203 ऋषि प्रसादः नवम्बर 2009

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

गुरुतत्त्व – ब्रह्मलीन स्वामी शिवानंद जी


जिस प्रकार पिता या पितामह की सेवा करने ले पुत्र या पौत्र खुश होता है, इसी प्रकार गुरु की सेवा करने से मंत्र प्रसन्न होता है । गुरु, मंत्र एवं इष्टदेव में कोई भेद नहीं होता है । गुरु ही ईश्वर है । उनको केवल मानव ही नहीं मानना । जिस स्थान में गुरु निवास …

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ईश्वर दयालु है या न्यायकारी ?


(पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से) जो व्यक्ति दयालु होता है वह ठीक से न्याय नहीं कर सकता और जो न्यायप्रिय होता है वह दया नहीं कर सकता । तब कई बार मन में होता है कि भगवान दयालु हैं कि न्यायकारी ? अगर दयालु हैं तो पापी पर भी दया करके उसको माफ कर …

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भोगों में चार दोष – पूज्य बापू जी


भोगों में चार दोष हैं । एक तो भोग सदा उपलब्ध नहीं रहते हैं । दूसरा उनको भोगने की रूचि भी सतत नहीं रहती है । तीसरा वे नष्ट हो जाते हैं और चौथा भोक्ता क्षीण होने लगता है । आदमी जितना अधिक भोग भोगेगा उतना बेचैन रहेगा, अशांत रहेगा, बिखरा हुआ रहेगा और उतना …

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