गौपूजन का पर्व-गौपाष्टमी

गौपूजन का पर्व-गौपाष्टमी


31 अक्तूबर 2014

गोपाष्टमी भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है। मानव-जाति की समृद्धि गौ-वंश की समृद्धि के साथ जुड़ी हुई है। अतः गोपाष्टमी के पावन पर्व पर गौ-माता का पूजन परिक्रमा कर विश्वमांगल्य की प्रार्थना करनी चाहिए।

गोपाष्टमी कैसे मनायें ?

इस दिन प्रातःकाल गायों को स्नान करा के गंध-पुष्पादि से उनका पूजन कर अनेक प्रकार के वस्त्रालंकारों से अलंकृत करें। फिर गायों को गोग्रास देकर उनकी परिक्रमा करें तथा थोड़ी दूर तक उनके साथ चलें व गोधूलि का तिलक करें। इससे सब प्रकार के अभीष्ट की सिद्धि होती है। गोपाष्टमी के दिन सायंकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका आतिथ्य, अभिवादन और पंचोपचार-पूजन करके उन्हें कुछ खिलायें और उनकी चरणरज माथे पर लगायें, इससे सौभाग्य की वृद्धि होती है।

गोपाष्टमी के दिन गौ-सेवा, गौ हत्या निवारण, गौ-रक्षा से संबंधित विषयों पर चर्चा-सत्रों का आयोजन करना चाहिए। भगवान एवं महापुरुषों के गौ-प्रेम से संबंधित प्रेरक प्रसंगों का वाचन-मनन करना चाहिए।

गायें दूध न देती हों तो भी वे परम उपयोगी हैं। दूध न देने वाली गायों के झरण व गोबर से ही उनके आहार की व्यवस्था हो सकती है। उनका पालन पोषण करने हमें आध्यात्मिक, आर्थिक व स्वास्थ्य लाभ होता ही है।

गौ संरक्षक और संवर्धकः पूज्य बापू जी

जीवमात्र के परम हितैषी पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू गौ संरक्षक और संवर्धक भी हैं। उनके मार्गदर्शन में भारतभर मे अनेक गौशालाएँ चलती हैं और वहाँ हजारों ऐसी गायें हैं जो दूध न देने के कारण अऩुपयोगी मानकर कत्लखाने ले जायी जा रही थीं। यहाँ उनका पालन-पोषण व्यस्थित ढंग से किया जाता है। बापू जी के द्वारा वर्षभर गायों के लिए कुछ-न-कुछ सेवाकार्य चलते ही रहते हैं तथा गौ-सेवा हेतु अपने करोड़ों शिष्यों एवं समाज को प्रेरित करने वाले उपदेश उनके प्रवचनों के अभिन्न अंग रहे हैं। गायों को पर्याप्त मात्रा में चारा व पोषक पदार्थ मिलें इसका वे विशेष ध्यान रखते हैं। बापू जी के निर्देशानुसार गोपाष्टमी व अन्य पर्वों पर गाँवों में घर-घर जाकर गायों को उनका प्रिय आहार खिलाया जाता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2014, पृष्ठ संख्या 21, अंक 262

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