108 ऋषि प्रसादः दिसम्बर 2001

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

सर्वकला भरपूर, प्रभु !


(ईश्वर सदा है सर्वत्र है और सबमें है। उसी के कारण हमारा अस्तित्व है। इसी बात पर प्रकाश डालते हुए पूज्यश्री कह रहे हैं-) कंकर, पत्थर और पहाड़ में ईश्वर के अस्तित्व की एक कला है – अस्तिपना। कंकर, पत्थर और पहाड़ों का चूरा करके बालू बना दो। बालू का भी चूरा कर दो फिर …

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श्वासकला का महत्व


(श्वास के बिना जीवन सम्भव ही नहीं है। श्वास पर नियंत्रण करके मनुष्य अपनी आयु बढ़ा सकते हैं। सोनीपत (हरियाणा) की शिविर में इसी विषय पर प्रकाश डालते हुए पूज्य श्री कहते हैं-) इज़राईल देश की बात हैः एक ईसाई महिला पादरी के पास गयी। उसने कहाः पादरी जी ! मैं मुसीबत में पड़ गयी …

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शीत ऋतु में आहार-विहार


मुख्य रूप से तीन ऋतुएं हैं- शीत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु और वर्षा ऋतु। आयुर्वेद के मतानुसार छः ऋतुएँ मानी गयी हैं- वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त और शिशिर। महर्षि सुश्रुत ने वर्ष के 12 मास इन ऋतुओं में विभक्त कर दिये हैं। शीत ऋतु विसर्गकाल और आदानकाल की संधिवाली ऋतु होती है। विसर्गकाल दक्षिणायन में …

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