नरक पावे सोई

नरक पावे सोई


भगवत्पाद पूज्य श्री लीलाशाह जी महाराज

मानव बनो, मानवता के गुण सीखो और प्राप्त करो । इन्सान वह है जो सबका भला सुने और करे । मीरा ने कहाः

जो निंदा करे हमारी, नरक पावे सोई ।

आप जाये नरक में, पाप हमारे धोई ।।

अपने को तो पहचाना नहीं और दूसरों की पहचान करने में लग गयाः ‘यह ऐसा है, वह ऐसा है….।’ अपने को अर्थात् आत्मा को । कोई विरला होता है, जो अपने आपको पहचानता है । प्रत्येक कहेगा कि मैं सही हूँ । तुम कहोगे कि स्वामी जी ! यह बात (अपने आपको पहचानना) आवश्यक है क्या ?’ अरे हाँ ! जिसने स्वयं को न पहचाना, वह दूसरों को क्या पहचानेगा ? वह तो पशु है !

मनुष्य-शरीर प्राप्त करके यदि तुमने सद्स्वभाव धारण नहीं किया, हृदय में ज्ञन के सूर्य को नहीं जगाया, अपने-आपको नहीं पहचाना तो फिर संसार में आकर तुमने क्या किया ? अपने-आपको पहचान लेने से ही मानव का कल्याण है ।

निंदा-स्तुति जीव को फँसाने वाली है । निंदा, द्वेष, चालबाजी, कपट – इनसे आप अपनी व समाज की हानि कर रहे हैं और न जाने कितनी योनियों में निंदा एवं कपट का फल भोगेंगे !

कहा गया हैः

कपट गाँठ मन में नहीं, सबसे सरल स्वभाव ।

नारायण वा वास की, लगी किनारे नाव ।।

अतः कपटरहित होकर भगवत्प्रेमी महापुरुष का संग करके, सत्संग करके अपने-आपको पहचान लो तो जन्म-मृत्यु के दुःखों से सदा के लिए छूट जाओ ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2009, पृष्ठ संख्या 14 अंक 194

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