अर्जुन की ताजा छाल को छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। 200 ग्राम दूध में 200 ग्राम ही पानी मिलाकर हल्की आग पर रखें व उपरोक्त तीन ग्राम अर्जुन छाल का चूर्ण मिलाकर उबालें। जब उबलते-उबलते द्रव्य आधा रह जाय तब उतार लें। थोड़ा ठंडा होने पर छानकर रोगी को पिलाने से सम्पूर्ण हृदयरोग नष्ट हो जाते हैं व हार्ट अटैक (दिल का दौरा) से बचाव होता है।
सेवन विधिः रोज एक बार उपरोक्त दवा प्रातः खाली पेट लें, व डेढ़ दो घंटे तक कुछ न लें। एक मास नित्य प्रातः लेते रहने से दिल का दौरा पड़ने की सम्भावना नहीं रहती है।
पथ्यापथ्यः हृदयरोगों में अँगूर व नीँबू का रस, गाय का दूध, जौ का पानी, कच्चा प्याज, आँवला, सेव आदि का सेवन हितकारी है। गरिष्ठ पदार्थों के सेवन से बचें। धूम्रपान न करें। मोटापा, मधुमेह व उच्चरक्तचाप आदि को नियंत्रित रखने का प्रयास करें। हृदय की अधिक धड़कने व नाड़ी की गति बहुत कमजोर हो जाने पर अर्जुन की छाल जीभ पर रखने मात्र से तुरन्त शक्ति प्रतीत होने लगती है।
अपानवायु मुद्रा
अँगूठे के पास वाली पहली अँगुली को अँगूठे की जड़ में लगाकर अंगूठे के अग्रभाग को बीच की दोनों अंगुलियों के अगले सिरे से लगा दें। सबसे छोटी अँगुली (कनिष्ठिका) को अलग रखें। इस स्थिति का नाम अपानवायु मुद्रा है। यदि किसी को हार्ट अटैक या हृदयरोग एकाएक आरम्भ हो जाय तो इस मुद्रा को अविलम्ब करने से हार्ट अटैक को तत्काल रोका जा सकता है।
हृदयरोगों में जैसे की हृदय की घबराहट, हृदय की तेज या मन्द गति, हृदय का धीरे-धीरे बैठ जाना आदि में कुछ ही क्षणों में लाभ होता है।
पेट की गैस, हृदय तथा पेट की बेचैनी और सारे शरीर की बेचैनी इस मुद्रा के अभ्यास से दूर हो जाती है। आवश्यकतानुसार प्रतिदिन 20 से 30 मिनट इसका अभ्यास किया जा सकता है।
रोग एवं निदान
पेट में कीड़ेः तीन साल से पाँच साल के बच्चों को आधा ग्राम अजवायन का चूर्ण व समभाग गुड़ में गोली बनाकर दिन में तीन बार खिलाने से सभी प्रकार के पेट कीड़े नष्ट होते हैं।
सुबह उठते ही कुल्ला आदि करके बच्चे दस ग्राम व बड़े 25 ग्राम गुड़ खाकर दस-पन्द्रह मिनट के बाद बच्चे आधा ग्राम व बड़े एक से दो ग्राम अजवायन का चूर्ण बासी पानी के साथ खायें। इससे आँतों में मौजूद सभी प्रकार के कृमि नष्ट होकर मल के साथ शीघ्र ही बाहर निकल जाते हैं।
अजवायन एक कृमिनाशक उत्तम औषधि है। इससे पेट के कीड़े दूर होकर बच्चों का सोते समय दाँत किटकिटाना बन्द हो जाता है। तीन दिन से एक सप्ताह तक आवश्यकतानुसार सेवन करें।
जिन व्यक्तियों को रात में बहूमूत्र की शिकायत हो उऩ्हें भी इससे लाभ होता है। कृमिजन्य सभी विकार दूर होने के साथ-साथ अजीर्ण आदि रोग भी दूर हो जाते हैं।
नजला-जुकामः रात के समय नित्य सरसों का तेल या गाय के घी को गुनगुना गर्म करके नाक द्वारा एक-दो बूँद लेने से नजला जुकाम नहीं होता है। मस्तिष्क स्वस्थ व सबल रहता है। नाक के रोग नहीं होते। चार-पाँच तुलसी के पत्ते व दो तीन काली मिर्च नित्य प्रातः खाने से जुकाम व बुखार नहीं होता है।
होठों का फटनाः नाभि में नित्य प्रातः सरसों का तेल लगाने से होंठ नहीं फटते अपितु फटे हुए होंठ मुलायम व सुन्दर हो जाते हैं। साथ ही नेत्रों की खुजली व खुश्की दूर हो जाती है।
दाँतों की मजबूती के लिएः मूत्रत्याग के समय ऊपर नीचे के दाँतों को एक दूसरे से दबाकर बैठें तो दाँतों की मजबूती बढ़ती है, दाँत जल्दी नहीं गिरते, लकवा (पक्षाघात) होने का डर भी नहीं रहता व दाँतों की सभी बीमारियों से बचाव होता है। नित्य प्रातः नीम की दातून करने से दाँत मजबूत रहते हैं। मुखरोगों से बचाव होता है।
मुख में कुछ देर सरसों का तेल रखकर कुल्हा करने से जबड़ा बलिष्ठ होता है। आवाज ऊँची व गम्भीर हो जाती है। चेहरा पुष्ट होता है। इस प्रयोग से होंठ नहीं फटते, कंठ नहीं सूखता एवं दाँतों की जड़ें मजबूत होती हैं।
विशेषः ऋतु अनुकूल तथा पाचनशक्ति के अनुसार ही खाना चाहिए। संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए खान-पान में संयम निरोग रहने की चाबी है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 1997, पृष्ठ संख्या 28,29 अंक 49
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