मनुष्य-जीवन की विलक्षणता
परब्रह्म परमात्मा में, जो अपना स्वरूप ही है, तीन भाव माने जाते हैं – सत्, चित्त और आनंद। मनुष्य में इन्हीं भावों का जब विकास होता है, तभी उसमें 5 अथवा अधिक कलाओं का विकास माना जाता है। यह विकास मनुष्य में ही सम्भव है, अतः मनुष्य शरीर दुर्लभ है। सत् के विकास में कर्म …