भ्रांति में न आना, निष्ठा निभाना

भ्रांति में न आना, निष्ठा निभाना


महामंडलेश्वर आचार्य 1008 स्वामी श्री परमात्मानंदजी महाराज, वृन्दावन

महान संत आसाराम बापू जी को हम सच्चा कुंदन समझते हैं, उनको सच्चा पारसमणि समझते हैं। हमने उनको नजदीक से देखा है, कम से कम 50 साल से देखते आ रहे हैं। ऐसा संत इस विश्व में न भूतो न भविष्यति। उन पर ये चाण्डाल-चाण्डाल लोग जो दोषारोपण कर रहे हैं वह सम्पूर्णतया मिथ्या है। थोड़े दिन के अंदर दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा। हमारे आसारामजी बापू महाराज निर्दोष थे, निर्दोष हैं और निर्दोष ही रहेंगे। आप किसी भ्रांति में नहीं आना, किसी अज्ञानता में न आना, किसी के षडयंत्र में नहीं आना बल्कि अपनी श्रद्धा, अपना विश्वास, अपनी आस्था, अपनी निष्ठा प्राणपण से निभाना।

देखिये, जो सत्य होता है उसके लिए कोई क्रियाएँ नहीं करनी पड़तीं लेकिन जो झूठ होता है उसके लिए सौ-सौ षडयंत्र करने पड़ते हैं। दो और दो चार, यह सत्य है लेकिन दो और दो चार को पाँच बनाने के लिए चेष्टा करनी पड़ेगी, षडयंत्र करना पड़ेगा और फिर भी कभी-न-कभी पोल खुल ही जायेगी।

जो समाज के शरीर को कष्ट देना चाहता है वह शासक नहीं होता, शासक वह होता है जो समाज के हृदय में बैठ जाय। राष्ट्र के सही नियामक, सही प्रशासक तो बापू आसारामजी जैसे संत हैं, जो समाज को शांति दे रहे हैं। सच्चा शासन तो संत करते हैं।

शासन करने में रावण भी बड़ा प्रभावशाली था, राम भी बड़े प्रभावशाली थे लेकिन याद रखना, रावण में एक चीज़ थी और राम में दूसरी चीज़ थी जो हमारे संतों में है। रावण में प्रभाव था लेकिन ‘स्व’ भाव नहीं था और राम में प्रभाव भी था और ‘स्व’ भाव भी था इसलिए सारे राष्ट्र में राम जी के प्रति पूज्यभाव है।

हमारे आसारामजी बापू में प्रभाव भी है, सारा विश्व जानता है और ‘स्व’ भाव भी है, आत्मीय भाव भी है, नहीं तो उनके लिए यहाँ बैठते इतने संत-महापुरूष, भक्त ! भाव से आये हैं। जैसा भाव तुम्हारे हृदय में होगा वैसा ही तुम्हारा संसार बनेगा। यह भाव तन में आ जाय तो दान बन जाता है, पाँव में आ जाये तो नृत्य बन जाता है, वाणी में आ जाय तो प्रेमाश्रु बन जाता है, होठों में आ जाय तो मुस्कराहट बन जाता है। यही भाव हृदय में आ जाय तो प्रेम बन जाता है और आसारामजी जैसे साधु-संतों और गुरुओं के प्रति हो जाय तो श्रद्धा बन जाता है और वहाँ दृढ़ हो जाये तो भगवान से एकाकार करने वाली परम आनंददायिनी भक्ति बन जाता है।

कुछ विषधर साँपों ने समाज की संस्कृति को हड़पने का षडयंत्र किया है, सँभल जाना। ये संत समाज की शांति है, समाज का विश्वास है, राष्ट्र की अमानत है, राष्ट्र के मनीषी हैं, राष्ट्र का धर्म हैं, राष्ट्र के भगवान हैं और इनकी रक्षा करना हमारा धर्म है। धर्मो रक्षति रक्षितः। तुम धर्म की रक्षा करो, धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2010, पृष्ठ संख्या 7

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