तीन उपयोगी बातें

तीन उपयोगी बातें


संत श्री आसाराम जी बापू के सत्संग-प्रवचन से

साधक के जीवन में तीन बातें होनी चाहिए- दोषनिवृत्ति, गुणाधान, हीनांगपूर्ति।

शरीर को स्वच्छ करने के लिए स्नान किया जाता है – यह शरीर की दोषनिवृत्ति है। तेल लगाकर, बालों में कंघी करके, तिलक लगाकर, गहने-गाँठे, वस्त्रादि से उसको सँवारा जाता है – यह गुणाधान है और नकली दाँत, नकली बाल आदि लगाकर उसकी कमी को दूर किया जाता है – यह हीनांगपूर्ति है।
ऐसे ही आपके चित्त में जो दुर्गुण-दुराचार के संस्कार पड़े हैं उनको धर्मानुष्ठान के द्वारा, नियम-संयम के द्वारा निकालना – यह दोषनिवृत्ति है। मैत्री, करुणा, मुदिता, सहजता, सरलता, परोपकार आदि सदगुणों को लाना – यह गुणाधान है और जिस कमी के कारण आप दीन-हीन तथा तुच्छ हो रहे हैं, जिस कमी के कारण आप जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि के शिकार हो रहे हैं, उस कमी को पूर्ण करना – यह हीनांगपूर्ति है और वह कमी है आत्मज्ञान की।

मनुष्य में कुछ-न-कुछ दोष होते ही हैं। उन दोषों को धर्मानुष्ठान, नियम-संयम तथा साधन-भजन से निकालें।

दोषों को निकालते हुए मन में सदगुणों को लायें, मन की आदत अच्छी बनायें। तत्वज्ञान के विचार से बुद्धि को चमकायें और ज्ञान संयुक्त परमात्मा के ध्यान से उसकी हीनांगपूर्ति करें। साकार प्रभु या सोऽहं स्वभाव का ध्यान हमारे चित्त को शुद्ध करता है, हममें सदगुण बढ़ाता है और हमारी कमियों की पूर्ति भी करता है।
यदि आप अपने दोषों को छिपाते हैं तो वे बढ़ते जाते हैं और यदि आप अपने दोषों की पोल महापुरुषों के आगे खोल देते हैं तो आपके दोष क्षीण हो जाते हैं।
इसी संदर्भ में एक घटित घटना-
काफी वर्ष पूर्व की बात है, माणिक चौक (अमदावाद, गुज.) के पास ढालगरवाड में प्रसिद्ध दुकान लक्की जूस हाऊस के मालिक हरिभाई ने परम पूज्य श्री आसाराम जी बापू को अपनी सच्चाई बताते हुए कहाः “बापू जी ! मैं आपको गोली मारने के लिए पिस्तौल खरीदना चाहता हूँ। हमारी एक ‘गैंग’ है। हमने आपको उड़ाने की प्लानिंग की है।”
बापू जी ने पूछाः “कहाँ पर उड़ाना चाहते हो ?”
“फलानी जगह पर।”
“केवल मुझे ही उड़ाना चाहते हो या किसी और को भी ?”
“आपके दो सचिवों को भी। बापू जी ! ऐसे विचार मेरे मन में आ रहे हैं। आप कृपा करके मुझे माफ करना और आप ही मुझे बचाना।”
“मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ?”
“आपका इतना यश हमसे देखा नहीं जाता है।”
अब आपका प्रश्न हो सकता है कि ‘उन्होंने बापू जी को मारा तो नहीं।’
बापू जी ने कहाः “ठीक है, तुम्हारी इतनी सच्चाई है तो हम तुम पर नाराज नहीं है। हम तुम पर प्रसन्न हैं।”
निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।

(श्रीरामचरितमानस में)
कितना भी बड़ा दोष हो, अपराध हो अगर वह महापुरुषों के आगे प्रकट कर दिया जाय तो उनकी कृपा से वह दूर हो जाता है।
बापू जी प्रसन्न हुए तो उनकी तरफ से उसको (हरि भाई को) प्रेम मिला और प्रेम मिला तो उसको लगा कि बापू जी तो अपने हैं। भले इनका यश हो ! यश पराये का खटकता है, अपने वाले का कैसे खटकेगा ? बापू जी अपने हो गये तो उसकी श्रद्धा भी विशेष हो गयी। फिर तो वह दुकानदारी की शुरुआत भी बापू जी के चित्र को नमन करके करता और दुकान बंद करता तो भी बापू जी के चित्र को नमन करके….
सन् 1985 में सांप्रदायिक दंगों के समय उपद्रवियों का एक टोला दुकानों को जलाता हुआ उसकी दुकान के नजदीक आया तो टोले के लोगों ने देखा कि ‘आकाश में कोई छाया है’। वे बोल पड़े- “तौबा-तौबा ! इस दुकान का रखवाला तो कोई फकीर है। यहाँ से चलो।”
जब उस टोले की “तौबा-तौबा” करके वापस जाने की खबर उसको मिली तो उसकी श्रद्धा और बढ़ गयी। कहाँ तो पिस्तौल खरीद रहा था बापू जी को उड़ाने के लिए और कहाँ उसकी दुकान जलने से बच गयी ! उसने बापू जी से सारी घटना बताते हुए कहाः “बापू जी ! आपकी बड़ी कृपा है।”
बापू जी ने कहाः “नहीं, यह तो तुम्हारी सच्चाई का फल है। तुमने बाबा को अपना माना तो बाबा ने भी तुमको अपना माना और जिसको अपना माना उसे तो सँभालना पड़ता है !”
सम्पादक

आप भगवान को अपना मानो तो इससे दोषनिवृत्ति में मदद मिलेगी, गुणाधान आसानी से होगा और हीनांगपूर्ति भी आसानी से होगी, क्योंकि भगवान पूर्ण हैं न !
भगवान निर्दोष हैं तो निर्दोष का चिंतन करने से दोष ज्यादा देर तक टिक नहीं सकेंगे। ‘मुझमें दोष हैं…. दोष हैं….’ ऐसा चिंतन करोगे तो दोषों को बल मिलेगा। दोष होते हुए भी ‘दोष नहीं हैं’ ऐसा विचार कर गलती करते जाओगे तो अधोगति में जाओगे। किन्तु मैं ‘जैसा हूँ-तैसा हूँ, तेरा हूँ….’ ऐसा करके भगवान का चिंतन करोगे तो दोषों से निवृत्त होने में मदद मिलेगी।
दोषों का चिंतन भी न करो, दोषों का समर्थन भी न करो और न ही दोषों से लड़ो वरन् भगवान में मन लगा दो तो दोष निस्तेज हो जायेंगे। भगवान के चिंतन से गुणाधान हो जायेगा। अतः जो भी करते हो, लेते देते हो सब भगवान के निमित्त करो। इससे भगवान में प्रीति बढ़ेगी। जब भगवान में प्रीति होगी तो भगवद्तत्त्व की कथा सुनते की इच्छा होगी और कथा सुनने से हीनांगपूर्ति हो जायेगी।
जीवन में कोई दोष हो, उसे निकालने के लिए सुबह सूर्योदय से पूर्व नहा-धोकर, पूर्वाभिमुख होकर आसन पर बैठ जाओ और लंबा श्वास लो। श्वास पूरा भरकर फिर संकल्प करो कि ‘आज इस दोष का गुलाम नहीं बनूँगा।’ फिर उस दोष के विपरीत गुण का चिंतन करो। मान लो, आपके जीवन में आलस्य है तो….. ‘मैं आज आलस्य नहीं करूँगा…. आज मैं स्फूर्ति में रहूँगा….’

आलस कबहूँ न कीजिये आलस अरि सम जानि।
आलस ते विद्या घटे बल बुद्धि की हो हानि।।
यदि आपके जीवन में काम-क्रोध-लोभ-मोह आदि कोई भी विकार है, कोई बीमारी है या व्यसन है तो उसके विपरीत विचार करो- ‘ॐ…..ॐ…ॐ….. हरि ॐ…. आज के दिन मैं अमुक विकार में नहीं गिरूँगा… इन दोषों को मैं ही बल देता था, तभी तो ये मुझ पर हावी थे। अब मेरा बल मेरे प्रभु राम के, आत्मा-परमात्मा के चरणों में समर्पित है और राम का बल मेरे अंतःकरण में स्थित है…. हम और तुम, दोष सारे गुम….. ॐ…..ॐ…..ॐ….. हरि ॐ….’

इस प्रकार के 10-15 मिनट रोज करने से शराबी की शराब, जुआरी का जुआ खेलना, बीमार की बीमारी आदि दोष-दुर्गुण दूर हो सकते हैं।
मान लो, कोई बीमारी है तो इस प्रयोग के साथ संकल्प करो कि ‘मैं निरोग हूँ…. मैं स्वस्थ हूँ….. ॐ निरोगता….. ॐ आरोग्यता…. ॐ….. ॐ….. ॐ….. ‘ इस प्रकार का प्रयोग शारीरिक बीमारी तो मिटाता ही है, मानसिक रोगों को भी नष्ट करता है और बुद्धि की कमजोरी को दूर करके बुद्धि में गुणाधान भी करता है।
स्नेही और शत्रु को भी आरोग्यता के भाव भेजो। जो दोगे वही मिलेगा। शत्रु के प्रति भी अशुद्ध भाव से युक्त शब्द, घृणा के भाव न भेजो। शुद्ध भाव से युक्त शब्द, सद्भाव भेजो। इससे शत्रुओं का शत्रुत्व भी आपको हानि नहीं पहुँचा सकता।

इस प्रकार आप किसी दोष विशेष से एक दिन बच गये तो दूसरे दिन भी उससे बचने में मदद मिलेगी और तीसरे दिन भी। इस तरह रोज-रोज अपना संकल्प दुहराते जाओ उस दोष ता चिंतन करने के बदले में उसके विपरीत गुण का चिंतन करते जाओ ताकि वह दोष याद ही न आये।
दुश्मन को भूलने के लिए सज्जन से प्रीति कर लो, दुर्गुणों को भूलने के लिए सदगुणों को भर दो, नश्वर शरीर को ‘मैं’ मानने के बदले शाश्वत आत्मा को ‘मैं’ मान लो तो काम बन जायेगा, बेड़ा पार हो जायेगा…..

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2002, पृष्ठ संख्या 7-9, अंक 116
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