संत श्री आसारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से
चीन के पेकिंग (बीजिंग) शहर के एक 250 वर्षीय वृद्ध से पूछा गयाः “आपकी इतनी दीर्घायु का रहस्य क्या है ?”
उस चीनी वृद्ध ने जो उत्तर दिया, वह सभी के लिए लाभदायक व उपयोगी है। उसने कहाः
“मेरे जीवन में तीन बातें हैं जिनकी वजह से मैं इतनी लम्बी आयु पा सका हूँ।
एक तो यह है कि मैं कभी उत्तेजना के विचार नहीं करता। दिमाग में उत्तेजनात्मक विचार नहीं भरता हूँ। मेरे दिल-दिमाग शांत रहें, ऐसे ही विचारों को पोषण देता हूँ।
दूसरी बात यह है कि मैं उत्तेजित करने वाला, आलस्य को बढ़ाने वाला भोज्य पदार्थ नहीं लेता और न ही अनावश्यक भोजन लेता हूँ। मैं स्वाद के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए भोजन करता हूँ।
तीसरी बात यह है कि मैं गहरा श्वास लेता हूँ। नाभि तक श्वास भर जाये इतना श्वास लेता हूँ और फिर छोड़ता हूँ। अधूरा श्वास नहीं लेता।”
लाखों-करोड़ों लोग इस रहस्य को नहीं जानते हैं। वे पूरा श्वास नहीं लेते हैं। पूरा श्वास लेने से फेफड़ों का एवं दूसरे अवयवों का अच्छी तरह से उपयोग होता है एवं श्वास की गति कम होती है। जो लोग आधे श्वास लेते हैं वे एक मिनट में 14-15 श्वास गँवा देते हैं। जो लोग लम्बे श्वास लेते हैं वे एक मिनट में 10-12 श्वास ही लेते हैं, इसस आयुष्य की बचत होती है।
कार्य करते समय एक मिनट में 12-13 श्वास खर्च होते हैं। दौड़ते समय या चलते-चलते बात करते समय एक मिनट में 18-20 श्वास खर्च होते हैं। क्रोध करते समय एक मिनट में 24 से 28 श्वास खर्च हो जाते हैं और काम भोग के समय एक मिनट में 32 से 36 श्वास खर्च हो जाते हैं। जो अधिक विकारी है उनके श्वास ज्यादा खत्म होते हैं, उनकी नस-नाड़ियाँ जल्दी कमजोर हो जाती हैं। हर मनुष्य का जीवनकाल उसके श्वासों के मुताबिक कम-अधिक होता है। कम श्वास (प्रारब्ध) लेकर आया है तो भी निर्विकारी जीवन जी लेगा। भले कोई अधिक श्वास लेकर आया हो लेकिन अधिक विकारी जीवन जीने से वह उतना नहीं जी सकता जितना जी सकता था।
जब आदमी शांत होता है तो उसके शरीर से जो आभा निकलती वह बहुत शांति से निकलती हैं और जब आदमी उत्तेजनात्मक भावों में, विचारों में आता है या क्रोध के समय काँपता है उस वक्त उसके रोमकूप से अधिक आभा निकलती है। यही कारण है कि क्रोधी आदमी जल्दी थक जाता है जबकि शांत आदमी जल्दी नहीं थकता।
शातं होने का मतलब यह नहीं कि आलसी होकर बैठे रहें। अगर आलसी होकर बैठे रहेंगे तो शरीर के पुर्जे बेकार हो जायेंगे, शिथिल हो जायेंगे, बीमार हो जायेंगे। उन्हें ठीक करने के लिए फिर श्वास ज्यादा खर्च होंगे।
अति परिश्रम न करें और अति आरामप्रिय न बनें। अति खाये नहीं और अति भुखमरी न करें। अति सोये नहीं और अति जागे नहीं। अति संग्रह न करें और अति अभावग्रस्त न बनें। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा हैः युक्ताहारविहारस्य….
डॉ. फ्रेडरिक कई संस्थाओं के अग्रणी थे। उन्होंने 84 वर्षीय एक वृद्ध सज्जन को सतत कर्मशील रहते हुए देखकर पूछाः “एक तो 84 वर्ष की उम्र, नौकरी से सेवानिवृत्त, फिर भी इतने सारे कार्य और इतनी भागदौड़ आप कैसे कर लेते हैं ? ग्रह-नक्षत्र की जाँच परख में आप मेरा इतना साथ दे रहे हैं ! क्या आपको थकान या कमजोरी महसूस नहीं होती ? क्या आपको कोई बीमारी नहीं है ?”
जवाब में उस वृद्ध ने कहाः “आप अकेले ही नहीं, और भी अपने परिचित डॉक्टरों को बुलाकर मेरी तन्दुरुस्ती की जाँच करवा लें, मुझे कोई बीमारी नहीं है।”
कई डॉक्टरों ने मिलकर उस वृद्ध की जाँच की और देखा कि उस वृद्ध के शरीर में बुढ़ापे के लक्षण तो प्रकट हो रहे थे लेकिन फिर भी वह वृद्ध प्रसन्नचित्त था। इसका कारण क्या हो सकता है ?
जब डॉक्टरों ने इस बात की खोज की तब पता चला कि वह वृद्ध दृढ़ मनोबल वाला है। शरीर में बीमारी के कितने ही कीटाणु पनप रहे हैं लेकिन दृढ़ मनोबल एवं प्रसन्नचित्त रहने के कारण रोग के कीटाणु उत्पन्न होकर नष्ट भी हो जाते हैं। वे रोग इनके मन पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाते।”
आलस्य शैतान का घर है। आलस्य से बढ़कर मानव का दूसरा कोई शत्रु नहीं है। जो सतत प्रयत्नशील एवं उद्यमशील रहता है, सफलता उसी का वरण करती है। कहा भी गया हैः
उद्यमेन हि सिद्धयन्ति कार्याणी न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।
ʹउद्यमशील के ही कार्य सिद्ध होते हैं, आलसी के नहीं। कभी-भी सोये हुए सिंह के मुख में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करते।ʹ
अतः हे विद्यार्थियों ! उद्यमी बनो। साहसी बनो। अपना वक्त बरबाद मत करो। जो समय को बरबाद करते हैं, समय उन्हें बरबाद कर देता है। समय को ऊँचे एवं श्रेष्ठ कार्यों में लगाने से समय का सदुपयोग होता है एवं तुम्हें भी लाभ होता है। जैसे कोई व्यक्ति चपरासी के पद हो तो आठ घंटे के समय का उपयोग करे! जिलाधीश के पद पर हो तो भी उतना ही करे तथा राष्ट्रपति के पद पर हो तो भी उतना ही करे, फिर भी समय का उपयोग उतना ही होने पर भी फायदा अलग-अलग होता है। अतः समय का सदुपयोग जितने ऊँचे कार्यों में करोगे, उतना ही लाभ ज्यादा होगा और यदि ऊँचे-में-ऊँचे कार्य परमात्मा की प्राप्ति में समय लगाओगे तो तुम स्वयं परमात्मरूप होने का सर्वोच्च लाभ भी प्राप्त कर सकोगे।
उठो….जागो…. कमर कसो। श्रेष्ठ विचार, श्रेष्ठ आहार विहार एवं श्वास की गति के नियंत्रण की युक्ति को जानकर, दृढ़ मनोबल रखकर, सतत कर्मशील रहकर दीर्घायु बनो। अपने समय को श्रेष्ठ कार्यों में लगाओ। फिर तुम्हारे लिए महान बनना उतना ही सहज हो जायेगा, जितना सूर्योदय होने पर सूरजमुखी का खिलना सहज होता है।
ૐ शांति… ૐ हिम्मत…. ૐ साहस…. ૐ बल…. ૐ दृढ़ता…. ૐ…..ૐ….ૐ…..
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2000, पृष्ठ संख्या 18-20 अंक 87
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ