यज्ञोपवीत धारण करने से हृदय, आँतों व फेफड़ों की क्रियाओं पर अत्यंत अनुकूल प्रभाव पड़ता है ।
मल-मूत्र त्याग के समय कान पर कसकर जनेऊ लपेटने से हृदय मजबूत होता है । आँतों की गतिशीलता बढ़ती है, जिससे कब्ज दूर होता है । मूत्राशय की माँसपेशियों का संकोचन वेग के साथ होता है । जनेऊ से कान के पास की नसें दब जाने से बढ़ा हुआ रक्तचाप नियंत्रित तथा कष्ट से होने वाली श्वसनक्रिया सामान्य हो जाती है, इसके अतिरिक्त स्मरणशक्ति व नेत्रज्योति में भी वृद्धि होती है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2009, पृष्ठ संख्या 8 अंक 199
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अमृतकण
कुसंग केवल मनुष्यों का ही नहीं होता, शरीर से होने वाले काम, इन्द्रियों के सारे विषय, स्थान, साहित्य, व्यापार, नौकरी, अर्थ-सम्पत्ति, खानपान, वेशभूषा आदि सभी कुसंग बन सकते हैं ।
भगवद्दर्शन की इतनी चिंता न करें, भगवद्चिंतन की अधिक चिंता करें । किसी भी प्रकार परमात्मा की शरण में जाने से माया छूट सकती है । जब तक अहं और आवश्यकता रहती है तब तक परमात्मा में तल्लीन नहीं हो पाते ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2009, पृष्ठ संख्या 11 अंक 199
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एक तो कर्तव्य-पालन में अपनी निष्ठा, दूसरा, वासुदेव सर्वत्र है और तीसरा, यह आत्मा ब्रह्म है ऐसा मानने से हर काम में आप सफल हो जायेंगे और कभी थोड़ा विफल भी हो जायेंगे तो विषाद नहीं होगा । – पूज्य बापू जी ।
जिन संतों के हृदय में सबकी भलाई की भावना है, जिनका सबके ऊपर प्रेम है ऐसे संतों को सताने के लिए मूढ़ लोग तैयार हो जाते हैं । पेड़ की छाया में बैठकर अपनी गर्मी मिटाने की अपेक्षा उस पेड़ की जड़ों को काटने लग जायें तो सोचो यह कैसी मूर्खताभरी बात है । पेड़ की छाया का लाभ ले ले न ! अपनी तपन मिटा… पर उसकी जड़े ही काटने की बात करे तो उसे मूर्ख नहीं तो क्या कहा जाय !
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2009, पृष्ठ संख्या 15 अंक 199
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वस्त्र धोने के बाद निचोड़ते समय दोनों हाथों की होने वाली विशिष्ट क्रिया से हृदय के स्नायु मजबूत बनते हैं ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2009, पृष्ठ संख्या 30 अंक 199
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