डॉ प्रेमजी के पत्र के जवाब का खंडन -4

डॉ प्रेमजी के पत्र के जवाब का खंडन -4


आपने लिखा हैआपके आश्रम में दिन भर सत्संग चलता है तो कोन सुधरा है” 

यहाँ तो आपने सत्संग की निंदा करने का पाप किया है. आश्रम के साधकों को सुधारने का आपने ठेका लिया है क्या? सब की अपनी अपनी योग्यता होती है, सब अपने अपने ढंग से आगे बढ़ते है, और सब को लाभ होता है इसलिए सब रहते है. स्वामी विवेकानंद कहते थे जो सत्संग करता है वह ५० गलतियां कर सकता है पर सत्संग नहीं करता तो वह ५०० गलतियां करता. इसलिए सब आपकी मान्यता के अनुसार न भी सुधरे हो तो उसमें सत्संग का दोष नहीं है. प्रभुजी का प्रवचन सुननेवाले सब सुधर गए हो तो उन सबको बधाई हो. लेकिन वास्तव में सुधरा हुआ कभी किसीमें दोष दर्शन नहीं करता. अगर किसीको अपने और अपनेवालो के गुण दीखते हो और दूसरों के दोष दीखते हो तो वह सुधरा हुआ नहीं है, बहुत बिगड़ा हुआ है.  कौन सुधरा और कौन नहीं सुधरा उसकी आप क्यों चिंता करते हो? आप अपना सुधार कर लो तो काफी है.

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