ग्रीष्म विशेष

ग्रीष्म विशेष


(ग्रीष्म ऋतुः 20 अप्रैल से 20 जून तक)

ग्रीष्म में बढ़ने वाली गर्मी, रूक्षता व दुर्बलता को दूर करने के लिए कुछ सरल व अनुभूत प्रयोगः

गर्मीनाशक शरबतः जीरा, सौंफ, धनिया, काली द्राक्ष अथवा किशमिश व मिश्री समभाग लेके कूटकर मिला रखें। एक चम्मच मिश्रण एक ग्लास ठंडे पानी में भिगो दें। 2 घंटे बाद हाथ से मसलकर, छानकर पीयें। पीते ही शीतलता, स्फूर्ति व ताजगी आयेगी।

गर्मी से होने वाली तकलीफों में- दूध में समभाग पानी मिलाकर एक चम्मच घी (हो सके तो गाय का) व मिश्री मिला दें। चुसकी लेते हुए पीयें। इससे शरीर में बल वह स्निग्धता बढ़ेगी। यह प्रयोग गर्मी से भी रक्षा करता है। होनहार माँ अगर पीती है तो बालक व माँ के बल और बुद्धि में इजाफा होगा।

गर्मी एवं पित्तजन्य तकलीफों में- रात को दूध में एक चम्मच त्रिफला घृत (त्रिफला घृत आयुर्वेदिक विश्वसनीय जगह से लेना चाहिए) मिलाकर पीयें। पित्तजन्य दाह, सिरदर्द, आँखों की जलन में आराम मिलेगा।

दोपहर को चार बजे एक चम्मच गुलकंद धीरे धीरे चूसकर खाने से भी लाभ होता है।

लू से बचने हेतुः गुड़ (पुराना गुड़ मिले तो उत्तम) पानी में भिगोकर रखें। एक दो घंटे बाद छान कर पीयें। इससे लू से रक्षा होती है।

प्याज और पुदीना मिलाकर बनायी हुई चटनी भी लू से रक्षा करती है।

ग्रीष्म में शक्तिवर्धकः ठंडे पानी में जौ अथवा चने का सत्तू, मिश्री व घी मिलाकर पीयें। सम्पूर्ण ग्रीष्म में शक्ति बनी रहेगी।

मुँह के छाले व आँखों की जलन में- एक चम्मच (लगभग 5 ग्राम) त्रिफला चूर्ण सुबह मिट्टी के बर्तन में पानी में भिगो दें, शाम को छानकर पीयें। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, सुबह पी लें। इसी पानी से आँखें धोयें। छाले व जलन कुछ ही समय में गायब हो जायेंगे।

घमौरियाँ दूर करने हेतुः 10 ग्राम नीम के फूल व थोड़ी मिश्री पीसकर, पानी में मिला के पीने से घमौरियाँ दूर हो जायेंगी।

बिन जरूरी प्यास मिटाने हेतुः बार-बार प्यास लगकर बिनजरूरी पानी पीना पड़ता हो तो मिट्टी की पुरानी ईंट को धोकर साफ करके आग में डाल दें। खूब लाल होने पर गाय के दूध से बने दही से बुझा दें। यह दही थोड़ा थोड़ा करके दिन में खा लें। अत्यधिक प्यास लगने की तकलीफ मिट जायेगी।

ग्रीष्म ऋतु में विहारः सुबह 3 बजे से 4 बजे शीतली व चंद्रभेदी प्राणायाम करें। ब्राह्ममुहूर्त में उठकर शीतल हवा में घूमने जायें। बगीचे की घास पर नंगे पैर घूम लें। व्यायाम व परिश्रम कम करें। सिर, आँख व कान की धूप से रक्षा करें। ग्रीष्म में सर्वाधिक बलक्षय होता है, अतः पति पत्नी सहवास से बचें। बल की रक्षा के लिए ब्रह्मचर्य नितांत आवश्यक है।

हृदय व मस्तिष्क की पुष्टि हेतुः भोजन के बीच में आँवले का 30-35 ग्राम रस पानी में मिलाकर 21 दिन पीने से हृदय और मस्तिष्क खूब मजबूत हो जाता है।

हृष्ट-पुष्ट व गोरी संतान पाने हेतुः गर्भिणी रोज प्रातःकाल थोड़ा नारियल और मिश्री चबाके खाये तो गर्भस्थ शिशु हृष्ट पुष्ट और गोरा होता है। (अष्टमी को नारिय खाना वर्जित है।)

सुंदर व तीव्रबुद्धि संतान प्राप्त करने हेतुः गर्भिणी गर्मियों में 100 ग्राम गाय के दूध में 100 ग्राम पानी मिलाकर एक चम्मच गाय का घी मिला के पीये तो पेट में जो शिशु बढ़ रहा है वह कोमल त्वचा वाला, सुंदर, तेजस्वी व बड़ा बुद्धिमान होगा। दूध पीने के 2 घंटे पहले और बाद में कुछ न खायें।

उपर्युक्त प्रयोगों के साथ यदि गर्भिणी स्त्री सत्संग की पुस्तकें पढ़ती है तो शिशु मेधावी व सुसंस्कारी होगा। ऐसे बालकों की विश्व को जरूरत है। गर्भिणी ‘नारायण, शिव-शिव, नारायण-नारायण, हरि, राम-राम, हरि ॐ’ आदि शब्दों का जितना अधिक स्मरण करे उतना ही शिशु होनहार होगा। ऐसे महात्माओं की आवश्यकता है।

पीलिया (कामला में)- नीम के पत्तों का रस 10 ग्राम, मिश्री 5 ग्राम व शहद 10 ग्राम तीनों मिलाकर दिन में तीन बार लेते रहने से पित्तदोष व यकृत (लीवर) की विकृति दूर हो जाती है। इससे पीलिया में यह रामबाण औषधि का काम करता है। (पूज्य बापू जी द्वारा दिया जाने वाला आशीर्वाद मंत्र भी पीलिया में परम लाभदायी है।)

पुराने बुखार में- तुलसी के ताजे पत्ते 6, काली मिर्च और मिश्री 10 ग्राम ये तीनों पानी के साथ पीस कर घोल बना के बीमार व्यक्ति को पिला दें। कितना भी पुराना बुखार हो, कुछ हो दिन यह प्रयोग करने से सदा के लिये मिट जायेगा।

गले में कफ जमा होने परः जरा सा सेंधा नमक धीरे धीरे चूसने से लाभ होता है। सुबह कोमल सूर्यकिरणों में बैठके दायें नाक से श्वास लेकर सवा मिनट रोकें और बायें से छोड़ें। ऐसा 3-4 बार करें। इससे कफ की शिकायतें दूर होंगी।

गर्मियों में वरदान स्वरूप

हरड़ रसायन योग

लाभः यह सरल योग ग्रीष्म ऋतु (20 अप्रैल से 20 जून तक) में स्वास्थ्य-रक्षा हेतु परम लाभदायी है। यह त्रिदोषशामक व शरीर को शुद्ध करने वाला उत्तम रसायन योग है। इसके सेवन से अजीर्ण, अम्लपित्त, संग्रहणी, उदरशूल, अफरा, कब्ज आदि पेट के विकार दूर होते हैं। छाती व पेट में संचित कफ नष्ट होता है, जिसमें श्वास, खाँसी व गले के विविध रोगों में भी लाभ होता है। इसके नियमित सेवन से बवासीर, आमवात, वातरक्त(), कमरदर्द, जीर्णज्वर, किडनी (गुर्दे) के रोग, पाण्डुरोग (पीलिया, रक्त की कमी) व यकृत के विकारों में लाभ होता है। यह हृदय के लिए बलदायक व श्रमहर है।

विधिः 100 ग्राम गुड़ में थोड़ा सा पानी मिलाकर गाढ़ी चाशनी बना लें। इसमें 100 ग्राम हरड़ का चूर्ण मिलाकर 1-1 ग्राम की गोलियाँ बना लें। प्रतिदिन 1 गोली चूसकर अथवा पानी से लें। यदि शरीर मोटा है तो 1 से 4 ग्राम दिन भर में चूस सकते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2010, पृष्ठ संख्या 20,21 अंक 208

अक्षय फलदायिनीः अक्षय तृतिया

16 मई 2010

अक्षय तृतिया को दिये गये दान, किये गये स्नान, जप, तप व हवन आदि शुभ कर्मों का अनंत फल मिलता है।

स्नात्वा हुत्वा च दत्वा च जप्त्वानन्तफलं लभेत्।

‘भविष्य पुराण’ के अनुसार इस तिथि को किये गये सभी कर्मों का फल अक्षय हो जाता है, इसलिए इसका नाम ‘अक्षय’ पड़ा है। ‘मत्स्य पुराण’ के अनुसार इस तिथि का उपवास भी अक्षय फल देता है। त्रेतायुग का प्रारम्भ इसी तिथि से हुआ है। इसलिए यह समस्त पापनाशक तथा सर्वसौभाग्य-प्रदायक है। वर्ष के साढ़े तीन मुहूर्तों में भी इसकी गणना होती है।

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