आयुर्वेद के मतानुसार सभी प्रकार की कन्द-सब्जियों में सूरन सर्वश्रेष्ठ है। बवासीर के रोगियों को आज भी वैद्य सूरन एवं छाछ पर रहने के लिए कहते हैं। आयुर्वेद में इसीलिए इसे ʹअर्शोघ्नʹ भी कहा गया है।
गुणधर्मः सूरन की दो प्रजातियाँ पायी जाती हैं-लाल और सफेद। लाल सूरन को काटने से हाथ में खुजली होती है। यह औषधि में ज्यादा प्रयुक्त होता है जबकि सफेद सूरन का उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार सूरन पचने में हल्का, रूक्ष, तीक्ष्ण, कड़वा, कसैला और तीखा, उष्णवीर्य, कफ एवं वातशामक, रूचिवर्धक, शूलहर, आर्तव (मासिक) बढ़ाने वाला, बलवर्धक, यकृत (लीवर) के लिए उत्तेजक एवं बवासीर (अर्श), गुल्म एवं प्लीहा के दर्द में पथ्यकारक है।
सफेद सूरन अरूचि, अग्निमांद्य, कब्जियत, उदरशूल, गुल्म (वायुगोला), आमवात, यकृत-प्लीहा के मरीजों के लिए तथा कृमि, खाँसी एवं श्वास की तकलीफवालों के लिए उपयोगी है। सूरन पोषक रसों का शोषण करके शरीर में शक्ति उत्पन्न करता है। पूरे दिन की बेचैनी, अपच, गैस, खट्टी डकारें एवं हाथ पैरों में दर्द के साथ शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के लिए सूरन का उपयोग लाभप्रद है।
लाल सूरन स्वाद में कसैला, तीखा, पचने में हल्का, रूचिकर, दीपक, पाचक, पित्त करने वाला एवं दाहक है तथा कृमि, कफ, वायु, दमा, खाँसी, उल्टी, शूल, वायुगोला आदि रोगों का नाशक है। लाल सूरन उष्णवीर्य, जलन उत्पन्न करने वाला, वाजीकारक ,कामोद्दीपक, मेदवृद्धि, बवासीर एवं वायु तथा कफ विकारों से उत्पन्न रोगों के लिए विशेष लाभदायक है।
हृदयरोग, रक्तस्राव एवं कोढ़ के रोगियों को सूरन का सेवन नहीं करना चाहिए।
सूरन की सब्जी ज्यादा कड़क या कच्ची न रहे ढंग से बनानी चाहिए। ज्यादा कमजोर लोगों के लिए सूरन का अधिक सेवन हानिकारक है। सूरन से मुँह आना, कंठदाह या खुजली जैसा हो तो नींबू अथवा इमली का सेवन करें।
बवासीर (मस्से-अर्श) में औषधि-प्रयोग
सूरन के टुकड़ों को पहले उबाल लें और फिर सुखाकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 320 ग्राम, चित्रक 160 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, काली मिर्च 20 ग्राम एवं गुड़ 1 किलो। इन सबको मिलाकर बेर जैसी छोटी-छोटी गोलियाँ बना लें। इसे ʹसूरन वटकʹ कहते हैं। प्रतिदिन सुबह शाम 3-3 गोलियाँ खाने से बवासीर में लाभ होता है।
सूरन के टुकड़ों को भाप में पकाकर तथा तिल के तेल में बनाई गई सब्जी का सेवन करने से एवं ऊपर से छाछ पीने से सभी प्रकार की बवासीर में लाभ होता है। यह प्रयोग 30 दिन तक करें।
साँईं श्री लीलाशाहजी उपचार केन्द्र,
संत श्री आसारामजी आश्रम,
जहाँगीरपुरा, वरियाव रोड, सूरत
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 1999, पृष्ठ संख्या 29,30 अंक 82
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