(समर्थ स्वामी-रामदासजी महाराज की वाणी)
सत्य खोजते-खोजते प्राप्त हो जाता है । हे मन ! बोध होते-होते होता है । ज्ञान होता है परंतु यह सब केवल श्री सद्गुरु की प्राप्ति और सहवास प्राप्त होने से और सद्गुरु-स्वरूप में व्यक्त, सदेह, सगुण परमात्मा की कृपा और उनका अनुराग प्राप्त करने से ही हो सकता है । अतः सद्गुरु के सत्संग का लाभ लेकर ब्रह्म-निश्चय को प्राप्त करो ।
संतोष की प्राप्ति पिण्ड-ब्रह्माण्ड के ज्ञान से नहीं होती । तत्त्व का ज्ञान बौद्धिक तर्क और अनुमान तथा ज्ञान से नहीं होता, कर्म में संलग्न रहने से, यज्ञ करने से तथा शरीर द्वारा विषयों के भोग को त्याग करने से नहीं होता । वह संतोष और समाधान तथा वह शांति तो श्री सद्गुरु जी की कृपादृष्टि और उनकी प्रीति से ही प्राप्त होती है ।
‘तत्त्वमसि’ महावाक्य, वेदांत-तत्त्व, वेदांत में आया हुआ पंचीकरण सिद्धांत – ये सब संकेत हैं, और जो वाणी से परे स्थित उस परब्रह्म की और श्री सद्गुरु द्वारा किये गये हैं । इन संकेतों का आधार लेकर सद्गुरु की सहायता से सत्शिष्य को अपने अंतःकरण में ब्रह्मसाक्षात्कार उसी प्रकार करना होता है, जिस प्रकार आकाश में द्वितीया का चंद्रमा शाखा का संकेत देकर दिखाने वाले संकेत के आधार पर व्यक्ति को शाखा को छोड़ चंद्रमा को स्वयं ही देखना होता है और न दिखने पर चंद्रमा दिखने तथा दिखाने वाले व्यक्ति से बार-बार पूछना होता है और अंत में चंद्रमा को साक्षात् देखना होता है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2009, पृष्ठ संख्या 13 अंक 198
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