210 ऋषि प्रसादः जून 2010

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

स्वार्थ त्यागें, महान बनें – पूज्य बापू जी


मनुष्य को कभी भी स्वार्थ में आबद्ध नहीं होना चाहिए। व्यावहारिक वासनाओं को पोसने का स्वार्थ सुख का अभिलाषी है वह सच्ची सेवा नहीं कर सकता। जो संसारी वासनाओं का गुलाम है वह अपना ठीक से विकास नहीं कर सकता। जो अपने स्वार्थ का गुलाम है वह अपना कल्याण नहीं कर सकता। व्यक्तिगत स्वार्थ कुटुम्ब …

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सत्संग यही सिखाता है – पूज्य बापू जी


‘लोग बोलते हैं कि इच्छा छूटती नहीं, इच्छा छोड़ना कठिन है’ लेकिन संत बोलते हैं कि ‘इच्छा पूरी करना असंभव है।’ इच्छा पूरी नहीं होती, इच्छा गहरी होती जाती है। जो कठिन काम है वो तो हो सकता है लेकिन जो काम असम्भव है तब नहीं हो सकता है। हमें इच्छाएँ खींचती हैं इसलिए हम …

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सबसे बड़ा सहयोगी


(पूज्य बापू जी की ज्ञानमयी अमृतवाणी) जैसे जुआरी होना है तो दूसरा जुआरी आपको सहयोग करेगा, भँगेड़ी होना है तो दूसरा भँगेड़ी आपको सहयोग करेगा, ऐसे ही मुक्तात्मा बनना है तो भगवान ही आपका साथ देते हैं। कितना बड़ा सहयोग है भगवान का ! भगवान मुक्तात्मा हैं. आपका मुक्तात्मा बनने का इरादा हो गया तो …

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