Monthly Archives: August 2002

तीन उपयोगी बातें


संत श्री आसाराम जी बापू के सत्संग-प्रवचन से

साधक के जीवन में तीन बातें होनी चाहिए- दोषनिवृत्ति, गुणाधान, हीनांगपूर्ति।

शरीर को स्वच्छ करने के लिए स्नान किया जाता है – यह शरीर की दोषनिवृत्ति है। तेल लगाकर, बालों में कंघी करके, तिलक लगाकर, गहने-गाँठे, वस्त्रादि से उसको सँवारा जाता है – यह गुणाधान है और नकली दाँत, नकली बाल आदि लगाकर उसकी कमी को दूर किया जाता है – यह हीनांगपूर्ति है।
ऐसे ही आपके चित्त में जो दुर्गुण-दुराचार के संस्कार पड़े हैं उनको धर्मानुष्ठान के द्वारा, नियम-संयम के द्वारा निकालना – यह दोषनिवृत्ति है। मैत्री, करुणा, मुदिता, सहजता, सरलता, परोपकार आदि सदगुणों को लाना – यह गुणाधान है और जिस कमी के कारण आप दीन-हीन तथा तुच्छ हो रहे हैं, जिस कमी के कारण आप जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि के शिकार हो रहे हैं, उस कमी को पूर्ण करना – यह हीनांगपूर्ति है और वह कमी है आत्मज्ञान की।

मनुष्य में कुछ-न-कुछ दोष होते ही हैं। उन दोषों को धर्मानुष्ठान, नियम-संयम तथा साधन-भजन से निकालें।

दोषों को निकालते हुए मन में सदगुणों को लायें, मन की आदत अच्छी बनायें। तत्वज्ञान के विचार से बुद्धि को चमकायें और ज्ञान संयुक्त परमात्मा के ध्यान से उसकी हीनांगपूर्ति करें। साकार प्रभु या सोऽहं स्वभाव का ध्यान हमारे चित्त को शुद्ध करता है, हममें सदगुण बढ़ाता है और हमारी कमियों की पूर्ति भी करता है।
यदि आप अपने दोषों को छिपाते हैं तो वे बढ़ते जाते हैं और यदि आप अपने दोषों की पोल महापुरुषों के आगे खोल देते हैं तो आपके दोष क्षीण हो जाते हैं।
इसी संदर्भ में एक घटित घटना-
काफी वर्ष पूर्व की बात है, माणिक चौक (अमदावाद, गुज.) के पास ढालगरवाड में प्रसिद्ध दुकान लक्की जूस हाऊस के मालिक हरिभाई ने परम पूज्य श्री आसाराम जी बापू को अपनी सच्चाई बताते हुए कहाः “बापू जी ! मैं आपको गोली मारने के लिए पिस्तौल खरीदना चाहता हूँ। हमारी एक ‘गैंग’ है। हमने आपको उड़ाने की प्लानिंग की है।”
बापू जी ने पूछाः “कहाँ पर उड़ाना चाहते हो ?”
“फलानी जगह पर।”
“केवल मुझे ही उड़ाना चाहते हो या किसी और को भी ?”
“आपके दो सचिवों को भी। बापू जी ! ऐसे विचार मेरे मन में आ रहे हैं। आप कृपा करके मुझे माफ करना और आप ही मुझे बचाना।”
“मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ?”
“आपका इतना यश हमसे देखा नहीं जाता है।”
अब आपका प्रश्न हो सकता है कि ‘उन्होंने बापू जी को मारा तो नहीं।’
बापू जी ने कहाः “ठीक है, तुम्हारी इतनी सच्चाई है तो हम तुम पर नाराज नहीं है। हम तुम पर प्रसन्न हैं।”
निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।

(श्रीरामचरितमानस में)
कितना भी बड़ा दोष हो, अपराध हो अगर वह महापुरुषों के आगे प्रकट कर दिया जाय तो उनकी कृपा से वह दूर हो जाता है।
बापू जी प्रसन्न हुए तो उनकी तरफ से उसको (हरि भाई को) प्रेम मिला और प्रेम मिला तो उसको लगा कि बापू जी तो अपने हैं। भले इनका यश हो ! यश पराये का खटकता है, अपने वाले का कैसे खटकेगा ? बापू जी अपने हो गये तो उसकी श्रद्धा भी विशेष हो गयी। फिर तो वह दुकानदारी की शुरुआत भी बापू जी के चित्र को नमन करके करता और दुकान बंद करता तो भी बापू जी के चित्र को नमन करके….
सन् 1985 में सांप्रदायिक दंगों के समय उपद्रवियों का एक टोला दुकानों को जलाता हुआ उसकी दुकान के नजदीक आया तो टोले के लोगों ने देखा कि ‘आकाश में कोई छाया है’। वे बोल पड़े- “तौबा-तौबा ! इस दुकान का रखवाला तो कोई फकीर है। यहाँ से चलो।”
जब उस टोले की “तौबा-तौबा” करके वापस जाने की खबर उसको मिली तो उसकी श्रद्धा और बढ़ गयी। कहाँ तो पिस्तौल खरीद रहा था बापू जी को उड़ाने के लिए और कहाँ उसकी दुकान जलने से बच गयी ! उसने बापू जी से सारी घटना बताते हुए कहाः “बापू जी ! आपकी बड़ी कृपा है।”
बापू जी ने कहाः “नहीं, यह तो तुम्हारी सच्चाई का फल है। तुमने बाबा को अपना माना तो बाबा ने भी तुमको अपना माना और जिसको अपना माना उसे तो सँभालना पड़ता है !”
सम्पादक

आप भगवान को अपना मानो तो इससे दोषनिवृत्ति में मदद मिलेगी, गुणाधान आसानी से होगा और हीनांगपूर्ति भी आसानी से होगी, क्योंकि भगवान पूर्ण हैं न !
भगवान निर्दोष हैं तो निर्दोष का चिंतन करने से दोष ज्यादा देर तक टिक नहीं सकेंगे। ‘मुझमें दोष हैं…. दोष हैं….’ ऐसा चिंतन करोगे तो दोषों को बल मिलेगा। दोष होते हुए भी ‘दोष नहीं हैं’ ऐसा विचार कर गलती करते जाओगे तो अधोगति में जाओगे। किन्तु मैं ‘जैसा हूँ-तैसा हूँ, तेरा हूँ….’ ऐसा करके भगवान का चिंतन करोगे तो दोषों से निवृत्त होने में मदद मिलेगी।
दोषों का चिंतन भी न करो, दोषों का समर्थन भी न करो और न ही दोषों से लड़ो वरन् भगवान में मन लगा दो तो दोष निस्तेज हो जायेंगे। भगवान के चिंतन से गुणाधान हो जायेगा। अतः जो भी करते हो, लेते देते हो सब भगवान के निमित्त करो। इससे भगवान में प्रीति बढ़ेगी। जब भगवान में प्रीति होगी तो भगवद्तत्त्व की कथा सुनते की इच्छा होगी और कथा सुनने से हीनांगपूर्ति हो जायेगी।
जीवन में कोई दोष हो, उसे निकालने के लिए सुबह सूर्योदय से पूर्व नहा-धोकर, पूर्वाभिमुख होकर आसन पर बैठ जाओ और लंबा श्वास लो। श्वास पूरा भरकर फिर संकल्प करो कि ‘आज इस दोष का गुलाम नहीं बनूँगा।’ फिर उस दोष के विपरीत गुण का चिंतन करो। मान लो, आपके जीवन में आलस्य है तो….. ‘मैं आज आलस्य नहीं करूँगा…. आज मैं स्फूर्ति में रहूँगा….’

आलस कबहूँ न कीजिये आलस अरि सम जानि।
आलस ते विद्या घटे बल बुद्धि की हो हानि।।
यदि आपके जीवन में काम-क्रोध-लोभ-मोह आदि कोई भी विकार है, कोई बीमारी है या व्यसन है तो उसके विपरीत विचार करो- ‘ॐ…..ॐ…ॐ….. हरि ॐ…. आज के दिन मैं अमुक विकार में नहीं गिरूँगा… इन दोषों को मैं ही बल देता था, तभी तो ये मुझ पर हावी थे। अब मेरा बल मेरे प्रभु राम के, आत्मा-परमात्मा के चरणों में समर्पित है और राम का बल मेरे अंतःकरण में स्थित है…. हम और तुम, दोष सारे गुम….. ॐ…..ॐ…..ॐ….. हरि ॐ….’

इस प्रकार के 10-15 मिनट रोज करने से शराबी की शराब, जुआरी का जुआ खेलना, बीमार की बीमारी आदि दोष-दुर्गुण दूर हो सकते हैं।
मान लो, कोई बीमारी है तो इस प्रयोग के साथ संकल्प करो कि ‘मैं निरोग हूँ…. मैं स्वस्थ हूँ….. ॐ निरोगता….. ॐ आरोग्यता…. ॐ….. ॐ….. ॐ….. ‘ इस प्रकार का प्रयोग शारीरिक बीमारी तो मिटाता ही है, मानसिक रोगों को भी नष्ट करता है और बुद्धि की कमजोरी को दूर करके बुद्धि में गुणाधान भी करता है।
स्नेही और शत्रु को भी आरोग्यता के भाव भेजो। जो दोगे वही मिलेगा। शत्रु के प्रति भी अशुद्ध भाव से युक्त शब्द, घृणा के भाव न भेजो। शुद्ध भाव से युक्त शब्द, सद्भाव भेजो। इससे शत्रुओं का शत्रुत्व भी आपको हानि नहीं पहुँचा सकता।

इस प्रकार आप किसी दोष विशेष से एक दिन बच गये तो दूसरे दिन भी उससे बचने में मदद मिलेगी और तीसरे दिन भी। इस तरह रोज-रोज अपना संकल्प दुहराते जाओ उस दोष ता चिंतन करने के बदले में उसके विपरीत गुण का चिंतन करते जाओ ताकि वह दोष याद ही न आये।
दुश्मन को भूलने के लिए सज्जन से प्रीति कर लो, दुर्गुणों को भूलने के लिए सदगुणों को भर दो, नश्वर शरीर को ‘मैं’ मानने के बदले शाश्वत आत्मा को ‘मैं’ मान लो तो काम बन जायेगा, बेड़ा पार हो जायेगा…..

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2002, पृष्ठ संख्या 7-9, अंक 116
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ ॐॐ

इतिहास का सबसे बड़ा संकट हिन्दुओं पर आने वाला है


आपका जीवन, धन और देश खतरे में….
महान आश्चर्य की बात है कि अमेरिका तथा यूरोप के 80 धर्मनिरपेक्ष (सेक्यूलर) कहलाने वाले देशों में ईसाई धर्म और ईसाई समाज की उन्नति के लिए दिन-रात कार्य किये जाते हैं। सभी यहूदी, मुसलिम तथा बौद्ध देशों में भी उनके धर्म व समाज की उन्नति के लिए हरेक उपाय किये जाते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से भारत में हिन्दू धर्म, संस्कृति, हिन्दू समाज और उसकी भावनाओं को निरन्तर ठोकर मारना बुद्धिजीवियों तथा अल्पसंख्यकों का कानूनी अधिकार तो माना ही जाता है, साथ ही हिन्दुओं के जान की भी कोई कीमत नहीं। ऐसा अँधेर दुनिया में कहीं नहीं है, इससे सर्वश्रेष्ठ हिन्दू समाज का पतन हो रहा है।
भारत प्राकृतिक संपत्ति तथा बुद्धिमानी में सर्वश्रेष्ठ होते हुए भी विदेशी विचार, समाजवाद और नकली धर्मनिरपेक्षता के कारण आज दुनिया का सबसे अधिक गरीब और हिंसात्मक देश बनता जा रहा है।
वोट के लालची सेक्यूलरवादी, अवसरवादी और जयचंदवादी नेता हिन्दू समाज (सनातनधर्मी, जैन, बौद्ध, सिख) को सैंकड़ों जातियों में बाँटकर तथा अल्पसंख्यकों व दलितों को भड़काकर आपसी घृणा उत्पन्न कर रहे हैं। संप्रदायवाद, प्रांतवाद, जातिवाद, भाषावाद व अलगाववाद के जरिये देश को तोड़ने व उसे अल्पसंख्यकों का देश बनाने का प्रयत्न हो रहा है। विदेशी शक्तियाँ इसमें भरपूर मदद कर रही हैं। देश के संप्रदायों को आपस में जोड़ने वाले राष्ट्रवाद को ये धूर्त नेतागण संकुचित व सांप्रदायिक कहते हैं।
हिन्दुओं के ही वोट पर चुने गये धर्मनिरपेक्षतावादी और कम्युनिस्ट नेता तथा उनका बिकाऊ प्रेस हिन्दुओं के मानवाधिकारों व लोकतांत्रिक अधिकारों को पैरों तले कुचल कर हिन्दुओं के साथ विश्वासघात कर रहे हैं और हिन्दुओं के साथ जिन्होंने जितना बड़ा विश्वासघात किया उन्हें उतना बड़ा पद मिला। हिन्दुओं को झूठा इतिहास पढ़ाकर उन्हें धोखा दिया जा रहा है। हिन्दुओं को कहा जाता है कि धर्मनिरपेक्षता के लिए अपनी महान संस्कृति, वेद, गीता, मंदिर, देवताओं, तीर्थों, महापुरुषों व अपने आत्मसम्मान को भूल जायें।
परम वीर व समृद्धशाली हिन्दू समाज अपनी अत्यंत सहनशीलता, ‘सर्वधर्मसमभाव, क्षमा वीरस्य भूषणम् व विश्वबंधुत्व’ के कारण कभी खतरा नहीं देखता और खतरे की बात नहीं पढ़ता। हिन्दुओं में देशबंधुत्व व धर्मबंधुत्व नहीं है इसलिए उनमें एकता व संगठन नहीं है। परिणामस्वरूप हिन्दू हजार वर्ष से सत्ता से कटा हुआ है। उस पर हजार वर्ष से भयंकर विदेशी आक्रमण हो रहे हैं। उसे लूटा जाता है, कत्ल किया जाता है, उसका धर्म-परिवर्तन किया जाता है, उसके हजारों मंदिर तोड़े जाते हैं और उनकी नारियों पर अत्याचार होते हैं। इतनी लूट और इतना अमानवीय अत्याचार दुनिया की किसी कौम पर नहीं हुआ। इस तरह ऐतिहासिक दृष्टि से हिन्दू दुनिया की सबसे अधिक सतायी हुई जाति है। इतना होने के बावजूद भी हिन्दू सारे विश्व का कल्याण विचारता रहा है और सारा विश्व उसे निगल जाना चाहता है।
फिर भी भूतकाल में हिन्दू राजाओं ने अनेक मस्जिद और गिरजाघर बनवाये। हिन्दू आज भी सच्चे दिल से ‘हिन्दू, ईसाई व मुसलिम भाई-भाई’ गाते हैं और आजादी के बाद अल्पसंख्यकों को राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री व राज्यपाल बना रहे हैं। हिन्दू जितनी अधिक सज्जनता, उदारता दिखलाते हैं उन्हें उतना ही अधिक कायर मानकर, उन पर अन्याय और उनके साथ विश्वासघात किया जा रहा है। आजादी के बाद भी हिन्दू भारत में गुलामों की तरह जी रहा है।
भाग्यवादी, अवतारवादी हिन्दुओं ने इतिहास से कोई सबक नहीं सीखा। वे राजनीति से दूर भागते हैं, अपनी शुभचिंतक संस्थाओं को सांप्रदायिक कहते हैं, हमेशा शांति की भीख माँगते हैं तथा अन्याय के सामने कायरता से घुटने टेक देते हैं। हजार वर्ष की गुलामी के कारण उनमें सामंतशाही, दलित-दमन, नारी-दमन, कायरता, आत्महीनता, स्वार्थ व ईर्ष्या उत्पन्न हो गयी है। दुनिया के अधिकतर संप्रदायों के पास हजारों करोड़ के फंड हैं, पर अभागे हिन्दू समाज की रक्षा के लिए 25 करोड़ का भी फंड नहीं है !
इतिहास के अनुसार ईसाई मिशनरियों ने अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका के पचीसों गरीब देशों को लोभ, झूठे चमत्कार, अंधविश्वास, षड्यंत्र, बल और अत्याचार द्वारा ईसाई बनाकर साम्राज्यवाद द्वारा उनका शोषण करके उन्हें खोखला कर दिया। दुनिया को धार्मिक अशांति, घृणा, अन्याय, आतंकवाद, उप-निवेशवाद, अलगाववाद, दो महायुद्ध, एटमबम, सेक्स का दुराचार और एडस् जैसी बीमारियाँ तथा परिवारों में नैतिक पतन, फूट, स्वार्थ और माता-पिता का अपमान आदि ईसाई देशों की ही देन है।
मिशनरियों ने भारत में हिन्दुओं को बलपूर्वक ईसाई बनाने के लिए सैंकड़ों लोगों को जिन्दा जलाया। इस सब पापों को छिपाने के लिए वे अब सेवाकार्य कर रहे हैं जिसके द्वारा लाखों हिन्दुओं का धर्म-परिवर्तन हो रहा है। ईसाई मिशनरियाँ पूरे भारत को ‘ईसाई लैंड’ बनाकर पोप (ईसाईयों का सर्वोच्च धर्मगुरु) के चरणों में डाल देना चाहती है ताकि उसे धार्मिक गुलाम बनाकर उसका निरंतर आर्थिक शोषण किया जा सके।
टाइम्स तथा इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार काश्मीर में पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा हिन्दुओं पर भयंकर अत्याचार किये गये हैं। बेरहमी से उनके हाथ-पैर काट दिये गये, आँखें निकाली गयी, महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार करके उनके स्तन काट लिये गये, पर उनकी सुरक्षा के लिए धर्मनिरपेक्ष सरकार (?) ने कोई सेना नहीं भेजी। सेना भेजा गयी मुलायम सिंह के शासन में अयोध्या (उ.प्र.) के अहिंसक, निहत्थे रामभक्तों पर गोली चलाने के लिए। हिन्दू सावधान न हुए तो जो काश्मीर में हुआ वो धीरे-धीरे सारे भारत में होगा।
आतंकवाद के विशेषज्ञ अमेरिका के श्री जोसेफ बोड़ान स्काई ने कहा हैः ‘पाकिस्तान की जासूसी संस्था आई.एस.आई. का उद्देश्य हिन्दू समाज में जाति, भाषा और प्रान्तों के नाम पर फैली आपसी फूट का लाभ उठाकर सारे भारत पर कब्जा करना है।’ इस संस्था ने पूरे भारत में अपने अनेक अड्डे बना रखे हैं, जहाँ बम और राइफलें भरी जा रही हैं।
लगभग 25 पाकिस्तानी आतंकवादी गुट, आई.एस.आई. जैसी जासूसी संस्थाएँ तथा यादव सेना, नागाफ्रंट और खालिस्तान फ्रंट जैसी 30 उग्रवादी संस्थाएँ, मुंबई जैसे बम विस्फोट तथा गृहयुद्ध द्वारा भारत को बर्बाद करने की योजनाएँ बना रही हैं। (इंडिया फार सेल ऑबजरवर) ईसाईयों के 80 देश हैं, मुसलमानों के 56 देश हैं पर हिन्दुओं का अब कोई देश नहीं बचा। भारत एक धर्मशाला हो गया है जहाँ गृहयुद्ध में करोड़ो निरपराधी कट जायेंगे।
सेक्यूलरवादी तथा कुछ कम्यूनिस्ट नेताओं ने अपना ‘वोट बैंक’ बनाने के लिए बंग्लादेश से डेढ़ करोड़ मुसलिम घुसपैठियों को भारत में आने दिया, जो देश में दंगे, बेकारी व गरीबी फैला रहे हैं। दुबई के गुंडे धमकी देकर भारत के व्यापारियों से करोड़ों रूपये वसूल कर रहे हैं और उनकी हत्याएँ भी कर रहे हैं। लेकिन इन अपराधियों को सज़ा नहीं दी जाती क्योंकि इन्हीं की मदद से सेक्यूलरवादी नेता चुनाव जीतते हैं।
स्कूलों में कुरान और बाइबिल तो पढ़ाई जा सकती है, पर हिन्दुओं को उनके चरित्र का निर्माण करने वाला अमृतस्वरूप ग्रंथ वेद, गीता और रामायण नहीं पढ़ाये जा सकते। परिणामस्वरूप देश में भयंकर चरित्रहीनता व भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। इससे देश में 20 गुना महँगाई बढ़ी है तथा 4 लाख करोड़ का विदेशी कर्ज हो गया है। कॉलेजों में तेजी से ड्रग और दुराचार फैल रहे हैं। हजारों वर्ष प्राचीन अमूल्य महान जीवन पद्धति, हिन्दू संस्कृति नष्ट हो रही है तथा विश्व की सबसे पवित्र हिन्दू नारी का पतन हो रहा है।
आज भारत को एक सहनशील, कोमल देश मानकर उस पर चारों ओर से आतंकवादी, बंग्लादेशी घुसपैठिये, दुबई के गुंडे, विदेशी धर्म, विदेशी संस्कृति, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, देश के भ्रष्ट धर्मनिरपेक्ष कहलाने वाले नेता व बुद्धिजीवी तथा बिकाऊ प्रेस लगातार आक्रमण करके भारत की आजादी खतरे में डाल रहे हैं तथा देश को लूटकर गरीब बना रहे हैं। गौहत्या करने स देश का आर्थिक विनाश हो रहा है।
आज देश की गरीबी व बर्बादी का मुख्य कारण यह है कि भोली जनता झूठे नाटक और वायदे सुनकर तथा चावल-चीनी की भीख लेकर असत्यवादी, देश को लूटने वाले, भ्रष्टाचारी, दुराचारी, गौहत्यारे, अपराधी, रामद्रोही, स्मगलर्स, बिकाऊ तथा घटिया, नकली समाजवादी व सेक्यूलरवादी लोगों को सम्मान व वोट दे रही है तो उसे कौन बचा सकता है ?
हिन्दू दलितों की मदद के लिए बनायी गयी योजना के हजारों करोड़ रूपये विश्वासघात द्वारा उनके हितचिंतक कहलाने वाले नेता लोग लूटकर हजम कर गये, जिससे दलित और गरीब होते गये। जरूरत इस बात की है कि धन दलितों तथा गरीबों की शिक्षा व स्वास्थ्य पर और बेकारी दूर करने के लिए खर्च किया जाय। चारित्र्यवान, ईमानदार नेता ही दलितों का भला कर सकते हैं।
भारत परम तेजस्वी व शक्तिशाली ऋषियों का देश है, स्मगलर्स, भ्रष्टाचारी, गौहत्यारों का नहीं। हिन्दू धर्म विश्व-कल्याण करने वाला सर्वश्रेष्ठ मानव-धर्म है। हिन्दू धर्म के प्रभाव से कई हिन्दू विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक, योद्धा, साहित्यकार, राजनेता और व्यापारी हुए हैं, जिन्होंने मिलकर इस देश की उन्नति की है और भविष्य में भी करेंगे।
गाँधी जी के अनुसार भारत राम और युधिष्ठिर का देश है और हिन्दू धर्म सब धर्मों की माता है। फिर हिन्दुओं का धर्म-परिवर्तन क्यों ?
हिन्दुओं का अस्तित्व खतरे में
हिन्दू कहते हैं, ‘हम दो हमारे दो’ पर मुसलमान कहते हैं, ‘हम 5 हमारे 25’ इस तरह 20-25 वर्षों में देश के कई क्षेत्रों में हिन्दू अल्पसंख्यक होकर गुलाम हो जायेंगे, तब उनके हाथ में जमीन, धन, मकान, फैक्टरी, मंदिर, अस्पताल, स्कूल कुछ भी नहीं रहेगा। फिर भी भोले और अभागे हिन्दू सो रहे हैं। यदि 15 वर्ष में हिन्दू शक्तिशाली नहीं हुए तो फिर उनका बचना संभव नहीं।
क्या आप जानते हैं हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने का नतीजा ?
बंग्लादेश में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं। मुसलिम बहुल बंग्लादेश में बेगम खालिदा जिया के प्रधानमंत्री बनने के बाद बंग्लादेशी नेशनल पार्टी (बी.एन.पी.), जमात इस्लामी पार्टी तथा भारत विरोधी कट्टरपंथी मुसलिमों द्वारा हिन्दुओं पर भारी मात्रा में अत्याचार किये जा रहे हैं।
परिणाम
15000 परिवार (1 लाख बंधु और बहनें) बेघर हुए।
200 माता-बहनों पर बलात्कार हुए, माता के सामने पुत्री पर बलात्कार।
हिन्दुओं को मारना, घरों को लूटना, जलाना।
महिलाओं को नग्न करके घुमाना, सामूहिक बलात्कार।
खुलेआम गौवंश की हत्या करना, हिन्दुओं को जबरदस्ती गौमांस खिलाना।
दुर्गापूजा पर प्रतिबंध लगाना।
दहशत के कारण हिन्दुओं का जीना मुश्किल हो गया है। प्राणभय से हिन्दू अपना घर, संपत्ति, परिवार छोड़कर भारत में शरण ले रहे हैं। स्थानीय पुलिस, प्रशासन हिन्दुओं की शिकायत दर्ज नहीं कर रही है। बहुसंख्यक मुसलिम देश में अल्पसंख्यक हिन्दू सुरक्षित नहीं रह सकता।
भारत के सुरक्षा बलों के 16 जवानों की निर्मम हत्या की गयी। सरकार केवल जुबानी विरोध करती रही।
समस्त हिन्दू समाज का संगठित होकर इस अत्याचार, अनाचार का विरोध करना चाहिए। देशवासियो जागो !
जब 80 करोड़ हिन्दुओं का उद्धार होगा तभी अल्पसंख्यकों का उद्धार होगा। ‘हिन्दू वोट बैंक’ से ही भारत बचेगा, शक्तिशाली और जगदगुरु होगा तथा हिन्दुओं के दृढ़ संकल्प से ही देश का निर्माण होगा। हिन्दू चाहते हैं कि देश में सब संप्रदाय के लोग धनवान और सुखी हों। भारत की उन्नति हिन्दुओं पर निर्भर है (गाँधी जी) पर आज हिन्दू समाज का ही अस्तित्व खतरे में है।
एकता के अभाव में अभागे हिन्दू हजार वर्ष गुलाम होकर लुटते-पिटते रहे। लेकिन ‘हिन्दू वोट बैंक’ बनते ही हिन्दू, मुसलिम, ईसाइयों की एकता हो जायेगी। पाकिस्तान, अमेरिका और चीन दोस्ती का हाथ बढ़ायेंगे। देश में चरित्रवान लोगों का राज्य होगा जिससे भ्रष्टाचार घटेगा, व्यापार बढ़ेगा और गरीबी दूर होगी।
देश के दुश्मन चौगुनी शक्ति से बढ़ रहे हैं, अतः समस्त हिन्दू समाज विशेषकर बढ़े व्यापारी, बड़े हिन्दू ट्रस्ट और बड़े मंदिरों को भी चाहिए क वे हिन्दुओं की सच्ची शुभचिन्तक संस्थाओं के कार्यकर्ताओं को तन-मन-धन से भरपूर मदद करें। मुसलिम और ईसाई संस्थाओं से हमें उनकी एकता वे गरीबों की सेवा सीखनी होगी।
इतिहास में हिन्दू परम वीर रहे हैं, अतः उन्हें अपनी अत्यंत सहनशीलता, कायरता व नुपंसकता छोड़कर अपनी आजादी व लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए शीघ्र बड़ा वोट बैंक, बड़ा प्रचार, बड़ा धन-संग्रह, बड़ा आंदोलन करना होगा। ये देश की आजादी का दूसरा आंदोलन है। अपना ‘वोट बैंक’ बनाये बिना हिन्दुओं का बचना असंभव है। देश के लाखों साधु लोग, विद्यार्थी, गाँव के लोग, महिलाएँ तथा पुलिस व सेना के जवान वीर बनकर देश की रक्षा करें। सारा देश उनकी ओर देख रहा है। ब्राह्मणों को सब कार्य छोड़कर अब दलितों के साथ मिलकर देश की रक्षा के कार्य में लगना चाहिए। ऋषियों ने इसी कार्य के लिए उनका निर्माण किया है। इसीलिए इतिहास में सच्चे ब्राह्मण हमेशा निर्लोभी, चरित्रवान, बुद्धिमान और राष्ट्रभक्त रहे हैं।
हिन्दू आपस में जाति, पंथ, संप्रदाय, भाषा, प्रांत आदि के सभी भेदभाव से ऊपर उठकर एक हों। उन स्वार्थी हिन्दुओं को धिक्कार है जो अपने समाज व देश की रक्षा के लिए कुछ नहीं करते।
आनंद शंकर पंड्या
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2002, पृष्ठ संख्या 21-24 अंक 116
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

मौन साधना


मौन आध्यात्मिक जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। व्यर्थ बकवास में शक्ति का अपव्यय होता है। यदि मौन के द्वारा अपनी शक्ति को सुरक्षित रखा जाय तो वह ओज शक्ति में बदलकर ध्यान में सहायक होगी। अधिक न हो सके तो सप्ताह में एक दिन मौन अवश्य रखना चाहिए।
यदि गंभीर ध्यान का अभ्यास या शीघ्र आत्म-साक्षात्कार करना चाहते हो तो ये पाँच बातें आवश्यक हैं- 1. मिताहार 2. मौन 3. एकांतवास 4 सदगुरु-सम्पर्क 5. शीतल जलवायु।
वाक् इन्द्रिय माया का सबल अस्त्र है। इसके कारण मन विक्षिप्त होता है, झगड़े व युद्ध भी हो जाते हैं। इस इन्द्रिय को नियंत्रित करना माने आधा मन नियंत्रित कर लेना। मौन से वाणी के आवेगों का नियंत्रण, संकल्पबल की वृद्धि, शक्ति संचय तथा आत्मबल की वृद्धि होती है। यह क्रोध का दमन करता है, व्यर्थ के संकल्पों को रोकता है, मन को शांति प्रदान करता है। इससे व्यक्ति का चिड़चिड़ापन बन्द हो जाता है। वाणी प्रभावशाली हो जाती है। पीड़ा के समय मौन रखने से मन को शांति मिलती है। इससे मानसिक तनाव दूर होते हैं। शारीरिक तथा मानसिक कार्यक्षमता बढ़ जाती है। मस्तिष्क व स्नायुओं को विश्रांति मिलती है।
आध्यात्मिक उत्थान के लिए मौन व्रत अवश्य करना चाहिए। भोजन मौन होकर करना चाहिए। ‘जो बातें करते हुए भोजन करता है वह मानो, पाप खाता है।’ (पद्म पुराण) ‘हूँ… हूँ…. हूँ….’ करके बोलना तो बोलने से भी बुरा है, इससे तो शक्ति का अधिक अपव्यय होता है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2002, पृष्ठ संख्या 30, अंक 116
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ