वास्तविक सुख किस में ?
पूज्यपाद संत श्री आसारामजी बापू मच्चित्ता गद् गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्। कथयन्तश्च मां नित्यं तुषयन्ति च रमन्ति च।। ʹनिरन्तर मुझमें मन लगाने वाले और मुझमें ही प्राणों को अर्पण करने वाले भक्तजन, सदा ही मेरी भक्ति की चर्चा के द्वारा, आपस में मेरे प्रभाव सहित मेरा कथन करते हुए संतुष्ट होते हैं और मुझ वासुदेव में …