संत श्री आसारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से
जिन्होंने भी दीक्षा ली है, प्राणायाम जानते हैं वे इस गुरुपूनम के बाद 10-10 त्रिबंध प्राणायाम करेंगे। जो नहीं जानते, वे जानकार साधकों से सीख लेंगे। त्रिबंध प्राणायाम से बहुत सारे लाभ होते हैं।
गुरु हमें गुरु-परम्परा से प्राप्त कई अनुभवों से सार-सार बातें बता रहे हैं। चाहे कैसी भी गंदी पुरानी आदत होगी, त्रिबंध प्राणायाम से उसे आप उखाड़ फेंकने में सफल हो जाओगे। हर आदमी में कोई-न-कोई कमजोरी होती है और दूसरे लोग उसे चाहे जानें या न जानें लेकिन हम अपने-आपकी कमजोरी बिल्कुल जानते हैं। त्रिबंध प्राणायाम से उस कमजोरी को निकालने मं आप अवश्य सफल हो जाओगे।
त्रिबंध प्राणायाम करो। फिर जो कमजोरी है मन से उसको सामने लाओ एवं मन ही मन कहो किः ʹअब मैं इस कमजोरी के आगे घुटने नहीं टेकूँगा। भगवदकृपा, भगवन्नाम, मंत्र मेरे साथ है। हरि ૐ….ૐ….ૐ…. हरि ૐ…. हरि ૐ… बल ही जीवन है… दुर्बलता मौत है….ʹ
मान लो, किसी को दोपहर को भोजन करके सोने की आदत है। दोपहर को सोने से शरीर मोटा हो जाता है और त्रिदोष पैदा हो जाते हैं। बस, यह ठान लो किः ʹमैं दिन में सोने की गलती निकालूँगा।ʹ मान लो, किसी को अधिक खाने की आदत है। नहीं जरूरत है फिर भी खाते रहते हैं। शरीर मोटा हो गया है। ….. तो नियम ले लोः ʹअब तुलसी के पत्ते रोज खाऊँगा… भोजन में अदरक का प्रयोग करूँगा।ʹ वायु की तकलीफ है तो निर्णय करोः ʹआज से आलू मेरे बंद।ʹ इस प्रकार जिस कारण से रोग होता है ऐसी चीजों को लेना बंद कर दो। जिस कारण से चटोरापन होता है वे चीजें दूसरों को दे दो और निर्णय करो किः ʹआज से इतने दिनों तक इस दोष में नहीं गिरूँगा।ʹ यदि इतने दिनों तक इस दोष में नहीं गिरुँगा।ʹ यदि काम और लोभ का दोष है तो निर्णय करो किः ʹआज से इतने दिनों तक काम में नहीं गिरुँगा…. लोभ में नहीं गिरूँगा…ʹ इस प्रकार जो भी बुरी आदत है या विकार है, कुछ दिनों तक ऐसा कुछ नियम ले लो जो उसके विपरीत भावों का हो। मान लो, आपका चिड़चिड़ा स्वभाव है, क्रोधी स्वभाव है तो ʹराम… राम… राम…..ʹ रटन करके हास्य करो और निर्णय करो किः ʹआज से इतने दिनों तक मैं प्रसन्न रहूँगाʹ चिंता में डूबने की आदत है तो दृढ़ भावना करोकिः ʹमैं निश्चिन्त नारायण का हूँ…. ૐ शांति… शांति…ʹ दस मिनट तक यह भावना दुहराओ। इस प्रकार की कोई भी कमजोरी हो, सिगरेट-शराब की या दूसरी कोई हो…. इस प्रकार के अलग-अलग दोषों को निवृत्त करने के लिए त्रिबंध प्राणायाम आदि अलग-अलग प्रयोग ʹध्यान योग शिविरʹ में कराये जाते हैं। इससे आप अपनी पुरानी बुरी आदत और कमजोरी को निकालने में सफल हो सकते हो। आपका शरीर फुर्तीला रहेगा, मन पवित्र होने लगेगा और ध्यान भजन में बरकत आयेगी।
त्रिबंध प्राणायाम शुद्ध हवामान में करना चाहिए, सात्त्विक वातावरण में करना चाहिए। दोपहर को भी करो तो और अच्छा है। कभी न कभी शिविर तो भरोगे ही… शिविर में कई प्रयोग सिखाये जाते हैं।
हफ्ते में एकाध दिन मौन रहो। हो सके तो संध्या को सूर्यास्त के बाद या रात्रि के भोजन के बाद मौन रहने का संकल्प कर लो किः ʹसूर्योदय से पहले अथवा नियम होने तक किसी से बात नहीं करेंगे।ʹ इससे आपकी काफी शक्ति बच जायेगी एवं आप जिस क्षेत्र में हैं वहाँ भी वह शक्ति काम करेगी। इस मौन को यदि आप परमात्मप्राप्ति में लगाना चाहो तो साथ में अजपाजाप का भी प्रयोग करो। सुबह नींद से उठने के बाद थोड़ी देर शांत होकर बैठो एवं विचार करो किः ʹहो-होकर क्या होगा ? बड़े शर्म की बात है कि मनुष्य जन्म पाकर भी जरा-जरा सी बात में दुःखी, भयभीत एवं चिंतित होता हूँ। दुःख, चिन्ता एवं भय में तो वे रहें जिनके माई-बाप मर गये हों और निगुरे हों। हमारे माई-बाप तो हमारा आत्मा-परमात्मा है और गुरु का ज्ञान मेरे साथ है। हरि ૐ…. हरि ૐ…. राम…. राम…. अब हम प्रयत्न करेंगे लेकिन चिंता नहीं करेंगे….ʹ आदि-आदि। सुबह ऐसा संकल्प करो फिर देखो कि आप कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हो।
जप तीन प्रकार से कर सकते हैं- ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत। ʹहरि ૐ-हरि ૐ-हरि ૐ-हरिૐ-हरि ૐ…ʹ यह है ह्रस्व जप। ʹ हरि….ૐ…. हरि…..ૐ….. हरि….. ૐ….. हरि….. ૐ….. यह है दीर्घ जप।
ʹह…रि…ૐ… ह….रि….ૐ…. ह….रि….ૐ….ह….रि….ૐ… ह……रि…. ૐ…..ʹ यह है प्लुत जप।
रात्रि को सोते समय इऩ तीनों प्रकार से दस मिनट तक ʹहरि ૐ….ʹ मंत्र का जप करके सो जाओ। इस प्रकार के जप से आपको तन, मन एवं बुद्धि में कुछ विशेष परिवर्तन का अनुभव होगा। यदि प्रतिदिन इसका नियम बना लो तो आपकी तो बंदगी बन जायेगी और साथ ही आपके अचेतन मन में भी भारी लाभ होने लगेगा।
इस प्रकार नियमित रूप से किये गये त्रिबंध प्राणायाम, मौन, जप एवं ध्यान की साधना आपके जीवन में चार चाँद लगा देंगे।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2000, पृष्ठ संख्या 11,12 अंक 91
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