युक्ति से मुक्ति
पूज्यपाद संत श्री आसारामजी बापू अनपेक्षः शुचिर्दक्षः उदासीनो गतव्यथः। सर्वारम्भपरित्यागी यो मद् भक्तः स मे प्रियः।। ʹजो आकांक्षाओं से रहित, बाहर भीतर से पवित्र, दक्ष, उदासीन, व्यथा से रहित, सभी नये-नये कर्मों के आरम्भ का सर्वथा त्यागी है वह मेरा भक्त मुझे प्रिय है।ʹ (गीताः 12.16) ऐसे भक्त के पीछे भगवान फिरते हैं। कबीर जी …