गाजर को उसके प्राकृतिक रूप में ही अर्थात् कच्चा खाने से ज्यादा लाभ होता है। उसके भीतर का पीला भाग निकालकर खाना चाहिए क्योंकि वह अत्यधिक गरम होता है अतः पित्त दोष, वीर्यदोष एवं छाती में दाह उत्पन्न करता है।
गाजर स्वाद में मधुर-कसैली-कड़वी, तीक्ष्ण, स्निग्ध, उष्णवीर्य, गरम, दस्त को बाँधने वाली, मूत्रल, हृदय के लिए हितकर, रक्त शुद्ध करने वाली, कफ निकालने वाली, वातदोषनाशक, पुष्टिवर्धक तथा दिमाग एवं नस नाड़ियों के लिए बलप्रद है। यह अफारा, संग्रहणी, बवासीर, पेट के रोगों, सूजन, खाँसी, पथरी, मूत्रदाह, मूत्राल्पता तथा दुर्बलता का नाश करने वाली है।
गाजर के बीज गरम होते हैं अतः गर्भवती महिलाओं को उनका उपयोग कभी नहीं करना चाहिए। बीज पचने में भारी होते हैं। गाजर में आलू से छः गुणा ज्यादा कैल्शियम होता है। कैल्शियम एवं कैरोटीन की प्रचुर मात्रा होने के कारण छोटे बच्चों के लिए यह एक उत्तम आहार है। रूसी डॉक्टर मेकनिकोफ के अनुसार गाजर में आँतों के हानिकारक जन्तुओं को नष्ट करने का अदभुत गुण पाया जाता है। इसमें विटामिन ʹएʹ भी काफी मात्रा में पाया जाता है अतः यह नेत्ररोगों में लाभदायक है।
गाजर रक्त शुद्ध करने वाली है। 10-15 दिन केवल गाजर के रस पर रहने से रक्त विकार, गाँठ, सूजन एवं पाण्डुरोग जैसे त्वचा के रोगों में लाभ होता है। इसमें लौह तत्त्व भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। खूब चबाकर गाजर खाने से दाँत मजबूत, स्वच्छ एवं चमकदार होते हैं तथा मसूढ़े मजबूत होते हैं।
विशेषः गाजर के भीतर का पीला भाग खाने से अथवा गाजर खाने के बाद 30 मिनट के अंदर पानी पीने से खाँसी होती है। अत्यधिक मात्रा में गाजर खाने से पेट में दर्द होता है। ऐसे समय में थोड़ा गुड़ खायें। अधिक गाजर वीर्य का क्षय करती है। पित्तप्रकृति के लोगों को गाजर का कम एवं सावधानीपूर्वक उपयोग करना चाहिए।
औषधि-प्रयोग
दिमागी कमजोरीः गाजर के रस का नित्य सेवन करने से कमजोरी दूर होती है।
दस्तः गाजर का सूप लाभदायक है।
सूजनः मरीज को सब आहार त्याग कर केवल गाजर के रस अथवा उबली हुई गाजर पर रहने से लाभ होता है।
मासिक न दिखने पर या कष्टार्तवः मासिक कम आने पर या समय होने पर भी न आने पर गाजर के 5 ग्राम बीजों का 20 ग्राम गुड़ के साथ काढ़ा बनाकर लेने से लाभ होता है। एलौपैथिक गोलियाँ जो मासिक को नियमित करने के लिए ली जाती हैं वे हानिकारक होती हैं।
पुराने घावः गाजर को उबालकर उसकी पुलटिस बनाकर घाव पर बाँधने से लाभ होता है।
खाजः गाजर को कद्दूकस करके अथवा बारीक पीसकर उसमें थोड़ा नमक मिला लें और पानी डाले बिना उसे गर्म करके खाज पर रोज बाँधने से लाभ होता है।
आधासीसीः गाजर के पत्तों पर दोनों ओर घी लगाकर उन्हें गर्म करें। फिर उनका रस निकालकर 2-3 बूँदें कान एवं नाक में डालें। इससे आधासीसी का दर्द मिटता है।
श्वास हिचकीः गाजर के रस की 4-5 बूँदें दोनों नथुनों में डालने से लाभ होता है।
नेत्ररोगः दृष्टिमंदता, रतौंधी, पढ़ते समय आँखों में तकलीफ होना आदि रोगों में कच्ची गाजर या उसके रस का सेवन लाभप्रद है। यह प्रयोग चश्मे का नंबर घटा सकता है।
पाचन संबंधी गड़बड़ीः अरूचि, मंदाग्नि, अपच आदि रोगों में गाजर के रस में नमक, धनिया, जीरा ,काली मिर्च, नींबू का रस डालकर पियें अथवा गाजर का सप बनाकर पियें।
पेशाब की तकलीफः गाजर का रस पीने से खुलकर पेशाब आता है, रक्तशर्करा भी कम होती है। गाजर का हलवा खाने से पेशाब में कैल्शियम, फास्फोरस का आना बंद हो जाता है।
नकसीर फूटनाः ताजी गाजर का रस अथवा उसकी लुगदी सिर एवं ललाट पर लगाने से लाभ होता है।
जलने परः जलने से होने वाली दाह में प्रभावित अंग पर बार-बार गाजर का रस लगाने से लाभ होता है।
हृदय रोगः हृदय की कमजोरी अथवा धड़कनें बढ़ जाने पर गाजर को भून लें या उबाल लें। फिर उसे रात भर के लिए खुले आकाश में रख दें। सुबह उसमें मिश्री तथा केवड़े या गुलाब का अर्क मिलाकर रोगी को देने से लाभ होता है अथवा उसे रोज 2-3 बार कच्ची गाजर का रस पिलायें।
प्रसवपीड़ाः यदि प्रसव के समय स्त्री को अत्यंत कष्ट हो रहा हो तो गाजर के बीजों के काढ़े में एक वर्ष का पुराना गुड़ डालकर गरम-गरम पिलाने से प्रसव जल्दी होता है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2000, पृष्ठ संख्या 30, अंक 86
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