347 ऋषि प्रसादः नवम्बर 2021

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

सेवा का स्वरूप


आपकी सेवा का प्रेरक स्रोत क्या है ? किसी मनोरथ की पूर्ति के लिए सेवा करते हैं ? क्या अहंकार के श्रृंगार की आकांक्षा है ? क्या सेवा के द्वारा किसी को वश में करना चाहते हैं ? तो सुन लीजिये, यह सेवा नहीं है, स्वार्थ का तांडव नृत्य है । अपनी सेवा को पवित्र …

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हर हृदय में ईश्वर हैं फिर भी दीनता-दरिद्रता क्यों ?


सारे शास्त्रों की घोषणा है कि ईश्वर सर्वव्यापक है, सर्वत्र विद्यमान है । यह सत्य है पर इससे व्यक्ति के अंतःकरण की समस्याओं का समाधान नहीं होता है । संत तुलसीदास जी कहते हैं- अस प्रभु हृदयँ अछल अविकारी । सकल जीव जग दीन दुखारी ।। ( श्री रामचरित. बा. कां. 22.4 ) ऐसा ईश्वर …

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जीवन का मौलिक प्रश्न और उसका समाधान


आज का मौलिक प्रश्न हमारे सामने भोग की रुचि का नाश तथा सरस जीवन की प्राप्ति का है । इस मौलिक प्रश्न को हल करने के लिए ही हमें मिले हुए शरीर के द्वारा परिवार की, समाज की तथा संसार की सेवा करनी है । भोग नहीं करना है, सेवा करनी है । सेवा क्या …

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