आपने लिखा है “और श्री चंद ने गुरु गद्दी मांगी थी लेकिन प्रभुजी ने बापूजी से कोई गुरु गद्दी नही मांगी है”
जब आपके प्रभुजी मेरे गुरुदेव के शिष्य ही नहीं है तो उनको गुरु गद्दी मांगने का अधिकार ही नहीं है. गुरु गद्दी कोई पैतृक संपत्ति नहीं है कि पिता के संतान उस में अपना हिस्सा मांग सके.
मैंने लिखा था “गुरु नानक ने उनके बाद गुरु गद्दी अंगद देव को दी थी, उनके पुत्र श्रीचंद ने अपना अलग उदासीन सम्प्रदाय चलाया. फिर भी गुरु नानक के शिष्य अंगद देव को ही गुरु मानते थे, ऐसा नहीं सोचते थे कि श्रीचंद भी गुरु परिवार में है.” इस का तात्पर्य यह है कि गुरुद्वारा जिसको अधिकार दिया जाए उसे सिख धर्म के अनुयायी गुरु मानते थे, गुरु परिवार को नहीं. याने गुरु गद्दी मांगी नहीं जाती. अधिकारी को दी जाती है. फिर भी आप तात्पर्य को न समझकर कहते हो कि श्रीचंद ने गुरु गद्दी मांगी थी. प्रभुजी ने नहीं मांगी.