डॉ प्रेमजी के पत्र के जवाब का खंडन -2

डॉ प्रेमजी के पत्र के जवाब का खंडन -2


आपने लिखा है “प्रभुजी का योगमार्ग से श्री लीलाशाहजी महाराज से संपर्क है और उनकी आज्ञा  से बापू के घर मे आया है।…

ये वचन प्रमाण सिद्ध नहीं है. ब्रह्मज्ञानी महापुरुष जब ब्रह्मलीन हो जाते है तब उनका सूक्ष्म शरीर वहीँ सूक्ष्म भूतों में विलीन हो जाता है. और स्थूल शरीर स्थूल भूतों में विलीन हो जाता है. फिर भी भक्तों को ठगने के लिए ऐसा प्रचार कुछ लोग करते है. साईं लीलाशाहजी के शिष्य वीरभान ने भी साईं लीलाशाहजी के ब्रह्मलीन होने के बाद उनके जैसे वस्त्र पहनकर, उनके जैसा स्वांग बनाकर उनकी साईं से लिंक है ऐसा बताकर लोगों को ठगने का प्रयास किया था पर आखिर में वह दुखी होकर मर गया. मेरे गुरुदेव के आश्रम में भी एक ऐसा ठग आया था जिसने ऐसा नाटक किया था “मैं लीलाशाह बापू हूँ…ये मेरा शिष्य है…” आदि बकने लगा तब मेरे गुरुदेव ने उसकी पोल खोल दी. और कहा “मेरे गुरुदेव अपने पवित्र शरीर में नहीं रहे वो क्या तेरे मलिन शरीर में घुसेंगे?”

जो प्रत्यक्ष मेरे सतगुरु (जिनको साईं लीलाशाहजीने गीता सर पे रखकर कहा था कहा था “जो मैं हूँ सो तू है”) से लाभ नहीं ले सके वो योग मार्ग से साईं लीलाशाहजी से क्या संपर्क करेगा? जो सामने बहती गंगा का पानी पीकर प्यास न बुझा सका वो स्वर्ग की गंगा का पानी क्या पिएगा? इस मार्ग में लिंक से काम नहीं चलता. सतगुरु का सान्निध्य अनिवार्य है. कोई भी कह सकता है कि मेरी भगवान् कृष्ण से लिंक है, मेरी भगवान् शिवजी से लिंक है, मेरी स्वामी विवेकानंद से लिंक है…” पर भगवान कृष्ण, शिवजी और विवेकानंद ने स्वयं कहा है कि सतगुरु का प्रत्यक्ष सान्निध्य अनिवार्य है. आप उनके वचनों को मानोगे या उनके उपदेश से विरुद्ध बातें बनानेवालों को मानोगे? 

आप अपने रोग की चिकित्सा के लिए किसी विश्वविद्यालय से प्रमाणित वैद्य से इलाज कराओगे या जो कहे कि मेरी आचार्य चरक से या आचार्य सुश्रुत से लिंक है उस से चिकित्सा कराओगे? 

सनातन धर्म में सत्य की सिद्धि किसी व्यक्ति की मान्यता के आधार पर नहीं होती. किसीके अनुभव के आधार पर भी नहीं होती. अनेक व्यक्तियों के अनेक अनुभव हो सकते है और सत्य तो अनेक नहीं हो सकता. अतः श्रुति, युक्ति और अनुभूति के समन्वय से ही सत्य की सिद्धि होती है. जैसे नारायण साईं के पूर्व जन्म के बारे में गुरुदेव ने प्रमाण दिया है कि वे एक बंगाली योगी स्वामी केशवानंद थे. वैसा कोई प्रमाण प्रभुजी के बारे में मिलता नहीं है. उनके पूर्वजन्म के बारे में गुरुदेव नो जो बताया वह सुनाऊंगा तो आपकी श्रद्धा हिल जायेगी. वे पूर्व जन्म में कुबेर नगर में किस योनी में थे और करुणासागर मेरे गुरुदेव ने उनको मनुष्य जन्म देकर कृतार्थ किया ये उनसे ही पूछ लेना. ये प्रमाण मेरे गुरुदेव ने सत्संग में बताया हुआ है. फिर भी जिनको मानना है वे उनकी बेतुकी बातों को भले मानते रहे, हमारी किसीको मना नहीं है. हम ऐसी निराधार, बेतुकी और भ्रामक  बातों पर विश्वास नहीं करते.

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