गौसेवा के आदर्शः पूज्य बापू जी

गौसेवा के आदर्शः पूज्य बापू जी


गोपाष्टमीः 8 नवम्बर 2016

गायों व गरीबों को दिया नवजीवन

पूज्य बापू जी का गायों के प्रति प्रेम अभूतपूर्व है। उनके संरक्षण व संवर्धन के लिए पूज्य श्री द्वारा किये गये सफल प्रयासों से गायों को नवजीवन मिला है। निवाई (राजस्थान) के बंजर इलाके में बापू जी ने गौशाला की स्थापना कराके ऐसे इलाके को भी हरा भरा कर दिया है।

इस गौशाला के शुभारम्भ का इतिहास बड़ा प्रेरणाप्रद है। सन् 2000 में राजस्थान में पड़े भीषण अकाल के कारण लगभग डेढ़ हजार गायें कत्लखाने ले जायी जा रही थीं। वहाँ के साधकों ने जब पूज्य बापू को इस बात की जानकारी दी तो पूज्य श्री ने उन गायों को छुड़वाया तथा उनकी सेवा के लिए 14 जून 2000 को एक गौशाला का शुभारम्भ करवाया। यहाँ पर उन्हें चारा-पानी तथा चिकित्सा-सुविधा उपलब्ध करायी गयी।

उस समय निवाई में पानी एवं घास के अभाव में गाँव वाले गायों को छोड़ देते थे तो कत्लखाने वाले उन्हें ले जाते थे। यह पता चला तो बापू जी का हृदय भर आया, बोलेः “एक भी गाय कत्लखाने नहीं जानी चाहिए।”

पूज्य श्री के निर्देशानुसार गायों को कसाइयों से मुक्त करवाकर उनके लिए बाड़ा बनवाया गया। धीरे-धीरे वहाँ गौशाला में 5000 से ज्यादा गायें हो गयीं।

बापू जी गायों का खूब ख्याल रखते-रखवाते थे। पूज्य श्री बोलते थेः “गायों को तकलीफ न हो इसका ध्यान रखना।”

वहाँ इतनी गायों को रखने की जगह नहीं थी। ऊपर से गर्मियों में गाँव  वाले अपनी गायें भी ले आते थे। पूज्य श्री के पास समाचार पहुँचा तो आपश्री बोलेः “कुछ भी करके गायों को रखो, सेवा और बढ़ाओ।”

गर्मियों में वहाँ गायों के लिए पीने का पानी तक नहीं मिल पाता था तो शहर से पानी के टैंकर मँगवाते थे। एक दिन में 3-4 टैंकर पानी लग जाता था। वहाँ हरी घास नहीं मिलती थी फिर भी बापू जी बोलतेः “हफ़्ता या 15 दिन में हरी घास गायों को मिलनी ही चाहिए, कहीँ न कहीं से व्यवस्था करो।”

हरी घास की व्यवस्था की जाती थी। बापू जी बहुत व्यस्तता में भी साल में 1-2 बार निवाई में जरूर रुकते थे। पूज्य श्री अपने हाथों से गायों को चारा खिलाते और सभी बाड़ों में जा के देखते, दुबली पतली गायों को बाहर निकलवाकर बोलतेः “इनका इलाज कराओ। बूढी व जवान गायों की अलग और इनके बछड़ों की अलग व्यवस्था करो।”

फिर बापू जी ने लुधियाना, श्योपुर (म.प्र.), दिल्ली,  अहमदाबाद आदि विभिन्न स्थानों पर गौशालाएँ खुलवायीं और निवाई की कुछ गायों को सभी जगह भिजवाया। अभी इन गौशालाओं में कुल 8000 गायें हैं।

निवाई आश्रम में ट्यूब वैल खुदवाया गया और भगव्तकृपा से पानी का अच्छा स्रोत निकला। वहाँ घास भी लगने लगी। गायों को हरी घास, दलिया, कपास के बीज, ज्वार बाजरा, मूँग का चूरा आदि पोषक आहार एवं ऋतु अनुकूल खुराक दी जाती है। उनके रहने के लिए बाडे आदि की अच्छी व्यवस्था हो गयी।

गरीबों का भी रखते हैं ख्याल

पूज्य बापू जी गरीबों का भी ख्याल रखते हैं। आसपास के मजदूर जो 5-5 कि.मी. से पैदल आते थे, उनके पास टोपी-चप्पल नहीं, रहने के लिए घर नहीं। बापू जी उन्हें जूते, टोपियों आदि खुद बाँटते-बँटवाते थे। इतना ही नहीं, पूज्य श्री ने उन गरीबों को मकान भी बनवाकर दिये।

पहले वहाँ इतनी बदहाली थी कि लोग आत्महत्या करने की कगार पर आ जाते थे। बापू जी ने गायों के माध्यम से गरीबों के लिए रोजगार का मार्ग खोल दिया। पूज्य श्री ने गोझरण इकट्ठा करवाना चालू करवाया और उसका अर्क व गोझरण वटी बनवायी। थोड़ें खर्च में लोगों की बहुत सारी बीमारियाँ अलविदा हो जातीं, गरीब स्वस्थ हो जाते और उनको रोजगार भी मिलता। गोझरण अर्क से देश विदेश में कइयों की असाध्य बीमारियाँ जैसे कैंसर, टी.बी. आदि मिट गयी।

गोझरण इकट्ठा  करने के लिए गरीबों को पैसे दिये जाते हैं। बाद में गौचंदन धूपबत्ती बनना भी चालू हो गया तो गोबर भी इकट्ठा करने व धूपबत्ती बनाने का भी उनको रोजगार मिलने लगा। गरीबों को 150-200 रूपये प्रतिदिन के मिल जाते। हर व्यक्ति को उसकी उम्र की अनुकूलता अनुसार काम मिलता है।

बापू जी एक बार निवाई पधारे तब सभी मजदूरों को पास में बुला-बुला के उनकी पीठ थपथपायी और पूछाः “तुमको कितना पैसा मिलता है, ये लोग ख्याल रखते हैं?” इस प्रेम व अपनत्व से उन गरीब मजदूरों की आँखों से प्रेमाश्रु छलक  पड़े थे।

आश्रम में आकर कीर्तन-भजन करने से गरीबों का जीवन उन्नत व खुशहाल हो गया। बापू जी ने उनको यहाँ तक बोलाः “आओ, यहाँ ध्यान भजन करो, भोजन करो और रोज 50 रूपये भी ले जाओ।”

ऐसे मनायी जाती है गोपाष्टमी

जीवमात्र के परम हितैषी पूज्य बापू जी के द्वारा वर्षभर गायों के लिए कुछ न कुछ सेवाकार्य चलते ही रहते हैं तथा गौसेवा हेतु अपने करोड़ों शिष्यों एवं समाज को प्रेरित करने वाले उपदेश पूज्य श्री के प्रवचनों का अभिन्न अंग रहे हैं। बापू जी के निर्देशानुसार गोपाष्टमी व अन्य पर्वों पर गौशालाओं में तथा गाँवों में घर-घर जाकर गायों को उनका प्रिय व पौष्टिक आहार खिलाया जाता है। उनकी सेवा, पूजा व परिक्रमा कर चरणरज सिर पर लगायी जाती है।

(गोपाष्टमी विषयक अधिक जानकारी हेतु ‘ऋषि प्रसाद’ का नवम्बर 2015 अथवा नवम्बर 2012 का अंक पढ़ें।)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2016, पृष्ठ संख्या 20,21, अंक 286

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