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मानव जीवन के लिए परम उपयोगीः गाय


 

(गोपाष्टमीः 8 नवम्बर 2016)
भारतीय संस्कृति में गाय को माता का स्थान दिया गया है। जिस प्रकार माँ अपने बच्चे का लालन-पालन व सुरक्षा करती है, उसी प्रकार गौ का दूध आदि भी मनुष्य का लालन-पालन तथा स्वास्थ्य व सदगुणों की सुरक्षा करते हैं। गाय की पूजा, परिक्रमा व स्पर्श स्वास्थ्य, आर्थिक व आध्यात्मिक उन्नति की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। गाय को श्रद्धा व प्रेमपूर्वक सहलाते रहने से कुछ महीनों में असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं।

अर्थशास्त्र का मूलाधारः देशी गाय
गौ-विज्ञान सम्पूर्ण विश्व को भारत की अनुपम देन है। भारतीय मनीषियों ने सम्पूर्ण गोवंश को मानव के अस्तित्व, रक्षण, पोषण, विकास और संवर्धन के लिए अनिवार्य पाया। गोदुग्ध ने जन-समाज को विशिष्ट शक्ति, बल व सात्त्विक बुद्धि प्रदान की। गोबर व गोमूत्र खेती के लिए पोषक हैं, साथ ही ये रोगाणुनाशक, विषनाशक व रक्तशोधक भी हैं। मृत पशुओं से प्राप्त चर्म से चर्मोद्योग सहित अनेक हस्तोद्योगों का विकास हुआ। अतः प्राचीन काल से ही गोपालन भारतीय जीवन-शैली व अर्थव्यवस्था का सदैव केन्द्रबिन्दु रहा है। जीवन के समस्त महत्त्वपूर्ण कार्यों के समय पंचगव्य का उपयोग किया जाता था। विज्ञान व कम्पयूटर के युग में भी गौ की महत्ता यथावत् बनी हुई है।

गाय परम उपयोगी कैसे ?
मानव-जाति की समृद्धि गाय की समृद्धि के साथ जुड़ी है। देशी गाय का दूध, दही, घी, गोबर व मूत्र सम्पूर्ण मानव जाति के लिए वरदानरूप हैं। गाय के दूध से निकला घी ‘अमृत’ कहलाता है। स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी राजा पुरुरवा के पास गयी तो उसने अमृत की जगह गाय का घी पीना ही स्वीकार कियाः घृतं मे वीर भक्ष्यं स्यात्। (श्रीमद्भागवतः 9.14.22)

गाय की महिमा बताते हुए पूज्य बापू जी कहते हैं- “गाय के शरीर में ही ‘सूर्यकेतु नाड़ी’ होती है जिससे वह सूर्य की गो किरणों को शोषित करके स्वर्णक्षार में बदल सकती है। स्वर्णक्षार जीवाणुनाशक हैं और रोगप्रतिकारक शक्ति की वृद्धि करते हैं। गाय के दूध व घी में स्वर्णक्षार पाये जाते हैं, जो भैंस, बकरी, ऊँट के दूध में नहीं मिलते।

गोबर और गोझरण मिलाकर महीने में एकाध बार रगड़-रगड़कर नहाने से शरीर में जो तेजस्विता आती है, वह तो आजमा के देख लें, बहुत स्वास्थ्य-लाभ होता है। गोमूत्र अवश्य पीना चाहिए। यह बीमारियों की जड़ें काट के निकाल देता है। यकृत व गुर्दे (किडनी) की खराबी, मोटापा, उच्च रक्तचाप, कोल्स्ट्रोल-वृद्धि, पाचन आदि सब ठीक कर देगा गोमूत्र। अब सब लोग गोमूत्र कहाँ ढूँढने जायें इसलिए 7800 गौओं की सेवा व निवास के लिए अलग-अलग गौशालाएँ बनायीं और वहाँ विधिपूर्वक गोमूत्र से उसका अर्क बनता है। 20-30 मि.ली. यह गोझरण अर्क एक कटोरी पानी में डालकर पियो तो गोमूत्र पीने का फायदा होगा”

विशेषः ये सभी लाभ देशी गाय से ही प्राप्त होते हैं, जर्सी व होल्सटीन से नहीं।

गौ-संरक्षक व संवर्धक पूज्य बापू जी
पूज्य बापू जी गायों का विशेष खयाल रखते हैं। उनके मार्गदर्शन में भारतभर में कई गौशालाएँ चलती हैं। यहाँ कत्लखाने ले जायी जा रही गायों को रोककर उनका पालन-पोषण व्यवस्थित ढंग से किया जा रहा है। बापू जी ने गाय के दूध की महत्ता अपने सत्संगों में बतायी, जिससे लोग गोदुग्ध का उपयोग कर बुद्धिमान व तेजस्वी-ओजस्वी बनें। बापू जी ने गौझरण व गोबर की महिमा व उपयोगिता बतायी तथा लोगों को आसानी से उपलब्ध हो इस हेतु गोझरण अर्क व गौ-चंदन धूपबत्ती आदि गौ-उत्पादों के निर्माण हेतु प्रेरित किया। बापू जी ने गाय के घी व पंचगव्य के लाभ बताये और इन्हें सत्संगियों को आसानी से उपलब्ध करवाया। गायों को पर्याप्त मात्रा में चारा व पोषक पदार्थ मिलें इसका वे विशेष ध्यान रखते हैं। बापू जी के निर्देशानुसार गोपाष्टमी व अन्य पर्वों पर गाँवों में घर-घर जाकर गायों को उनका प्रिय आहार खिलाया जाता है।

‘गोविन्द’ और गोपाष्टमी का रहस्य
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से सप्तमी तक गायों तथा गोप-गोपियों की रक्षा के लिए भगवान ने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। 8वें दिन इन्द्र अहंकाररहित होकर भगवान की शरण में आये। कामधेनु ने श्रीकृष्ण का अभिषेक किया और उस दिन भगवान का नाम गोविंद पड़ा। इसी समय से कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा।

गोपाष्टमी को क्या करें ?
सब प्रकार की अभीष्ट सिद्धि एवं सौभाग्य की वृद्धि चाहने वाले को इस दिन प्रातःकाल गायों को स्नान कराके गंध-पुष्पादि से उनका पूजन करना चाहिए। गोग्रास देकर उनकी परिक्रमा करके थोड़ी दूर तक उनके साथ जाना चाहिए। सायंकाल गायें चर के जब वापस आयें तो उस समय भी उनका आतिथ्य, अभिवादन और पंचोपचार-पूजन करके उन्हें कुछ खिलाकर उनकी चरणरज माथे पर लगानी चाहिए।

गायों की रक्षा का संकल्प
इस पर्व पर गोरक्षा का संकल्प लेना चाहिए। गोहत्या का कड़ा विरोध करना चाहिए। किसान गाय, बछड़ा, बैल आदि को बेचें नहीं। दूध न देने वाली गाय अथवा बूढ़ा बैल जितना घास (चारा) खाते हैं, उतना गोबर और गोमूत्र के द्वारा अपना खर्चा निकाल देते हैं। हर व्यक्ति को केवल गाय के ही दूध-घी का उपयोग कर गोसेवा में कम-से-कम इतना योगदान तो अवश्य देना चाहिए।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2015, पृष्ठ संख्या 24,25 अंक 275
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