रसायन चिकित्सा आयुर्वेद के अष्टांगों में से एक महत्त्वपूर्ण चिकित्सा है। रसायन का सीधा सम्बन्ध धातु के पोषण से है। यह केवल औषध-व्यवस्था न होकर औषधि, आहार-विहार एवं आचार का एक विशिष्ट प्रयोग है जिसका उद्देश्य शरीर में उत्तम धातुपोषण के माध्यम से दीर्घ आयुष्य, रोगप्रतिकारक शक्ति एवं उत्तम बुद्धिशक्ति को उत्पन्न करना है। स्थूल रूप से यह शारीरिक स्वास्थ्य का संवर्धन करता है परन्तु सूक्ष्म रूप से इसका सम्बन्ध मानस स्वास्थ्य से अधिक है। विशेषतः मेध्य रसायन इसके लिए ज्यादा उपयुक्त है। बुद्धिवर्धक प्रभावों के अतिरिक्त इसके निद्राकारक, मनोशांतिकर एवं चिन्ताहर प्रभाव भी होते हैं। अतः इसका उपयोग विशेषकर मानस विकारजन्य शारीरिक व्याधियों में किया जा सकता है।
रसायन सेवन में वय, प्रकृति, सात्म्य, जठराग्नि तथा धातुओं का विचार आवश्यक है। भिन्न-भिन्न वय तथा प्रकृति के लोगों की आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न होने के कारण तदनुसार किये गये प्रयोगों से ही वांछित फल की प्राप्ति होती है।
1 से 10 साल तक के बच्चों को 1 से 2 चुटकी वचाचूर्ण शहद में मिलाकर चटाने से बाल्यावस्था में स्वभावतः बढ़ने वाले कफ का शमन होता है, वाणी स्पष्ट व बुद्धि कुशाग्र होती है।
11 से 20 साल तक किशोरों एवं युवाओं को 2-3 ग्राम बलाचूर्ण 1-1 कप पानी व दूध में उबालकर देने से रस, मांस तथा शुक्रधातु पुष्ट होती है एवं शारीरिक बल की वृद्धि होती है।
21 से 30 साल तक के लोगों को 1 चावल के दाने के बराबर शतपुटी लौहभस्म गोघृत में मिलाकर लेने से रक्तधातु की वृद्धि होती है। इसके साथ 1 चम्मच आँवला चूर्ण सोने से पहले पानी के साथ लेने से नाड़ियों की शुद्धि होकर शरीर में स्फूर्ति व ताजगी का संचार होता है।
31 से 40 साल तक के लोगों को शंखपुष्पी का 10 से 15 मि.ली. रस अथवा उसका 1 चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर देने से तनावजन्य मानसिक विकारों में राहत मिलती है। नींद अच्छी आती है। उच्च रक्तचाप कम करने एवं हृदय को शक्ति प्रदान करने में भी यह प्रयोग बहुत हितकर है।
41 से 50 वर्ष की उम्र के लोगों को 1 ग्राम ज्योतिष्मती चूर्ण 2 चुटकी सोंठ के साथ गरम पानी में मिलाकर देने तथा ज्योतिष्मती के तेल से अभ्यंग करने से इस उम्र में स्वभावतः बढ़ने वाले वातदोष का शमन होता है एवं संधिवात, पक्षाघात (लकवा) आदि वातजन्य विकारों से रक्षा होती है।
51 से 60 वर्ष की आयु में दृष्टिशक्ति स्वभावतः घटने लगती है जो 1 ग्राम त्रिफला चूर्ण तथा आधा ग्राम सप्तामृत लौह गोघृत के साथ दिन में 2 बार लेने से बढ़ती है। सोने से पूर्व 2-3 ग्राम त्रिफला चूर्ण गरम पानी के साथ लेना भी हितकर है। गिलोय, गोक्षुर एवं आँवला से बना रसायन चूर्ण 3-10 ग्राम तक सेवन करना अति उत्तम है।
मेध्य रसायनः शंखपुष्पी, जटामांसी और ब्राह्मी चूर्ण समभाग मिलाकर 1 ग्राम चूर्ण शहद के साथ लेने से ग्रहणशक्ति व स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है। इससे मस्तिष्क को बल मिलता है, नींद अच्छी आती है एवं मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।
आचार रसायनः केवल सदाचार के पालन से भी शरीर व मन पर रसायनवत् प्रभाव पड़ता है और रसायन के सभी फल प्राप्त होते हैं।
सत्यवादी, क्रोधरहित, अहिंसक, उदार, धीर, प्रियभाषी, अहंकाररहित, ब्रह्मचर्य का पालन व नित्य दान करने वाला, गुरु एवं वयोवृद्ध तपस्वियों की पूजा तथा सेवा सुश्रुषा में रत, संयमी, जप तप एवं धर्मशास्त्रों का स्वाध्याय करने वाला पुरुष नित्य रसायन सेवी है – ऐसा समझना चाहिए।
संत श्री आसारामजी आश्रम संचालित धन्वन्तरि आरोग्य केन्द्र, अमदावाद।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2001, पृष्ठ संख्या 29,30 अंक 98
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