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Rishi Prasad 268 Apr 2015

धरा की अनमोल धरोहर ‘गाय’ को बचायें !


भारत आजीविका की दृष्टि से कृषि प्रधान एवं जीवनशैली की दृष्टि से अध्यात्म-प्रधान देश है। देशी गाय कृषि एवं अध्यात्म दोनों ही दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। गौ देश के अर्थतंत्र की रीढ़ है। गोमांस निर्यात करने से जो आय होती है, उससे अधिक आय गाय के मूत्र, गोबर, दूध, घी आदि से प्राप्त की जा सकती है। अन्य दवाइयों की अपेक्षा इन गौरसों से बनने वाली दवाइयों को ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ ने अधिक प्रभावशाली बताया है। अगर कोई गाय दूध नहीं देती तो भी उसके मूत्र व गोबर के द्वारा ही अच्छी खासी आय की जा सकती है। पूज्य बापू जी के मार्गदर्शन में देश के कई राज्यों में गौशालाएँ चलायी जा रही हैं, जिनमें से कइयों में कत्लखाने ले जायी जा रही हजारों गायों की रक्षा करके उनका पालन-पोषण किया जा रहा है। इन गौशालाओं में कई गरीब गौपालक परिवारों को रोजी रोटी भी मिलती है। स्वास्थ्यवर्धक तथा मन-मति को सात्त्विक बनाने वाले गौ-उत्पाद अल्प मूल्य में सुलभ होने से समाज भी लाभान्वित हो रहा है।
महाराष्ट्र के बाद हरियाणा गोवध व गोमांस की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाला देश में दूसरा राज्य बन गया है। हरियाणा में गोवध पर अधिकतम दस वर्ष की कैद होगी और तीस हजार से एक लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। जुर्माना न भरने पर एक वर्ष का और कारावास भुगतना होगा। नये कानून के तहत प्रदेश में हर तरह के गोमांस की बिक्री प्रतिबंधित रहेगी। गौ तस्करी करते हुए अगर कोई वाहन पकड़ा गया तो उसे जब्त करने के बाद नीलाम किया जायेगा। अन्य राज्य सरकारों व केन्द्र सरकार को भी ऐसे राष्ट्र-हितकारी कदम उठाने चाहिए व समाज तक गौ की महत्ता पहुँचाने के लिए विशेष जागृति अभियान चलाया जाना चाहिए।
आज विज्ञान भी देशी गाय से होने वाले लाभों को देखकर आश्चर्यचकित है पर विज्ञान ने जितना जाना है, गाय में उससे कई गुना अधिक लाभ हैं। अनादिकाल से हमारे शास्त्रों व संत-महापुरुषों ने देशी गाय की महिमा बतायी है तथा आध्यात्मिक व जागतिक लाभ के साथ सुखी जीवन जीने के लिए गौरक्षा को परम कर्तव्य बताया है। प्रस्तुत हैं गौरक्षा के संबंध में कुछ महापुरुषों व विद्वानों के अनमोल वचनः
देशी गाय का दूध स्वास्थ्य का रक्षक और पोषक है। गाय की रक्षा में स्वास्थ्य मानवता और संस्कृति की रक्षा है।
पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू
गोवंश धर्म, संस्कृति व स्वाभिमान का प्रतीक रहा है।
स्वामी दयानंद सरस्वती
यही आस पूरन करो तुम हमारी, मिटे कष्ट गौअन, छुटै खेद भारी।
गुरु गोविन्दसिंहजी
गोवंश की रक्षा में देश की रक्षा समायी हुई है। भारतीय संविधान में पहली धारा ‘सम्पूर्ण गोवंश हत्या निषेध’ की होनी चाहिए।
पं. मदनमोहन मालवीय
जब तक गाय को बचाने का उपाय ढूँढ नहीं निकालते, तब तक स्वराज्य अर्थहीन कहा जायेगा। गोवंश की रक्षा ईश्वर की सारी मूक सृष्टि की रक्षा करना। भारत की सुख-समृद्धि गौ के साथ जुड़ी हुई है।
महात्मा गाँधी
गौ रक्षा करना यह इस देश के प्रत्येक नर-नारी का महान कर्तव्य है।
पंजाब केसरी लाला लाजपत राय
गौहत्या मातृहत्या है। संविधान में आवश्यक संशोधन किया जाय, सम्पूर्ण गोवंश हत्या बंदी का केन्द्रीय कानून बने। इसके लिए सत्याग्रह करना पड़े तो सत्याग्रह करो।
आचार्य विनोबा भावे
राष्ट्र की उन्नति चाहने वाला हर व्यक्ति गौ-उत्पादों (गाय का दूध, घी, दही, मक्खन, छाछ आदि) का उपयोग करे तथा गोमांस, चमड़ा आदि से बनी वस्तुओं का बहिष्कार करे। गोग्रास देना शुरु करे। इस प्रकार धरा की इस अनमोल धरोहर को विनष्ट होने से बचाने में हमें भी अवश्य सहयोगी बनना चाहिए।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2015, पृष्ठ संख्या 20,21 अंक 268
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Rishi Prasad 267 Mar 2015

आरोग्य व सुख-समृद्धि प्रदायिनी गौमाता – पूज्य बापू जी


सूर्यकिरण हजार प्रकार के हैं। उनमें तीन विभाग हैं – एक तापकर्ता (ज्योति), दूसरे पोषक (आयु) और तीसरे गो किरण। तापकर्ता और पोषक किरण तो हम झेलते हैं लेकिन गो किरण कोई प्राणी नहीं झेल सकता है। सूर्यकेतु नाड़ी जिस प्राणी में है, वही गो किरण पर्याप्त मात्रा में झेल सकता है और सूर्यकेतु नाड़ी देशी गाय में है। वह गो किरण पीती है इसलिए उसका नाम ‘गौ’ है। अभी विज्ञानी चकित हो गये कि देशी गाय के दूध में, घी में, मूत्र में और गोबर में सुवर्णक्षार पाये गये। मैं खुली चुनौती देता हैं कि दुनिया का ऐसा कोई देश हो या ऐसा कोई व्यक्ति हो जो मुझे सच्चाई से कह दे कि ‘फलाने व्यक्ति का, फलाने जीव का मल और मूत्र पवित्र माना जाता है।’ नहीं बोल सकता है। केवल हिन्दुस्तान की देशी गाय का मल और मूत्र पवित्र माना जाता है। मरते समय भी गौमूत्र व गोबर से लीपन करके मृतक व्यक्ति को सुलाया जाता है। और खास बात, कोई मर गया हो या मरने की तैयारी में हो तो वहाँ गोझरण छिड़क दो अथवा गोबर व गोमूत्र से लीपन कर दो, उसकी दुर्गति नहीं होगी।
गौ सेवा से बढ़ती है आभा व रोगप्रतिकारक शक्ति
देशी गाय के शरीर से जो आभा (ओरा) निकलती है, उसके प्रभाव से गाय की प्रदक्षिणा करने वाले की आभा में बहुत वृद्धि होती है। आम आदमी की आभा 3 फीट की होती है, जो ध्यान भजन करता है उसकी आभा और बढ़ती है। साथ ही गाय की प्रदक्षिणा करे तो आभा और सात्त्विक होगी। डॉक्टरों, वैद्यों, हकीमों ने कहा हो कि ‘यह आदमी बच नहीं सकता है, यह रोग असाध्य है।’ तो देशी गाय को पालो और अपने हाथ से उसको खिलाओ, थोड़ा प्रसन्न करो और उसकी पीठ पर हाथ घुमाओ। उसकी प्रसन्नता के स्पंदन आपकी उँगलियों के अग्रभाग से शरीर में आयेंगे और आपकी रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी। 6 से 12 महीने लगेंगे लेकिन आप चंगे (स्वस्थ) हो जाओगे। गाय पालने के और भी बहुत सारे फायदे है। श्रीकृष्ण गाय चराने जाते थे, राजा दिलीप गाय चराने जाते थे, मेरे गुरुदेव गौशालाएँ चलवाते थे और अपने यहाँ कत्लखाने ले जायी जा रही गायों को रोक-रोक के निवाई (राज.) में 5 हजार गायें रखी गयीं थी। अभी वहाँ चारा बहुत महँगा मिलता है तो अलग-अलग जगह पर गौशालाएँ खोल दी हैं और वहाँ सेवा होती रहती है।
आप भी फायदे में, गाय भी बनेगी स्वनिर्भर
भैंस का दूध मिले 25 रूपये लीटर और देशी गाय का दूघ मिले 27 रूपये का तो गाय का ही लेना चाहिए क्योंकि यह बहुत सात्त्विक एवं मेधाशक्तिवर्धक है। गाय के गोबर से धूपबत्तियाँ और कई चीजें बनती हैं, उसके साथ-साथ फिनाईल बनता है। रसायनों से बना फिनायल जीवाणुओं को तो नष्ट करता है लेकिन हवामान भी गंदा करता है। इससे ऋणात्मक आभा बनती है। लेकिन गोझरण से बने हुए फिनायल से घर में सात्त्विक आभा पैदा होगी और गायों की सेवा भी होगी, साथ ही यह गाय को स्वनिर्भर कर देगा। एक गाय से 6 से 7 लीटर गोमूत्र रोज मिलता है और गोमूत्र इकट्ठा करने वाले मजदूरों को रोजी मिलेगी। अतः सभी लोग गोझरण वाले फिनायल की माँग करो। तो यह सब दिखती है गाय की सेवा लेकिन इसके द्वारा आप अपनी ही सेवा कर रहे हैं।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2015, पृष्ठ संख्या 14 अंक 267
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गौपूजन का पर्व-गौपाष्टमी


31 अक्तूबर 2014

गोपाष्टमी भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है। मानव-जाति की समृद्धि गौ-वंश की समृद्धि के साथ जुड़ी हुई है। अतः गोपाष्टमी के पावन पर्व पर गौ-माता का पूजन परिक्रमा कर विश्वमांगल्य की प्रार्थना करनी चाहिए।

गोपाष्टमी कैसे मनायें ?

इस दिन प्रातःकाल गायों को स्नान करा के गंध-पुष्पादि से उनका पूजन कर अनेक प्रकार के वस्त्रालंकारों से अलंकृत करें। फिर गायों को गोग्रास देकर उनकी परिक्रमा करें तथा थोड़ी दूर तक उनके साथ चलें व गोधूलि का तिलक करें। इससे सब प्रकार के अभीष्ट की सिद्धि होती है। गोपाष्टमी के दिन सायंकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका आतिथ्य, अभिवादन और पंचोपचार-पूजन करके उन्हें कुछ खिलायें और उनकी चरणरज माथे पर लगायें, इससे सौभाग्य की वृद्धि होती है।

गोपाष्टमी के दिन गौ-सेवा, गौ हत्या निवारण, गौ-रक्षा से संबंधित विषयों पर चर्चा-सत्रों का आयोजन करना चाहिए। भगवान एवं महापुरुषों के गौ-प्रेम से संबंधित प्रेरक प्रसंगों का वाचन-मनन करना चाहिए।

गायें दूध न देती हों तो भी वे परम उपयोगी हैं। दूध न देने वाली गायों के झरण व गोबर से ही उनके आहार की व्यवस्था हो सकती है। उनका पालन पोषण करने हमें आध्यात्मिक, आर्थिक व स्वास्थ्य लाभ होता ही है।

गौ संरक्षक और संवर्धकः पूज्य बापू जी

जीवमात्र के परम हितैषी पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू गौ संरक्षक और संवर्धक भी हैं। उनके मार्गदर्शन में भारतभर मे अनेक गौशालाएँ चलती हैं और वहाँ हजारों ऐसी गायें हैं जो दूध न देने के कारण अऩुपयोगी मानकर कत्लखाने ले जायी जा रही थीं। यहाँ उनका पालन-पोषण व्यस्थित ढंग से किया जाता है। बापू जी के द्वारा वर्षभर गायों के लिए कुछ-न-कुछ सेवाकार्य चलते ही रहते हैं तथा गौ-सेवा हेतु अपने करोड़ों शिष्यों एवं समाज को प्रेरित करने वाले उपदेश उनके प्रवचनों के अभिन्न अंग रहे हैं। गायों को पर्याप्त मात्रा में चारा व पोषक पदार्थ मिलें इसका वे विशेष ध्यान रखते हैं। बापू जी के निर्देशानुसार गोपाष्टमी व अन्य पर्वों पर गाँवों में घर-घर जाकर गायों को उनका प्रिय आहार खिलाया जाता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2014, पृष्ठ संख्या 21, अंक 262

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