मानवमात्र का धर्म और परम धर्म
एक शरीर और उसकें संबंधियों में क्रमशः अहंता और ममता करके जीव ने स्वयं ही अपने आपको संसार के बंधन में जकड़ लिया है । अब धर्म का काम यह है कि जीव की अहंता और ममता को शिथिल करके उसे संसार के बंधन से सर्वदा के लिए छुड़ा दे । ऐसे धर्म का स्वरूप …