बहाना नहीं चाहते हो तो भारती का अंधा समर्थन और भक्ति छोड़ दो। जिन महान गुरु की शरण और एकनिष्ठ भक्ति को छोड़कर तुमने इस अपूजनीय की शरण ली है उन महान गुरु से क्षमा मांग लो और की हुई गलती को कभी न दुहराने की प्रतिज्ञा ले लो। अगर आपने अपने पूजा घर में अपने गुरुदेव के श्री चित्र के साथ आसुरी माया के चित्र भी लगा रखे हो चाहे वे किसी भी गुरु के हो, तो उनको हटा दो। अगर आप ब्रह्मनिष्ठ गुरु के सत्संग को सुनने के बदले आसुरी माया के प्रवचन सुनने लगे हो तो उसको छोड़कर फिर से अपने गुरुदेव के सत्संग को सुनना शुरू कर दो, अगर आप अपने गुरदेव से प्राप्त गुरु मन्त्र को छोड़कर किसी आसुरी माया से मिले हुए मन्त्र का जप करते हो तो उस मन्त्र को त्याग दो और अपने गुरुमंत्र को जपना शुरू कर दो। अगर आप ब्रह्मनिष्ठ गुरु की अमृतवाणी से ओतप्रोत मासिक पत्रिकाओं को छोड़कर किस आसुरी माया की पत्रिकाको पढने लगे हो तो उस पत्रिका को त्यागकर ब्रह्मनिष्ठ सतगुरु की पत्रिका को पढ़ना शुरू कर दो। अगर आप अपने सतगुरु की संस्था को दान देना बंद करके किसी आसुरी माया को दान देते हो तो वह दानकर्म छोड़ दो। अपने गुरुदेव की संस्था के सेवाकार्यों में अपने तन, मन और धन को यथा शक्ति लगाओ। अगर आपने अपने गुरुदेव की शरण छोड़कर किसी आसुरी माया की शरण ले ली हो तो उस माया के चक्कर को छोड़कर कृपालु गुरुदेव से क्षमा मांग लो। अब भी वे आपको क्षमा कर सकते है। अगर आप कृपालु गुरुदेव के आश्रम में समर्पित साधक या साध्वी होकर रहते हो और गुरुद्रोही आसुरी माया के दर्शन और प्रवचन सुनने जाते हो तो यह पाप कर्म, व्यभिचारी भक्ति छोड़ दो, अपने गुरुदेव के श्री चित्र के ही दर्शन करो, उनका ही सत्संग सुनो और सच्चे ह्रदय से गुरुदेव से पूर्व में किये हुए ऐसे पापों के लिए क्षमा मांग लो। अब समय बहुत कम बचा है।  यह सब मैंने भारती और उनके द्वारा गुमराह किये गए मेरे गुरुदेव के शिष्यों के हित की भावना से लिखा है। अगर वे आनेवाले विपत्ति काल में अपनी सुरक्षा चाहते हो तो वे इन शास्त्र सम्मत विचारों का अनुमोदन और पालन करे और अपना सर्वनाश ही चाहते हो और भारती को भी घोर पतन की खाई में गिराना चाहते हो तो उनकी मर्जी। मेरा कोई आग्रह नहीं है।